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15 January 2008
श्री दुर्गा जी की आरती
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वा†छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..
मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी ..
श्री दुर्गाचालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
ससि ललाट मुख महा बिसाला। नेत्र लाल भृकुटी बिकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरस करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीन्हा। पालन हेतु अन्न धन दीन्हा॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नासन हारी। तुम गौरी शिव शङ्कर प्यारी॥
शिवजोगी तुम्हरे गुन गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वति को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन्ह उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अंबा। परगट भई फाड कर खंबा॥
रच्छा करि प्रह्लाद बचाओ। हिरनाकुस को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
छीर सिन्धु में करत बिलासा। दया सिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जाय बखानी॥
मातंगी धूमावति माता। भुवनेस्वरि बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिनि। छिन्नभाल भव दु:ख निवारिनि॥
केहरि बाहन सोह भवानी। लांगुर बीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खडग बिराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और तिरसूला। जाते उठत शत्रु हिय सूला॥
नगरकोट में तुम्ही बिराजत। तिहूँ लोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्त बीज संखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल काली को धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमर पुरी औरों सब लोका। तव महिमा सब रहै असोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो जस गावै। दुख दारिद्र निकट नहि आवै॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म मरन ताको छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शङ्कर आचारज तप कीन्हो। काम क्रोध जीति सब लीन्हो॥
निसिदिन ध्यान धरो शङ्कर को। काहु काल नहि सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
सरनागत ह्वै कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदंब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदंबा। दई शक्ति नहि कीन्ह बिलंबा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरे दुख मेरो॥
आसा तृस्ना निपट सतावै। रिपु मूरख मोहि अति डरपावै॥
शत्रु नास कीजै महरानी। सुमिरौं एकचित तुमहि भवानी॥
करौ कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियौं दयाफल पाऊँ। तुम्हरौ जस मैं सदा सुनाऊँ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परम पद पावै॥
देवीदास सरन निज जानी। करहु कृपा जगदंब भवानी॥
संकटमोचन हनुमानाष्टक
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मत्तगयन्द छन्द
बाल समय रबि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो॥
देवन आनि करी बिनती तब छाँडि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥1॥
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो॥2॥ को नहिं.
अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो॥
हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥3॥ को नहिं..
रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो॥
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥4॥ को नहिं..
बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो॥
आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो॥5॥ को नहिं..
रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग की फाँस सबे सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो॥6॥ को नहिं..
बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो॥
जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो॥7॥ को नहिं..
काज किये बड देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो॥8॥ को नहिं..
दोहा :- लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥ श्री हनुमान ललाजी की आरती आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपै। रोग दोष जाके निकट न झांपै।
अंजनिपुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारि असुर संहारे। सीतारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पडे सकारे। आनि सजीवन प्राण उबारे।
पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखारे।
बायें भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर नर मुनि आरती उतारे। जय जय जय हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसि बैकुण्ठ परम पद पावै।
श्रीहनुमानचालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
करियर से भी है वास्तु का गहरा संबंध
आधुनिक युग में हर व्यक्ति बेहतर भविष्य, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अच्छे करियर की प्राप्ति की दिशा में सदा प्रयासरत रहता है। हर व्यक्ति अपनी शिक्षा, आर्थिक स्थिति एवं शारीरिक सामर्थ्य के अनुसार अपने करियर के प्रति जागरूक एवं प्रयत्नशील रहता है। कुछ समय पहले तक करियर शब्द का सीमित अर्थो में ही प्रयोग किया जाता रहा है, जैसे कि शिक्षा प्राप्ति के बाद अपने-अपने भविष्य के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक शैक्षिक स्तर पर उच्च शिक्षा को कुछ इस प्रकार योजनाबद्ध तरीके से व्यवस्थित करना, जिससे कि हमारी युवा पीढी अच्छा धनोपार्जन करके समाज में सम्मानजनक ढंग से जीवन व्यतीत कर सके। परंतु आज आधुनिक युग में करियर शब्द को किसी विशेष आयु वर्ग से बांधना न तो संभव है, न ही तर्कसंगत क्योंकि करियर एक व्यापक शब्द है व इसे प्रत्येक आयु एवं सामाजिक स्तर के साथ जोड कर देखा जाना चाहिए। अपने पूरे परिवार के करियर को उज्जवल बनाने के लिए किए जाने वाले विभिन्न प्रयत्नों के साथ यदि घर को व्यवस्थित करने में वास्तुशास्त्र के आधारभूत नियमों का भी रखा जाए तो इससे भविष्य को संवारने में काफी मदद मिल सकती है।
वास्तुशास्त्र में किसी भी मकान या कमरे की उत्तर दिशा को करियर से सम्बद्ध दिशा माना गया है। इसके साथ ही जीवन की बेहतरी का संबंध भवन की पूर्व दिशा से है। ज्ञान एवं बौद्धिक विकास में सहायक ग्रह गुरु, यानी बृहस्पति की दिशा है-पूर्वोत्तर। इस दिशा में ईशान कोण स्थित होता है। वास्तु की दृष्टि से यदि आप अपने मकान या व्यावसायिक प्रतिष्ठान की इन तीनों दिशाओं से संबंधित कुछ बातों का थोडा भी ध्यान रखें तो वह आपके लिए बहुत कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है।
1. घर की उत्तर दिशा की सफाई का विशेष ध्यान रखें व वहां कोई कूडा-कचरा, डस्टबिन, शू-रैक आदि न रखें।
2. पढते-लिखते समय सदा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
3. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते समय भी इन्हीं दिशाओं में अपना मुख करके पढाई करना चाहिए। इसके लिए आपको अपनी स्टडी टेबल की सेटिंग भी ठीक करनी पडेगी।
4. रोज प्रात: बिस्तर से उठकर सबसे पहले घर की उत्तर एवं पूर्व की दिशाओं की खिडकियां व दरवाजे खोलें।
5. घर की उत्तर दिशा की लॉबी या बैलकनी में एक सुंदर-सा छोटा वॉटर फाउंटेन रखें व इसे रोज सुबह एक-दो घंटे तक जरूर चलाएं।
6. उत्तर दिशा को बेहतर करियर के उद्देश्य से प्रभावशाली बनाने के लिए िफश एक्वेरियम का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसमें एक समय में कम से कम नौ की संख्या में गोल्ड फिश होनी चाहिए, जिनमें से कम से कम एक काले रंग की भी होनी चाहिए।
7. यदि स्थान या साधन की कोई मजबूरी हो तो आर्टिफिशियल िफश एक्वेरियम का प्रयोग करना भी करियर में सहायक होता है।
8. यदि घर की उत्तर दिशा में कोई फिश एक्वेरियम या वॉटर-फाउंटेन लगाना संभव न हो तो दीवार पर जल का चित्र या दृश्य भी लगाया जा सकता है। परंतु अच्छा यह होगा कि चित्र में लगातार बहता हुआ जल ही प्रदर्शित किया गया हो, जैसे पहाडी झरना, नदी, सागर तट की लहरें, फव्वारा आदि। यहां रुके जल के चित्र नहीं लगाने चाहिए। जैसे- तालाब, कुआं, जोहड आदि।
9. उत्तर दिशा के साथ तालमेल रखने वाले नीले रंग का प्रयोग इस दिशा में स्थित कमरों की दीवारों पर करवाएं। इससे परिवार के सदस्यों की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है व यह सभी के जीवन में करियर व रोजगार के उत्तम साधन लाता है। यह प्रयोग के पहले से चलते हुए व्यवसाय या करियर में भी लाभ दिलाता है व परिवार के अन्य सदस्यों का भविष्य उज्जवल करता है।
10. यदि आपको अपने बिजनेस के संबंध में या बच्चों को शिक्षा, खेल-कूद, कला, सृजनात्मक गतिविधियों के माध्यम से कुछ प्रशंसा पत्र, मेडल, ट्रॉफी या कोई स्मृतिचिह्न मिले हों तो इन सभी को अपने कमरे या ड्राइंग रूम की उत्तर दिशा की दीवार पर बने ऐसे शो केस में सजाएं, जिसमें पीछे की दीवार की ओर शीशा लगा हो। इससे शीशे का दुगना करने वाला प्रभाव उपलब्धियों में दिन दुगनी व रात चौगुनी वृद्धि करने में सहायक सिद्ध होगा।
11. अगर आप विदेशों में बेहतर भविष्य की संभावनाएं तलाश रहे हैं तो अपने टेबल पर एक ग्लोब रखें या दक्षिण दिशा की दीवार पर विश्व का मानचित्र लगाएं।
12. चाइनीज वास्तुशास्त्र फेंगशुई के अनुसार घर की उत्तर दिशा में धातु या क्रिस्टल का बना एक छोटा, सुंदर-सा कछुआ कुछ इस प्रकार रखें कि उसका मुख सदा पूर्व दिशा की और पूंछ पश्चिम दिशा में हो। इससे करियर के विकास में बहुत सहायता मिलती है।
13. उत्तर दिशा में शोपीस के तौर पर जंपिंग फिश, डॉल्फिन या मछलियों के जोडे का प्रतीक भी किसी हलके शोकेस या दीवार पर सजाना, युवा पीढी के बौद्धिक स्तर में निखार लाकर उन्हें सकारात्मक शक्ति प्रदान करता है।
14. यदि आप अपने घर से कोई बिजनेस, कारोबार आदि करते हों या फिर ऑफिस में बैठकर कार्य करते हों तो ध्यान दें कि आपकी पीठ के पीछे ठोस दीवार जरूर हो। वहां कोई खिडकी या दरवाजा है तो वह आपको अपने प्रतिद्वंद्वी की तुलना में पिछड जाने का कारण बन सकता है। इससे भविष्य में अनेकों बाधाएं भी आ सकती हैं। यदि किसी कारणवश पीठ के पीछे की खिडकी को बंद करके ठोस दीवार बनाना संभव न हो तो ऐसे में आप या तो अपनी टेबल को घुमा कर दूसरी ओर लगा लें या फिर उपरोक्त खिडकी पर कोई भारी पर्दा या ब्लाइंड्स आदि लगवा दें।
15. अपने व्यवहार को सकारात्मक बनाने के लिए क्रिस्टल या रोज क्वार्ट्स (गुलाबी रंग के सेमी प्रेशियस स्टोन्स) के शो पीस को कक्ष के पूर्वोत्तर के ईशान कोण में रखें।
16. अपने स्टडी रूम के बाहर बैलकनी, गैलरी में कुछ अच्छे पौधे लगाएं। नित नए फूलों से भरे पौधे पहली नजर में ही जीवन में नई आशा और स्फूर्ति भर देते हैं। लेकिन कैक्टस और बोनसाई न लगाएं क्योंकि ये पौधे नकारात्मक प्रभाव डालकर करियर के विकास में बाधक होते हैं।
17. रोज सुबह उगते हुए सूर्य को प्रणाम करें व दोनों हाथों में जल ले कर उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक संकल्प को बार-बार मन में दोहराएं और ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपको शारीरिक, आत्मिक एवं बौद्धिक क्षमता दे, ताकि आप बडी से बडी व कठिन बाधाओं को लांघते हुए अपने मनोवांछित लक्ष्य को प्राप्त कर लें। अगर आप अपने जीवन में वास्तुशास्त्र के इन आधारभूत नियमों को व्यवहार में लाने की कोशिश करेंगे तो निश्चित रूप से इसका आपके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पडेगा।
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