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06 September 2020

घर बनाते समय रखे यह ध्यान


वास्तु पूजन और वास्तुपुरूष में संस्थित सभी देवों को बलि, हवन आदि द्वारा संतुष्ट करने के बाद ही निर्माण कार्य आरंभ करना चाहिए । निर्माण कार्य से पूर्व मुहूर्त का चयन अत्यंत आवश्यक है। कहा जाता है कि यदि शुभ मुहूर्त में नींव खोदने का कार्य किया जाए तो मकान अतिशीघ्र बन जाता है। निर्माण से पूर्व शुभ मुहूर्त में वास्तु पूजन तथा अन्य प्रादेशिक या पारिवारिक रीति रिवाज के अनुसार भगवान की पूजा अवश्य करें। यह धार्मिक कार्य भी यदि ईशान कोण की दिशा में किया जाए तो उत्तम है।

भूमि पर प्रथम खुदाई का कार्य सदैव ईशान कोण के कोने से ही होना चाहिए। यह खुदाई का कार्य भूमि पूजन हेतु, नींव रखने हेतु, पानी की बोरिंग या भण्डारण के लिए हो सकता है। अनमें से किसी भी कार्य के लिए भूमि खोदनी पडे़ तो केवल ईशान कोण से ही प्रारम्भ करें। निर्माण कार्य बिना विध्न के निरंतर चलता रहे और कोई दुर्घटना आदि न हो इसके लिए वास्तुशास्त्र के अनिवार्य सुझााव और सानियमों का पालन करें।

निर्माण कार्य के लिए पानी की बोरिंग या भण्डारण के लिए जो हौदी बनायें वह केवल ईशान दिशा में हो। ऐसा करने से धन की कमी नहीं होगी और कार्य र्निविघ्न रूप से पूरा होगा।

नींव की खुदाई का कार्य निम्नलिखित क्रम में करें:-

(1) उत्तर-पूर्व

(2) उत्तर-पश्चिम
(3) दक्षिण-पूर्व
(4) दक्षिण-पश्चिम

नींव को भरने का कार्य निम्नलिखित क्रम से करें:-
(1) दक्षिण-पश्चिम
(2) दक्षिण-पूर्व
(3) उत्तर-पश्चिम
(4) उत्तर-पूर्व

दीवारों के लिए खुदाई करते हुए ध्यान दें कि खुदाई उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की तरफ की जाए। दीवारों के लिए भराई करने की प्रक्रिया इससे उलट यानि दक्षिण से उत्तर और पश्चिम से पूर्व रहनी चाहिए।

निर्माण कार्य आरम्भ करने से पहले भूखण्ड को ठीक प्रकार से साफ करें। यदि भूमि ठोस न हो या उसमें अजगर, दीमक इत्यादि के बिल हों अथवा उस जमीन में शल्य हो तो उसे अच्छी तरह से साफ करवा कर उस भूमि में साढे़ पाँच या छ: फुट की खुदाई कर मिट्टी निकलवाकर और अच्छी मिट्टी और पत्थर के टुकड़ों से भरवाकर उस पर निर्माण कार्य प्रारम्भ कराएं।

निर्माण के दौरान यह विशेष ध्यान दें कि दिन के अन्त में दक्षिण दिशा में निर्माण उत्तर दिशा के निर्माण की अपेक्षा अधिक ऊंचा हो। भवन निर्माण संबंधित सामग्री जैसे ईंट, पत्थर, सीमेंट, रेत आदि का भूखण्ड के नैऋत्य कोण में भण्डारण करें। लोहे के सरिये आदि पश्चिम दिशा में रखें। नल तथा नल के पाईप, मल निष्कासन के पाईप आदि का भण्डारण भूखण्ड के वायव्य कोण में करें। यदि निर्माण सामग्री उत्तर और पूर्व दिशा की अपेक्षा दक्षिण और पश्चिम दिशा में रखी जाए तो निर्माण कार्य आसानी से तथा तीव्रगति से पूरा होगा।

चौकीदार के लिए झोपड़ी या कच्चा कमरा आग्नेय कोण में बनाना शुभ रहता है। लेकिन यह जगह पूर्व और दक्षिण दिशा की भुजाओं से दो या तीन फुट की दूरी पर होना चाहिए। जल प्रबंधन के पश्चात अगली प्रक्रिया चौकीदार का कमरा बनाना है। इसके बाद मुख्य निर्माण कार्य से पहले चारदीवारी का निर्माण करना चाहिए।

भवन सुचारू तथा तीव्र गति से बने इसके लिए रात में, दक्षिण दिशा में ऊचे स्थान पर प्रकाश व्यवस्था का इन्तजाम करें। दक्षिण दिशा में दीपक या बल्ब जलाना भूखण्ड में ऊर्जा शक्ति में बढ़ोतरी करता है। भवन में अधिकतम तीन प्रकार की लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए। नये भवन में पुरानी लकड़ी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

व्यक्तिगत कार्यस्थल संबंधी निम्नलिखित सुझावों को अपनाने सेउन्नति, प्रतिष्ठा और यश सुनिश्चित किया जा सकता हैः

1.डेस्क की स्थिति - डेस्क की स्थिति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हमेशा इस तरह बैठें कि आपकी पीठ के पीछे ठोस दीवार हो और खिड़की न हो। अगर बैठने की कोई अन्य व्यवस्था न हो सके तो खिड़की पर पर्दे या ब्लाईंड का प्रयोग करें।
2. मेज कक्ष अथवा केबिन के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में होनी चाहिए। डेस्क इस प्रकार लगाया जाए कि दरवाजा पीठ पीछे न रहे।

3. मुख हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रहे।

4. बीम के नीचे न बैठें।

5. स्थिरता के लिए अपनी पीठ के पीछे दीवार पर पर्वत अथ्वा गगनचुंबी इमारत की तस्वीर लटकाएं।

6. कक्ष/केबिन का दक्षिण-पश्चिम कोना खाली न रहे। इस कोने में भारी फाइल कैबिनेट अथवा पौधा रखें।

7. कम्प्यूटर के मॉनीटर दक्षिण-पूर्व दिशा के पूर्व में होने चाहिए।

8. पुरस्कार अथवा ट्राफियों को दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में रखा जा सकता है।

9. दीवारों पर प्रेरक, खुशनुमा तस्वीरें लगाएं।

10. डेस्क अथवा सामने के बोर्ड पर कुछ मनपसंद वस्तुएं अथवा प्रियजनों की तस्वीरें रखी या लगाई जा सकती हैं। इनसे कार्यस्थल की नीरसता के बीच तनाव से मुक्ति, स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचार होता है।

11. ध्यान रखें कि जिस कुर्सी पर आप बैंठें वह आरामदायक हो और उसकी ऊंचाई आपके अनुसार सही हो। आरामदायक कुर्सी होने से स्वत: ही कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

12. अपने ऑफिस में अटाला यानी फालतू सामान बिल्कुल न रखें। डेस्क पर फाइलों और कागजों का ढेर न रहने दें और उन्हें जल्दी निपटाते रहें। मेज साफ-सुथरी और खाली रहने से कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

13. आपके डेस्क का और आपके केबिन का आकार फर्म में आपकी शक्ति और ओहदे का सूचक होता है। यदि आपके डेस्क का आकार आपके कार्य विशेष के लिए सामान्य से बड़ा है तो आप आपे करियर में अपेक्षकृत अधिक तेज़ी से प्रगति करेंगे।

14. वास्तु में आकाश या स्पेस को एक महत्वपूर्ण तत्व का दर्ज़ा दिया गया है। तंग और संकरी जगहों में व्यक्ति का "आकाश" तत्व प्रभावित होता है। अत:अपने डेस्क के पीछे पर्याप्त रिक्त स्थान रखें। यदि आपको तंगी महसूस होती है तो आप अपने कार्य में सीमित और बंधा-बंधा महसूस करेंगे।

15. प्रवेश द्वार से दूर कार्यस्थल होने पर अपना डेस्क इस प्रकार लगाएं ताकि दरवाजे़ की ओर आपकी पीठ न हो। यदि ऐसा करना संभव न हो और दीवार
की ओर मुंह करके बैठना पडे़ जो दीवार पर एक आईना लगा लें अथवा डेस्क या कम्प्यूटर पर उत्तल दर्पण लगाएं जिससे प्रवेश द्वार दिखता रहे।

16. यदि आपका केबिन या डेस्क अंधेरी जगह में हो अथवा बाकी ऑफिस से अलग-थलग हो तो अपने दरवाजे के बाहर हॉल में प्रवेश द्वार पर पर्याप्त रोशनी रखें।

17. तंग और कम रोशनी वाली जगहों को उपयुक्त बनाने के लिए दर्पणों तथा दूधिया रोशनी के साथ-साथ पौधों का प्रयोग भी किया जा सकता है। फूल-पौधे किसी भी जगह को समृद्ध और स्फूर्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। प्राकृतिक लैंडस्केप, खुशनुमा तस्वीरें, पेंटिंग आदि नीरस कार्य क्षेत्र को जीवंत बनाने के लिए मददगार हो सकते हैं।

18. यदि आपके कार्यस्थल पर, विशेषकर प्रवेश द्वार के निकट व्यर्थ के सामान का जमावड़ा या रूकावट हो जो उसे तुरंत हटवा दें। यह ऊर्जा के संचार में बाधक होता है और संतुलन तथा सामंजस्य में कमी करता है।

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