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15 January 2008

संकटमोचन हनुमानाष्टक


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मत्तगयन्द छन्द

बाल समय रबि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।

ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो॥

देवन आनि करी बिनती तब छाँडि दियो रबि कष्ट निवारो।

को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥1॥

बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।

चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो॥

कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो॥2॥ को नहिं.

अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो॥

हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥3॥ को नहिं..

रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो॥

चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥4॥ को नहिं..

बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो॥

आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो॥5॥ को नहिं..

रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग की फाँस सबे सिर डारो।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो॥

आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो॥6॥ को नहिं..

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो॥

जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो॥7॥ को नहिं..

काज किये बड देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।

कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो॥

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो॥8॥ को नहिं..

दोहा :- लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।

बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥ श्री हनुमान ललाजी की आरती आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की।

जाके बल से गिरिवर कांपै। रोग दोष जाके निकट न झांपै।

अंजनिपुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई।

दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।

लंका जारि असुर संहारे। सीतारामजी के काज संवारे।

लक्ष्मण मूर्छित पडे सकारे। आनि सजीवन प्राण उबारे।

पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखारे।

बायें भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।

सुर नर मुनि आरती उतारे। जय जय जय हनुमान उचारे।

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।

जो हनुमान जी की आरती गावै। बसि बैकुण्ठ परम पद पावै।

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