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07 May 2021

Astro tips


कुंडली फल कथन करने से पूर्व ध्यान रखने योग्य बातें :-
(अगर ज्योतिषी इन तथ्यों को फलित में मे उपयोग करें... तो सटीक फलादेश होगा।)
           
1. किसी भी ग्रह की महादशा में उसी ग्रह की अन्तर्दशा अनुकूल फल नहीं देती।
2. योगकारक ग्रह की महादशा में पापी या मारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में शुभ फल तथा उत्तरार्द्ध में अशुभ फल देने लगता है।
3. अकारक ग्रह की महादशा में कारक ग्रह की अन्तर्दशा आने पर प्रारंभ में अशुभ तथा उत्तरार्द्ध में शुभ फल की प्राप्ति होती है।
4. भाग्य स्थान का स्वामी यदि भाग्य भाव में बैठा हो और उस पर गुरु की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली माना जाता है।
5. लग्न का स्वामी सूर्य के साथ बैठकर विशेष अनुकूल रहता है।
6. सूर्य के समीप निम्न अंशों तक जाने पर ग्रह अस्त हो जाते हैं, (चन्द्र-१२ अंश, मंगल-१७ अंश, बुध-१३ अंश, गुरु-११ अंश, शुक्र-९ अंश, शनि-१५ अंश) फलस्वरूप ऐसे ग्रहों का फल शून्य होता है। अस्त ग्रह जिन भावों के अधिपति होते हैं उन भावों का फल शून्य ही समझना चाहिए।
7. सूर्य उच्च का होकर यदि ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली तथा पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तित्व होता है।
8. सूर्य और चन्द्र को छोड़कर यदि कोई ग्रह अपनी राशि में बैठा हो तो वह अपनी दूसरी राशि के प्रभाव को बहुत अधिक बढ़ा देता है।
9. किसी भी भाव में जो ग्रह बैठा है, इसकी अपेक्षा जो ग्रह उस भाव को देख रहा होता है, उसका प्रभाव ज़्यादा रहता है।
10. जिन भावों में शुभ ग्रह बैठे हों या जिन भावों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वे भाव शुभ फल देने में सहायक होते हैं।
11. एक ग्रह दो भावों का अधिपति होता है। ऐसी स्थिति में वह ग्रह अपनी दशा में लग्न से गिनने पर जो राशि पहले आएगी उसका फल वह पहले प्रदान करेगा।
12. दो केन्द्रों का स्वामी ग्रह यदि त्रिकोण के स्वामी के साथ बैठे हैं तो उसे केंद्रत्व दोष नहीं लगता और वह शुभ फल देने में सहायक हो
जाता है। सामान्य नियमों के अनुसार यदि कोई ग्रह दो केंद्र भावों का स्वामी होता है तो वह अशुभ फल देने लग जाता है चाहे वह जन्म-कुंडली में करक ग्रह ही क्यों न हो।
13. अपने भाव से केन्द्र व त्रिकोण में पड़ा हुआ ग्रह शुभ होता है।
14. केंद्र के स्वामी तथा त्रिकोण के स्वामी के संबंध हो तो वे एक दूसरे की दशा में शुभ फल देते हैं। यदि संबंध न हो तो एक की महादशा में जब दूसरे की अंतर्दशा आती है तो अशुभ फल ही प्राप्त होता है।
15. वक्री होने पर ग्रह अधिक बलवान हो जाता है तथा वह ग्रह जन्म-कुंडली में जिस भाव का स्वामी है, उस भाव को विशेष फल प्रदान करता है।
16. यदि भावाधिपति उच्च, मूल त्रिकोणी, स्वक्षेत्री अथवा मित्रक्षेत्री हो तो शुभफल करता है।
17. यदि केन्द्र का स्वामी त्रिकोण में बैठा हो या त्रिकोण केंद्र में हो तो वह ग्रह अत्यन्त ही श्रेष्ठ फल देने में समर्थ होता है। जन्म-कुंडली में पहला, पाँचवा तथा नवाँ भाव त्रिकोण स्थान कहलाते हैं। परन्तु कोई ग्रह त्रिकोण में बैठकर केंद्र के स्वामी के साथ संबंध स्थापित करता है तो वह न्यून योगकारक ही माना जाता है।
18. त्रिक स्थान (कुंडली के ३, ६, ११वे भाव को त्रिक स्थान कहते हैं) में यदि शुभ ग्रह बैठे हो तो त्रिक स्थान को शुभ फल देते हैं परन्तु स्वयं दूषित हो जाते हैं और अपनी शुभता खो देते हैं।
19. यदि त्रिक स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो त्रिक भावों को पापयुक्त बना देते हैं पर वे ग्रह स्वयं शुभ रहते हैं और अपनी दशा में शुभ फल देते हैं।
20. चाहे अशुभ या पाप ग्रह ही हो, पर यदि वह त्रिकोण भाव में या त्रिकोण भाव का स्वामी होता है तो उसमे शुभता आ जाती है।
21. एक ही त्रिकोण का स्वामी यदि दूसरे त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उसकी शुभता समाप्त हो जाती है और वह विपरीत फल देते है। जैसे पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो संतान से संबंधित परेशानी रहती है या संतान योग्य नहीं होती।
22. यदि एक ही ग्रह जन्म-कुंडली में दो केंद्र स्थानों का स्वामी हो तो शुभ फलदायक नहीं रहता। जन्म-कुंडली में पहला, चौथा, सातवाँ तथा दसवां भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं।
23. शनि और राहु विछेदात्मक ग्रह हैं अतः ये दोनों ग्रह जिस भाव में भी होंगे संबंधित फल में विच्छेद करेंगे जैसे अगर ये ग्रह सप्तम भाव में हों तो पत्नी से विछेद रहता है। यदि पुत्र भाव में हों तो पुत्र-सुख में न्यूनता रहती है।
24. राहू या केतू जिस भाव में बैठते हैं उस भाव की राशि के स्वामी समान बन जाते हैं तथा जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उस ग्रह के गुण ग्रहण कर लेते हैं।
25. केतु जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है उस ग्रह के प्रभाव को बहुत अधिक बड़ा देता है।
26. लग्न का स्वामी जिस भाव में भी बैठा होता है उस भाव को वह विशेष फल देता है तथा उस भाव की वृद्धि करता है।
27. लग्न से तीसरे स्थान पर पापी ग्रह शुभ प्रभाव करता है लेकिन शुभ ग्रह हो तो मध्यम फल मिलता है।
28. तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में पापी ग्रहों का रहना शुभ माना जाता जाता है।
29. तीसरे भाव का स्वामी तीसरे में, छठे भाव का स्वामी छठे में या ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो ऐसे ग्रह पापी नहीं रहते अपितु शुभ फल देने लग जाते हैं।
30. चौथे भाव में यदि अकेला शनि हो तो उस व्यक्ति की वृद्धावस्था अत्यंत दुःखमय व्यतीत होती है।
31. यदि मंगल चौथे, सातवें , दसवें भाव में से किसी भी एक भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन दुःखमय होता है। पिता से कुछ भी सहायता नहीं मिल पाती और जीवन में भाग्यहीन बना रहता है।
32. यदि चौथे भाव का स्वामी पाँचवे भाव में हो और पाँचवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो विशेष फलदायक होता है। इसी प्रकार नवम भाव का स्वामी दशम भाव में बैठा हो तथा दशम भाव का स्वामी नवम भाव में बैठा हो तो विशेष अनुकूलता देने में समर्थ होता है।
33. अकेला गुरु यदि पंचम भाव में हो तो संतान से न्यून सुख प्राप्त होता है या प्रथम पुत्र से मतभेद रहते हैं।
34. जिस भाव की जो राशि होती है उस राशि के स्वामी ग्रह को उस भाव का अधिपति या भावेश कहा जाता है। छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी जिन भावों में रहते हैं, उनको बिगाड़ते हैं, किन्तु अपवाद रूप में यदि यह स्वगृही ग्रह हों तो अनिष्ट फल नहीं करते, क्योंकि स्वगृही ग्रह का फल शुभ होता है।
35. छठे भाव का स्वामी जिस भाव में भी बैठेगा, उस भाव में परेशानियाँ रहेगी। उदहारण के लिए छठे भाव का स्वामी यदि आय भाव में हो तो वह व्यक्ति जितना परिश्रम करेगा उतनी आय उसको प्राप्त नहीं सकेगी।
36.यदि सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो उस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता और पति-पत्नी में परस्पर अनबन बनी रहती है।
37. अष्टम भाव का स्वामी जहाँ भी बैठेगा उस भाव को कमजोर करेगा।
38. शनि यदि अष्टम भाव में हो तो उस व्यक्ति की आयु लम्बी होती है।
39. अष्टम भाव में प्रत्येक ग्रह कमजोर होता है परन्तु सूर्य या चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो कमजोर नहीं
रहते।
40. आठवें और बारहवें भाव में सभी ग्रह अनिष्टप्रद होते हैं, लेकिन बारहवें घर में शुक्र इसका अपवाद है क्योंकि शुक्र भोग का ग्रह है बारहवां भाव भोग का स्थान है। यदि शुक्र बारहवें भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति अतुलनीय धनवान एवं प्रसिद्ध व्यक्ति होता है।
41. द्वादश भाव का स्वामी जिस भाव में भी बैठता है, उस भाव को हानि पहुँचाता है।
42. दशम भाव में सूर्य और मंगल स्वतः ही बलवान माने गए हैं, इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चन्द्र और शुक्र, लग्न में बुध तथा गुरु और सप्तम भाव में शनि स्वतः ही बलवान हो जाते हैं तथा विशेष फल देने में सहायक होते हैं।
43.ग्यारहवें भाव में सभी ग्रह अच्छा फल करते हैं।
44. अपने स्वामी ग्रह से दृष्ट, युत या शुभ ग्रह से दृष्ट भाव बलवान होता है।
45. किस भाव का स्वामी कहाँ स्थित है तथा उस भाव के स्वामी का क्या फल है, यह भी देख लेना चाहिए। यदि कोई ग्रह जिस राशि में है उसी नवमांश में भी हो तो वह वर्गोत्तम ग्रह कहलाता है और ऐसा ग्रह पूर्णतया बलवान माना जाता है तथा श्रेष्ठ फल देने में सहायक होता है।

ज्योतिष और रोग


मेष लग्न में रोगों के संभावित योग
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मेष लग्न और रोग
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(1) मेष लग्न में षष्टेश बुध लग्न में पापग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक जलस्राव से
अंधा होता है।

(2)मेष लग्न के चौथे भाव में पापग्रह हो तथा चतुर्थेश चंद्रमा पापग्रहों के मध्य हो
तो जातक को हृदय रोग होता है।

(3) मेष लग्न में चंद्रमा यदि मंगल के साथ अष्टम स्थान में हो तो जातक को हृदय
रोग होता है ।

(4) मेष लग्न में चतुर्थश चंद्रमा मिथुन, कन्या या वृश्चिक का हो एवं निर्बल हो तो
जातक को हृदय रोग होता है।

(5) मेष लग्न में शनि कर्क का, षष्टेश बुध एवं सूर्य अन्य पापग्रहों के साथ या,
पापमध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

(6) जातक पारिजात के अनुसार मेष लग्न में चौथे और पांचवें भाव में पापग्रह हो तो
व्यक्ति को हदय रोग होता है।

(7) मेष लग्न में कर्क का शनि एवं कुंभ का सूर्य हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता
है।

(8) मेष लग्न में चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पापग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्नेश मंगल
निर्बल हो तो जातक को असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है ।

(9) मेष लग्न में वृश्चिक का सूर्य पापग्रहों के मध्य हो, पापदृष्ट हो तो जातक को
असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है ।

(10) मेष लग्न में मंगल+ चंद्रमा + शनि एक साथ दुःस्थान में हों तो वाहन दुर्घटना
से मृत्यु होती है।

(11) मेष लग्न में मंगल + शनि लग्नस्थ हो, चंद्रमा चौथे, सूर्य + शुक्र बारहवें हो तो
जातक को 24 वर्ष की आयु में भयंकर पीलिया, रक्त-पित्त दोष होता है।

(12) मेष लग्न में लग्नस्थ पापग्रह हो, लग्न का स्वामी मंगल बलहीन हो तो सदैव रोगी होता है।

(13) मेष लग्न में क्षीण चंद्रमा बलहीन हो, किसी पापग्रह की लग्न पर दृष्टि हो तो
व्यक्ति सदैव रोगी रहता है।

(14) मेष लग्न में मंगल चौथे या द्वादश भाव में शनि+ बुध के साथ हो तो जातक
कुष्ठ रोग से पीड़ित रहता है।

(15) मेष लग्न में शनि + चंद्रमा से युत होकर लग्नस्थ हो, बृहस्पति छठे भाव में हो तो जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित रहता है।

(16) मेष लग्न में उच्च का बृहस्पति केंद्र में हो, बुध त्रिकोण में हो तथा मंगल बलवान
हो तो जातक 80 वर्ष की स्वस्थ आयु प्राप्त करता है।

(17) मेष लग्न में लग्नेश मंगल लग्न को देखता हो, सभी शुभग्रह केंद्र में हों तो
जातक 75 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है ।

(18) मेष लग्न में मंगल हो, अथवा मंगल पांचवें सिंह का तथा सूर्य सातवें तुला का
हो तो जातक 70 वर्ष की निरोग आयु को प्राप्त करता है ।

(19) मेष लग्न में शनि+मंगल+ सूर्य हो, चंद्रमा द्वादश में तथा गुरु बलहीन हो तो
ऐसा जातक 70 वर्ष तक जीता है।

(20) मेष लग्न में चंद्रमा+ सूर्य दसम भाव में, शनि नीच का लग्न में, बृहस्पति कर्क
का चतुर्थ भाव में हो तो एक प्रकार के उच्च राजयोग की सृष्टि होती है पर ऐसा
जातक मात्र 68 वर्ष तक ही जी पाता है।

(21) यदि शनि लग्न में, कर्क का चंद्रमा चौथे, मंगल सातवें और सूर्य दसवें किसी भी अन्य शुभ ग्रह के साथ हो तो ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ
60 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(22) मेष लग्न में अष्टमेश मंगल सातवें हो तथा चंद्रमा छठे या आठवें स्थान में
पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(23) शनि लग्न में किसी भी अन्य ग्रह के साथ हो, चंद्रमा आठवें या द्वादश स्थान में
हो तो ऐसा जातक सैद्धांतिक तथा विद्वान् होता हुआ 52 वर्ष की आयु में ही गुजर जाता है।

(24) मेष लग्न में बलवान चंद्रमा लग्न में हो पर सूर्य से 120 अंश दूर हो तो जातक
राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ 48 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(25) मेष लग्न में लग्नेश मंगल अष्टम भाव में पापग्रहों के साथ हो, और छठे स्थान
में बुध पापग्रहों के साथ हो तथा शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जीता है।

(26) मेष (चर) लग्न में चंद्रमा कन्या या वृश्चिक का शुभग्रहों से दृष्ट न हो, कोई भी
शुभ ग्रह केंद्र में न हो तो जातक मात्र 33 वर्ष तक जीता है।

(27) मेष लग्न में शनि+ मंगल लग्नस्थ हो, चंद्रमा आठवें एवं बृहस्पति छठे हो तो
जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त होता है।

(28) मेष लग्न के द्वितीय व द्वादश भाव में पापग्रह हो, लग्नेश निर्बल हो, लग्न, द्वितीय
व द्वादश भाव शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त
होता है।

(29) मेष का बृहस्पति एवं मीन का मंगल परस्पर एक-दूसरे के घर में बैठने से
'बालारिष्ट योग' बनता है ऐसे जातक की मृत्यु 12 वर्ष के भीतर होती है।

(30) मेष लग्न में चौथे राहु तथा चंद्रमा आठवें शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो बालारिष्ट
योग बनता है। ऐसा जातक आठ वर्ष के पूर्व मृत्यु को प्राप्त होता है।

(31) मेष लग्न में अष्टमेश मंगल छठे स्थान में षष्टेश बुध के साथ हो, शनि सप्तम में
अन्य पापग्रहों के साथ हो, अष्टम स्थान में भी पापग्रह हो तो जातक 31 वर्ष की
आयु में ही शल्य चिकित्सा या गुप्तरोग के कारण मृत्यु को प्राप्त करता है।

(32) मेष लग्न में मंगल हो, बृहस्पति बारहवें हो, शुक्र छठे स्थान में नीच का हो, शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि न हो तो उपाय न करने पर ऐसे जातक की एक माह में
मृत्यु हो जाती है।

(33) मेष लग्न में सूर्य+चंद्रमा यदि कन्या राशि में, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो
'बालारिष्ट योग' बनता है तथा बालक की नौ वर्ष की आयु में मृत्यु होती है।

(34) मेष लग्न में बृहस्पति लग्नस्थ हो, चंद्रमा छठे या आठवें, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो 'बालारिष्ट योग' बनता है । ऐसे जातक की आयु आठ वर्ष की होती है ।

(35) मेष लग्न में सूर्य द्वादश में, चंद्रमा छठे या आठवें, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो
जातक की 'तत्काल मृत्यु' हो जाती है।

(36) मेष लग्न के लग्न या पंचम भाव में सूर्य+राहु+शनि+मंगल+ गुरु इन पांच
ग्रहों की युति हो, चंद्रमा निर्बल हो तो जातक शीघ्र मर जाता है।

(37) मेष लग्न के सप्तम भाव में सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक
'मातृघातक' होता है।

(38) मेष लग्न के चतुर्थ भाव में मंगल के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक
'मातृघातक' होता है।

(39) मेष लग्न में लग्नस्थ शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक 'मातृघातक'
होता है।

(40) लग्न एवं लग्नेश दोनों पापग्रहों के मध्य हों, सप्तम में पापग्रह हो तथा
आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो ऐसा जातक जीवन से निराश होकर आत्महत्या
करता है।

(41) मेष (चर) लग्न में चंद्रमा पापग्रह के साथ हो, सप्तम में शनि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।

नोट👉 जन्म कुंडली मे उपरोक्त योग किसी भी एक या दो ग्रह के उच्च अथवा शुभ होने पर परिवर्तित भी हो सकते है लेकिन इन योगों का फल कम या अधिक मिलता अवश्य है। ऐसा बहुत कम ही देखा गया है कि उपरोक्त योग वाले जातकों पर ये नियम मान्य ना हो।

Ancestral curses - Astro

 Pitru Dosha (Ancestral curses) – A Short Synopsis

Pitra Dosha is a Topic which many modernized well educated astrologers most of them actually less Educated, look at with disdain and contempt. They say that this is used for squeezing money from the Clients. I do NOT think that any Good Astrologer would ever earn his Fees by putting Fear in the minds of his Clients; rather he is supposed to allay their Fears.

A Brief visiting into the reasoning for the Causes of this Dosha: -

1) Not doing the Tarpan, and Shradhas, Annual and otherwise properly.

People either don’t have time, or do not know about this, or do not care about this, or do it carelessly, or get it done by their servants for formality sake.

2) Insult of the Ancestors or forgetting them.

This is one prime reason for temporary misfortunes and unfortunate happenings happening from time to time in the family

At time of marriage of some family member, or when some auspicious function is held, if the Ancestors are not invited, or asked for to be taken part of, or not offered their due respects, this Dosha will manifest.

3) Acting against ones Kul Dharma

Suppose you are a Brahmin and start drinking Alcohol or eating Non veg, then this Dosha will manifest and you will become eligible to receive a curse from your Ancestors. Same for the other Varnas and Kulas.

4) Killing a Cow or a Snake.

Cow is considered to be a “Mother” since she gives Milk. And one is Not supposed to kill his Mother. A Snake is already a small form of SheshNaga and also most of the ancestors who have died in Alpa Ayu or untimely deaths get a Snake Yoni, therefore killing these are considered as Great Sins.

5) Not worshiping KulDevata or Kuldevi.

Who is the KulDevata or the Kuldevi ? They are the same Gods who have protected our Ancestors when they were alive. So when the ancestors see you now no more remembering these Spiritual entities and ignoring them, one invites this curse. Even for those who do NOT know who their Kuldevi is, we have a injunction through which these can be worshipped. In all Maanglik karyas in the family they must be remembered and made a Part of.

6) Answering Call of nature in some Pond, River or in the Sea.

We as Hindus must know that the Sea (Samudra) is known as “Bhraaman devta). In any case Water is the substance with which we offer tarpan to our Ancestors. Spoiling clear water by Urinating etc.on it carries a great Sin thus. (One should not even Urinate in a secluded place under any Tree.)

7) Apkarmas done in a Temple or Teertha Sthal.

These are places where one visits to wash off his Sins, and not to add further. Soone must avoid doing these here.

8) Having sex on Amavasya (New Moon).

Does one have Sex in front of his parents? No. On Days like new Moon, the dead Ancestors get a chance to visit the family and see into their affairs. If they have to watch you copulating, then the consequences can be well understood.

9) Physical Sexual relationships with Guru-Stri,Guru Patni or a prostitute .

A “Guru” is the Trinity of Brahma ,Vishnu and Mahesh. That said. No Kul allows or sanctions the men of their family to visit prostitutes. So if one does “Maryaada Bhang” of his Kul, then naturally he no more remains “Maryada Purshottam” but becomes worse than Ravana.

10) To marry in a lower varga than Yours

Every Kul has its own place in the Shrishti(Existence). Suppose you are a Brahmin, and fall in Love with a Kshudra lady and marry her, you are bringing down the exaltation state of Your family and bringing it down to a derogated stat. This will not receive any forgiveness.

11) Abortion

This is NOT Sanctioned. One prevents a Soul from attaining a Human Body when he indulges in this act. A Human Body is what even the Devatas in the heavens desire for. So when one indulges in this, he is going against nature and has to suffer for this gruesome Act. (Nature will not stop you from doing abortion, Raping someone, or murdering someone coz God has given you free Will. But it will take its course of Action. Because in Law of Nature every Effect has a Cause, and Vice versa).

There are a few more, which we will not go into presently due to lack of time and inclinations to write. I have also not got into details under each subheading above, coz we are not here to write stories but just put across the essence of what is the intent.

How the above Curses will take effect and what troubles one would face in His Life is a subject matter to discuss on some other day.

How the above Curses manifest in ones Birth Chart (Janma Kundli) and how to Locate them, and also what are the remedial measures, is also a subject matter to discuss on some other day.

BRAHMAHATYA DOSHA - Astro

 HOW TO IDENTIFY BRAHMAHATYA DOSHA AND EFFECTS IN YOUR BIRTH CHART

Brahmahatya, the serious sin
Brahmahatya is regarded as a grave affliction. It is said that the person who committed this sin will have to face severe consequences and that these need not only be confined to a single birth but may extend even to the ones that may follow. Here, the word ‘Brahma’ is generally believed to denote the sacred Brahmins and ‘Hatya’ means killing. Hence, it is normally held that this Dosha, the affliction is incurred due to the killing of a Brahmin. However, there are scriptures that claim that Brahmahatya will incur due to any manslaughter or even by committing many other transgressions.

Sins capable of causing Brahmahatya

The seven crimes that may lead to the deadly sin of Brahmahatya can be – slaughtering of a human being or causing physical or mental harm or pain; coveting other person’s wife or property; willful destruction of other’s belongings and poisoning; neglecting parents and ignoring ancestral worship; hurting noble men who are doing selfless service; stopping timely help from reaching people who are in dire need; and disrespecting teachers, elders and Vedic scholars.It is believed that such actions done in previous births by the individual or by his ancestors, may result in this lethal sin.

Brahmahatya in Legends

There are references in legends to the incarnations of the Supreme Gods Shiva and Vishnu themselves getting afflicted by this Dosha. While Lord Bhairava, the ferocious aspect of Shiva incurred this curse when he separated Lord Brahma’s 5th head, Vishnu’s Avatar of Lord Rama got affected as he slayed demon Ravana, who was an ardent devotees of Shiva.

Its Deadly Effects

The ramifications of Brahmahatya Dosha can be wide-ranging, serious and crippling, and may include chronic diseases, mental illness, fear, stress and lack of confidence, loss of employment and lack of career progression, all round impediments and failures, financial strains, restlessness and tension, discontent and sorrow, and marital disharmony and separations.

The Identifying Factors

Such effects are definitely there for one to know about the gravity of the Brahmahatya Dosha. But a person need not wait to suffer such consequences to know about this affliction. Brahmahatya Dosha is very much discernable and it is the ancient system of Vedic astrology which provides the unmistakable indicators for identifying the same. Of the nine planets that constitute the powerful Navagraha, three planetary Lords, Jupiter, Saturn and Mars can collectively provide definite pointers to the incurring of the much feared Brahmahatya Dosha. It is the placement of these planets at the time of birth of an individual, as reflected in a birth chart that will provide the clue for recognizing this Brahmahatya affliction. Jupiter, called as Guru, is a highly regarded planet. He is considered as an embodiment of wisdom and is hailed as Deva Guru, the preceptor of the heavenly beings. Saturn or Shani is perhaps the most dreaded of planets and he is regarded as the lord of Karma, the one who ensures without fear or favor, that people undergo the effects of one’s own karmas, the past deeds. Mars, known variously as Mangal, Kuja, etc. is an aggressive and malefic planet, who can make or mar one’s fortune depending upon his placement in a natal chart.

How to identify the Brahmahatya Dosha?

In a natural zodiac which starts in the sign of Aries, Jupiter rules the 9th House that indicates ‘Bhagya’, the fortune and also the deeds of the past births. Saturn is the lord of the 10th House that denotes ‘Karma’, the job performed and actions. The 8th House is of difficulties and it is Mars, who rules over it. A Brahmahatya Dosha is said to be indicated, if in a horoscope

Planets Jupiter and Saturn mutually aspect each other, that is, one casts its glance on the other
Jupiter and Saturn are in conjunction
When there is a Jupiter-Mars-Saturn conjunction
When the 5th and the 9th Houses are afflicted
When Yama Kruthi Yoga is indicated in a Horoscope. This Yoga denotes the impact of Yama, the God of death. This is said to happen for Aries and Scorpio Ascendants, when Rahu is in the Ascendant, Sun is in the 3rd House and the planets Mercury, Venus, Mars and Saturn are present together in the 8th House.


Remedies for Brahmahatya Dosha

Vedic technology itself has passed on some powerful remedies for the Dosha, the performance of which can invoke divine blessings and help a person to overcome its effects and lead a life of prosperity, progression and peace. The remedial worship will include Archana, the light and sound ceremony, Abishekam, the hydration ceremony, Homa, the fire lab, special poojas and rituals, and cow feeding.

SOURCE : ASTROVED

सूर्य से जन्म समय कैसे देखते है ?

 उसका अभ्यास करेगे।

कुंडली में 12 घर को भाव कहते हे।हम अगर सूर्य को पहले अर्थात

लग्न में सूर्य को रखते है तो सुबह 06 से 8 तक,

बाहरवें घर में सूर्य हो तो सुबह 08 से 10तक,

सूर्य ग्याहरवें घर में हो तो सुबह 10 से 12,

सूर्य दसवे घर में हो तो दोपहर 12 से 2
 बजे तक,

सूर्य नवे घर में हो तो दोपहर 2 से 4 बजे तक,

सूर्य आठवें घर में हो तो शाम 4 से 6 बजे तक,

सूर्य सातवे घर में हो तो  शाम 6 से 8 बजे तक,

सूर्य छठे घर में हो तो शाम 8 से 10 बजे तक ,

सूर्य पाँचवे घर में हो तो रात्रि 10 से 12 बजे तक,

सूर्य चौथे घर में हो तो मध्य रात्रि 12 से 2 बजे तक,

सूर्य तीसरे घर में हो तो रात्रि 2 से 4 बजे तक

और सूर्य दूसरे घर में हो तो सुबह 4 से 6 बजे के आसपास का समय समझना चाहिए।

( कोई लग्न छोटा बडा होता है ईस लिऐ कभी कभी आगे पिछे होता है उसका ध्यान रखे )

अगर सूर्य मेष राशि में हो तो 14 अप्रेल से 13 मई के मध्य,

सूर्य वर्षभ राशि में हो तो 14 मई से 13 जून तक,

सूर्य मिथुन राशि में हो तो 14 जून से 13 जुलाई के मध्य,

सूर्य  कर्क राशि में हो तो 14 जुलाई से 13 अगस्त के मध्य,

सूर्य सिंह राशि में हो तो 14 अगस्त से 13 सितम्बर के मध्य ,

सूर्य कन्या राशि में हो तो 14 सितम्बर से 13 अक्टूबर के मध्य,

सूर्य तुला राशि में हो तो 14 अक्टूबर से 13 नवम्बर के मध्य,

सूर्य व्रश्चिक राशि में हो तो 14 नवम्बर से 13 दिसम्बर के मध्य,

सूर्य धनु राशि में हो तो 14 दिसम्बर से 13 जनवरी के मध्य,चाहिए।

अगर सूर्य मकर में हो तो 14 जनवरी से 13 फरवरी के मध्य,

सूर्य कुम्भ में हो तो 14 फरवरी से 13 मार्च  के मध्य,

सूर्य मीन में हो तो 14 मार्च से 13 अप्रेल के मध्य जन्म तारीख समझनी चाहिए।:

 सर्दी और गर्मी में समय अलग अलग होता है
क्योंकि लगन में सूर्योदय के समय का सूर्य होता है और
सप्तम में सूर्यास्त के समय

 सूर्य जिस राशि में स्तिथ हो उस राशि में 3 जोड़ दें तो उस महीने की 14 तारीख से अगले महीने की 14 तारीख के बीच का जन्म होता है
जैसे
सूर्य मिथुन में है तो
3+3=6
अर्थात 14 जून से 14 जुलाई के बीच का जन्म होगा

क्या विवाह के लिए कुंडली मिलान जरूरी है?


कैसे दूर होते हैं कुण्डली के दोष?
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भारतीय हिन्दू परिवारों में यह माना जाता है कि लड़के या लड़की के विवाह से पूर्व किसी ज्योतिषी से कुण्डली जरूर मिलवा लेनी चाहिए। ज्यादातर भारतीय हिन्दू परिवार ज्योतिषी के पास अपने पुत्र या पुत्री के विवाह के लिए कुंडली मिलवाने या जन्मपत्रिका मिलान के लिए इसलिए जाते हैं, ताकि विवाहित होने वाला जोड़ा किसी प्रकार के दुर्भाग्य का शिकार न हो, और अपनी जिंदगी हंसी खुशी से काट सके। लोग ये विश्वास रखते हैं कि विवाह के बाद एक दूसरे के भाग्य एवं दुर्भाग्य का असर अपने साथी पर पड़ता है तो क्यों नहीं पहले ही ये जान लिया जाए कि क्या उनका भाग्य आपस में अच्छा तालमेल रखता है। या नहीं, इसलिए ज्योतिष अनुरूप कुण्डली मिलान करके गुण दोष का विवाह पूर्व पता लगाया जाता है।
अद्भुत एवं कठिन कार्य है गुण मिलान
कुण्डली गुण मिलान एक अद्भुत एवं कठिन कार्य है जिसमें कई ज्योतिष संयोग और नियमों को परखा जाता है। गुण मिलान की प्रक्रिया दो तरह से की जा सकती है। केवल प्रचलित नाम के उपयोग से, या जन्मपत्री के द्वारा जो कि जन्म तारीख के आधार पर बनाई जाती हैं। जन्मपत्री में जन्म राशि का उपयोग करके गुण मिलान किया जाता है। अगर किसी की जन्म तारीख पता नहीं हो तो फिर उसके नाम के पहले अक्षर से गुण मिलान करते हैं। ज्यादातर ज्योतिषी अष्टकूट चक्र या अवकहडा चक्र का उपयोग लड़के और लड़की के गुण दोष मिलान के लिए करते हैं।
कुंडली मिलान के माध्यम से वर-वधु की कुंडलियों का आकलन किया जाता है ताकि वह जीवनभर एक-दूसरे के पूरक बने रहें. लेकिन वर्तमान समय में केवल यह देखा जाता है कि यह मेरे लिए फायदेमंद रहेगा या नहींैं। दुनिया भर के प्रश्न व्यक्ति एक ज्योतिषी के समक्ष रख देते हैं जबकि कुण्डली मिलान में वर-वधु का आपसी सामंजस्य, विवाह का मांगलिक सुख तथा आने वाला दशाक्रम देखा जाना चाहिए. लेकिन लगता है कि इन सब बातों को आम व्यक्ति की तरह ज्योतिषी भी शायद भूल गये हैंैं।
कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक सरसरी निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत हैैं। कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुऔं। सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढऩा चाहिए।
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं. बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है. यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें. आइए आपको कुछ दोषों के परिहार के विषय में जानकारी देने का प्रयास करते हैं।

क्या होते हैं दोष?
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कुंडली मिलान के मुख्य दोष इस प्रकार हैं-
गण दोष
यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें -
चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है।
ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाडयि़ों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है। यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है।
भकूट दोष का परिहार-
भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं- जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वादश दोष होता है। इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न-भिन्न प्रकार से हो जाता है।
षडाष्टक परिहार-
यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है।
यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए।
मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए।
यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है।
नव-पंचम का परिहार-
नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है।
यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है।
मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए।
यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है।
द्वि-द्वादश योग का परिहार-
लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है।
द्वि-द्वादश योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है।
मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वादश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
नाड़ी दोष का परिहार-
नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है-
वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है।
शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है।
ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृृगशिरा, आद्र्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है।

Astro tips

 गुरुवार को नहीं करने चाहिए निम्नलिखित कार्य
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गुरुवार देवगुरु बृहस्पति के साथ जुड़े होने से धर्म का दिन होता है। ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानी कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है।

गुरुवार को किए गए वर्जित कार्य पति, संतान की उन्नति में बाधा डालते है।
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शास्त्रों में गुरुवार को महिलाओं को बाल धोने से इसलिए मनाही की गई है। क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। बृहस्पतिवार को सिर धोना बृहस्पति को कमजोर बनाता है जिससे कि बृहस्पति के शुभ प्रभाव में कमी होती है। इसी कारण से इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए जिसका असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है। उनकी उन्नति बाधित होती है।

क्षौर कर्म
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शास्त्रों में गुरु ग्रह को जीव कहा गया है। जीव मतलब जीवन। जीवन मतलब आयु। गुरुवार को नेल कटिंग और शेविंग करना गुरु ग्रह को कमजोर करता है। जिससे जीवन शक्ति दुष्प्रभावित होती है। उम्र में से दिन कम करती है।

बृहस्पति को किस तरह कमजोर करते कुछ अन्य निम्न लिखित कार्य
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जिस प्रकार से बृहस्पति का प्रभाव शरीर पर रहता है। उसी प्रकार से घर पर भी बृहस्पति का प्रभाव उतना ही अधिक गहरा होता है। वास्तु अनुसार घर में ईशान कोण का स्वामी गुरु होता है। ईशान कोण का संबंध परिवार के नन्हे सदस्यों यानी कि बच्चों से होता है। साथ ही घर के पुत्र संतान का संबंध भी इसी कोण से होता है। ईशान कोण धर्म और शिक्षा की दिशा है। घर में अधिक वजन वाले कपड़ों को धोना, कबाड़ घर से बाहर निकालना, घर को धोना या पोछा लगाना। घर के ईशान कोण को कमजोर करता है। उससे घर के बच्चों, पुत्रों, घर के सदस्यों की शिक्षा, धर्म आदि पर शुभ प्रभाव में कमी आती है।

गुरुवार लक्ष्मी नारायण का दिन होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण का एक साथ पूजन जीवन में खुशियों की अपार वृद्धि कराने वाला होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण की एक साथ पूजन करने से पति- पत्नी के बीच कभी दूरिया नहीं आती है। साथ ही धन की वृद्धि होती है।

जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के प्रबल होने से उन्नति के रास्ते आसानी से खुलते हैं। यदि गुरु ग्रह को कमजोर करने वाले कार्य किए जाए तो पदोन्नति होने में रुकावटें आती है।

किसी भी जन्मकुंडली में दूसरा और ग्यारहवां भाव धन के स्थान होते हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार को गुरु ग्रह को कमजोर किए जाने वाले काम करने से धन की वृद्धि रुक जाती है। धन लाभ की जो भी स्थितियां बन रही हों। उन सभी में रुकावट आने लगती है। सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना, शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो। ये सभी काम गुरुवार को करना धन हानि का संकेत हैं। तरक्की को कम करने का संकेत हैं।

Astrology ज्योतिष में स्वर विज्ञान

 ज्योतिष में स्वर विज्ञान
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आयुर्वेद, वैज्ञानिक अथवा ज्योतिष के अस्तित्व में सभी कुछ जोड़ों में मौजूद है - स्त्री-पुरुष, दिन-रात, तर्क-भावना आदि। इस दोहरेपन को द्वैत भी कहा जाता है। हमारे अंदर इस द्वैत का अनुभव हमारी रीढ़ में बायीं और दायीं तरफ मौजूद नाड़ियों से पैदा होता है। आइये जानते हैं इन नाड़ियों के बारे मे।

अगर आप रीढ़ की शारीरिक बनावट के बारे में जानते हैं, तो आप जानते होंगे कि रीढ़ के दोनों ओर दो छिद्र होते हैं, जो वाहक नली की तरह होते हैं, जिनसे होकर सभी धमनियां गुजरती हैं। ये इड़ा और पिंगला, यानी बायीं और दाहिनी नाड़ियां हैं।

शरीर के ऊर्जा‌-कोष में, जिसे प्राणमयकोष कहा जाता है, 72,000 नाड़ियां होती हैं। ये 72,000 नाड़ियां तीन मुख्य नाड़ियों- बाईं, दाहिनी और मध्य यानी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं। ‘नाड़ी’ का मतलब धमनी या नस नहीं है। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। इन 72,000 नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 अलग-अलग रास्तों से होकर गुजरती है।

इड़ा और पिंगला जीवन की बुनियादी द्वैतता की प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या आप इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं, या यह आपके दो पहलू – लॉजिक या तर्क-बुद्धि और इंट्यूशन या सहज-ज्ञान हो सकते हैं। जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा वह अभी है। सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता। लेकिन जैसे ही सृजन होता है, उसमें द्वैतता आ जाती है।

पुरुषोचित और स्त्रियोचित का मतलब लिंग भेद से – या फिर शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होने से – नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है। प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है, तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं।

अगर आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, जीवन असल में तभी शुरू होता है।

  वैराग्य:
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मूल रूप से सुषुम्ना गुणहीन होती है, उसकी अपनी कोई विशेषता नहीं होती। वह एक तरह की शून्यनता या खाली स्थान है। अगर शून्याता है तो उससे आप अपनी मर्जी से कोई भी चीज बना सकते हैं। सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश होते ही, आपमें वैराग्यष आ जाता है। ‘राग’ का अर्थ होता है, रंग। ‘वैराग्य’ का अर्थ है, रंगहीन यानी आप पारदर्शी हो गए हैं। अगर आप पारदर्शी हो गए, तो आपके पीछे लाल रंग होने पर आप भी लाल हो जाएंगे। अगर आपके पीछे नीला रंग होगा, तो आप नीले हो जाएंगे। आप निष्पक्ष हो जाते हैं। आप जहां भी रहें, आप वहीं का एक हिस्सा बन जाते हैं लेकिन कोई चीज आपसे चिपकती नहीं। आप जीवन के सभी आयामों को खोजने का साहस सिर्फ तभी करते हैं, जब आप आप वैराग की स्थिति में होते हैं।

अभी आप चाहे काफी संतुलित हों, लेकिन अगर किसी वजह से बाहरी स्थिति अशांतिपूर्ण हो जाए, तो उसकी प्रतिक्रिया में आप भी अशांत हो जाएंगे क्योंकि इड़ा और पिंगला का स्वभाव ही ऐसा होता है। अगर आप इड़ा या पिंगला के प्रभाव में हैं तो आप बाहरी स्थितियों को देखकर प्रतिक्रिया करते हैं। लेकिन एक बार सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश हो जाए, तो आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके अंदर एक खास जगह होती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी स्थितियों का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर यह स्थिर अवस्था बना ले।और उसी को कहते है तूर्य अवस्था।

स्‍वर विज्ञान का अल्प ज्ञान भी हमें काफी सारी दैनिक समस्यायों से बचा लेता है और निरंतर अभ्यास हमें योगियों के स्तर तक ले  जा सकता है।

श्वसन प्रक्रिया  हो सकता है हमारे लिए बिना प्रयास किए की जाने वाली एक सामान्‍य क्रिया है। शरीर की अधिकांश क्रियाओं के लिए हमें सायस प्रयास करने पड़ते हैं। श्‍वास के प्रति हम सचेत हो या न हों हृदय की धड़कन की तरह श्‍वास भी निरंतर चलने वाली क्रिया है। श्‍वास के साथ हम प्राणवायु शरीर के भीतर लेते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से श्‍वास के साथ आने वाली ऑक्‍सीजन हमारे फेफड़ों तक जाती है और वहां पर रक्‍त कोशिकाएं उस ऑक्‍सीजन को लेकर हमारे विभिन्‍न अंगों तक पहुंचाती हैं, लेकिन श्‍वास का काम यही समाप्‍त नहीं हो जाता।

योग में श्‍वास को एक अलग अंदाज में प्राण कहा गया है। श्‍वास लेने की विधि में व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ और रोगी रहने का राज छिपा है। सही समय पर सही मात्रा में श्‍वास लेने वाला व्‍यक्ति रोग से बचा रहता है।

योग की तरह ही ज्‍योतिष में भी श्‍वास के प्रकार, नासाग्र से निकलने वाली श्‍वास की शक्ति, इडा (बाई नासिका) अथवा पिंगला (दाई नासिका) का चलना अथवा दोनों का साथ चलना (सुषुम्‍ना) को लेकर फलादेश भी बताए गए हैं।

अगर हम सही समय पर सही नासिका का उपयोग कर रहे होते हैं तो इच्छित कार्यों को पूरा करने में सफल होते हैं।

रावण संहिता में स्‍वर विज्ञान के संबंध में विशद् जानकारी दी गई है। हालांकि यह अधिकांशत: प्रश्‍नकर्ता द्वारा प्रश्‍न पूछे जाने पर ज्‍योतिषी द्वारा ध्‍यान में रखे जाने वाले बिंदुओं पर केन्द्रित है, लेकिन किसी आम जातक के लिए भी ये तथ्‍य इतने ही महत्‍वपूर्ण है।

अगर एक जातक  सावधानीपूर्वक अपने श्‍वसन यानी इडा अथवा पिंगला स्‍वर का ध्‍यान रखे तो बहुत से कार्यों में अनायास सफलता प्राप्‍त कर सकता है।

हर जातक को रोजाना सुबह उठते ही अपने स्‍वर की जांच करनी चाहिए। इसके लिए सबसे श्रेष्‍ठ समय सुबह सूर्योदय से पूर्व का बताया गया है।
 
स्‍वर विज्ञान के परिणाम
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सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को अगर वाम स्‍वर यानी बाई नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो यह श्रेष्‍ठ होता है। इसी प्रकार अगर मंगलवार, शनिवार और रविवार को दक्षिण स्‍वर यानी दाईं नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो इसे श्रेष्‍ठ बताया गया है।

अगर स्‍वर इसके प्रतिकूल हो तो

रविवार को शरीर में वेदना महसूस होगी
सोमवार को कलह का वातावरण मिलेगा
मंगलवार को मृत्‍यु और दूर देशों की यात्रा होगी
बुधवार को राज्‍य से आपत्ति होगी
गुरु और शुक्रवार को प्रत्‍येक कार्य की असिद्धी होगी
शनिवार को बल और खेती का नाश होगा
स्‍वर को तत्‍वों के आधार पर बांटा भी गया है। हर स्‍वर का एक तत्‍व होता है।
यह इडा या पिंगला (बाई अथवा दाई नासिका) से निकलने वाले वायु के प्रभाव से नापा जाता है।

श्‍वास का दैर्ध्‍य 16 अंगुल हो तो पृथ्‍वी तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 12 अंगुल हो तो जल तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 8 अंगुल हो तो अग्नि तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 6 अंगुल हो तो वायु तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 3 अंगुल हो तो आकाश तत्‍व होता है।
यह तत्‍व हमेशा एक जैसा नहीं रहता। तत्‍व के बदलने के साथ फलादेश भी बदल जाते हैं।
आगे हम देखेंगे तत्‍व के अनुसार क्‍या क्‍या फल सामने आते हैं।

शुक्‍ल पक्ष में नाडि़यों में तत्‍व का संचार देखें तो आमतौर पर वाम स्‍वर शुभ होते हैं और दक्षिण स्‍वर अशुभ।

पृथ्‍वी तत्‍व चले तो महल में प्रवेश
अग्नि तत्‍व चले तो जल से भय, घाव, घर का दाह
वायु तत्‍व चले तो चोर भय, पलायन, हाथी घोड़े की सवारी मिलती है।
आकाश तत्‍व चले तो मंत्र, तंत्र, यंत्र का उपदेश देव प्रतिष्‍ठा, व्‍याधि की उत्‍पत्ति, शरीर में निरंतर पीड़ा
अगर किसी भी समय में दोनों नाडि़यां एक साथ चलें तो योग में इसे उत्‍तम माना जाता है, लेकिन फल प्राप्ति के मामले में       देखें तो फलों का समान फल कहा गया है। इसे बहुत उत्‍तम नहीं माना जाता है।

यात्रा के संबंध में कहा जाता है कि यात्रा के दौरान इडा नाड़ी का चलना शुभ है लेकिन जहां पहुंचता है वहां पहुंचकर घर, ऑफिस या स्‍थल में प्रवेश करते समय पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए।

अगली बार जब आप घर से बाहर निकलें तो यह जांच कर लें कि आपका कौनसा स्‍वर चल रहा है। इसी से आपको एक फौरी अनुमान हो जाएगा कि आप जिस काम के लिए निकल रहे हैं वह पूरा होगा कि नहीं।

 स्वर विज्ञान एक बहुत ही आसान विद्या है।  इनके अनुसार स्वरोदय, नाक के छिद्र से ग्रहण किया जाने वाला श्वास है, जो वायु के रूप में होता है। श्वास ही जीव का प्राण है और इसी श्वास को स्वर कहा जाता है।
स्वर के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय कहा गया है तथा विज्ञान, जिसमें कुछ विधियाँ बताई गई हों और विषय के रहस्य को समझने का प्रयास हो, उसे विज्ञान कहा जाता है। स्वरोदय विज्ञान एक आसान प्रणाली है, जिसे प्रत्येक श्वास लेने वाला जीव प्रयोग में ला सकता है।
स्वरोदय अपने आप में पूर्ण विज्ञान है। इसके ज्ञान मात्र से ही व्यक्ति अनेक लाभों से लाभान्वित होने लगता है। इसका लाभ प्राप्त करने के लिए आपको कोई कठिन गणित, साधना, यंत्र-जाप, उपवास या कठिन तपस्या की आवश्यकता नहीं होती है। आपको केवल श्वास की गति एवं दिशा की स्थिति ज्ञात करने का अभ्यास मात्र करना है।
यह विद्या इतनी सरल है कि अगर थोड़ी लगन एवं आस्था से इसका अध्ययन या अभ्यास किया जाए तो जीवनपर्यन्त इसके असंख्य लाभों से अभिभूत हुआ जा सकता है।

सूर्य, चंद्र और सुषुम्ना स्वर
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सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को महसूस करने का प्रयत्न कीजिए। देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है। स्वरोदय विज्ञान के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर होगा।
इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वर होगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से निःश्वास निकलता महसूस करें तो यह सुषुम्ना स्वर कहलाएगा। श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वरोदय विज्ञान का आधार हैं।
सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है। इसका रंग काला है। यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात्‌ पार्वती का रूप है। इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात्‌ इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा।

स्वर को पहचानने की सरल विधियाँ
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(1) शांत भाव से मन एकाग्र करके बैठ जाएँ। अपने दाएँ हाथ को नाक छिद्रों के पास ले जाएँ। तर्जनी अँगुली छिद्रों के नीचे रखकर श्वास बाहर फेंकिए। ऐसा करने पर आपको किसी एक छिद्र से श्वास का अधिक स्पर्श होगा। जिस तरफ के छिद्र से श्वास निकले, बस वही स्वर चल रहा है।
(2) एक छिद्र से अधिक एवं दूसरे छिद्र से कम वेग का श्वास निकलता प्रतीत हो तो यह सुषुम्ना के साथ मुख्य स्वर कहलाएगा।
(3) एक अन्य विधि के अनुसार आईने को नासाछिद्रों के नीचे रखें। जिस तरफ के छिद्र के नीचे काँच पर वाष्प के कण दिखाई दें, वही स्वर चालू समझें।

जीवन में स्वर का चमत्कार
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स्वर विज्ञान अपने आप में दुनिया का महानतम ज्योतिष विज्ञान है जिसके संकेत कभी गलत नहीं जाते।
शरीर की मानसिक और शारीरिक क्रियाओं से लेकर दैवीय सम्पर्कों और परिवेशीय घटनाओं तक को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला स्वर विज्ञान दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
स्वर विज्ञान का सहारा लेकर आप जीवन को नई दिशा दृष्टि डे सकते है.
दिव्य जीवन का निर्माण कर सकते हैं, लौकिक एवं पारलौकिक यात्रा को सफल बना सकते हैं। यही नहीं तो आप अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति और क्षेत्र की धाराओं तक को बदल सकने का सामर्थ्य पा जाते हैं।
अपनी नाक के दो छिद्र होते हैं। इनमें से सामान्य अवस्था में एक ही छिद्र से हवा का आवागमन होता रहता है। कभी दायां तो कभी बांया। जिस समय स्वर बदलता है उस समय कुछ सैकण्ड के लिए दोनों नाक में हवा निकलती प्रतीत होती है। इसके अलावा कभी - कभी सुषुम्ना नाड़ी के चलते समय दोनों नासिक छिद्रों से हवा निकलती है। दोनों तरफ सांस निकलने का समय योगियों के लिए योग मार्ग में प्रवेश करने का समय होता है।
बांयी तरफ सांस आवागमन का मतलब है आपके शरीर की इड़ा नाड़ी में वायु प्रवाह है।
इसके विपरीत दांयी नाड़ी पिंगला है।
दोनों के मध्य सुषुम्ना नाड़ी का स्वर प्रवाह होता है।
अपनी नाक से निकलने वाली साँस को परखने मात्र से आप जीवन के कई कार्यों को बेहतर बना सकते हैं। सांस का संबंध तिथियों और वारों से जोड़कर इसे और अधिक आसान बना दिया गया है।
जिस तिथि को जो सांस होना चाहिए, वही यदि होगा तो आपका दिन अच्छा जाएगा। इसके विपरीत होने पर आपका दिन बिगड़ा ही रहेगा। इसलिये साँस पर ध्यान दें और जीवन विकास की यात्रा को गति दें।
मंगल, शनि और रवि का संबंध सूर्य स्वर से है जबकि शेष का संबंध चन्द्र स्वर से।
आपके दांये नथुने से निकलने वाली सांस पिंगला है। इस स्वर को सूर्य स्वर कहा जाता है। यह गरम होती है।
जबकि बांयी ओर से निकलने वाले स्वर को इड़ा नाड़ी का स्वर कहा जाता है। इसका संबंध चन्द्र से है और यह स्वर ठण्डा है।

शुक्ल पक्ष:-
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• प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया बांया (उल्टा)
• चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी -दांया (सीधा)
• सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी बांया (उल्टा)
• दशमी, एकादशी एवं द्वादशी –दांया (सीधा)
• त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा – बांया (उल्टा)

कृष्ण पक्ष:-
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• प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया दांया (सीधा)
• चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी बांया (उल्टा)
• सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी दांया(सीधा)
• दशमी, एकादशी एवं द्वादशी बांया(उल्टा)
• त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावास्या --दांया(सीधा)

सवेरे नींद से जगते ही नासिका से स्वर देखें। जिस तिथि को जो स्वर होना चाहिए, वह हो तो बिस्तर पर उठकर स्वर वाले नासिका छिद्र की तरफ के हाथ की हथेली का चुम्बन ले लें और उसी दिशा में मुंह पर हाथ फिरा लें।
यदि बांये स्वर का दिन हो तो बिस्तर से उतरते समय बांया पैर जमीन पर रखकर नीचे उतरें, फिर दायां पैर बांये से मिला लें और इसके बाद दुबारा बांया पैर आगे निकल कर आगे बढ़ लें।
यदि दांये स्वर का दिन हो और दांया स्वर ही निकल रहा हो तो बिस्तर पर उठकर दांयी हथेली का चुम्बन ले लें और फिर बिस्तर से जमीन पर पैर रखते समय पर पहले दांया पैर जमीन पर रखें और आगे बढ़ लें।
यदि जिस तिथि को स्वर हो, उसके विपरीत नासिका से स्वर निकल रहा हो तो बिस्तर से नीचे नहीं उतरें और जिस तिथि का स्वर होना चाहिए उसके विपरीत करवट लेट लें। इससे जो स्वर चाहिए, वह शुरू हो जाएगा और उसके बाद ही बिस्तर से नीचे उतरें।
स्नान, भोजन, शौच आदि के वक्त दाहिना स्वर रखें।
पानी, चाय, काफी आदि पेय पदार्थ पीने, पेशाब करने, अच्छे काम करने आदि में बांया स्वर होना चाहिए।
जब शरीर अत्यधिक गर्मी महसूस करे तब दाहिनी करवट लेट लें और बांया स्वर शुरू कर दें। इससे तत्काल शरीर ठण्ढक अनुभव करेगा।
जब शरीर ज्यादा शीतलता महसूस करे तब बांयी करवट लेट लें, इससे दाहिना स्वर शुरू हो जाएगा और शरीर जल्दी गर्मी महसूस करेगा।
जिस किसी व्यक्ति से कोई काम हो, उसे अपने उस तरफ रखें जिस तरफ की नासिका का स्वर निकल रहा हो। इससे काम निकलने में आसानी रहेगी।
जब नाक से दोनों स्वर निकलें, तब किसी भी अच्छी बात का चिन्तन न करें अन्यथा वह बिगड़ जाएगी। इस समय यात्रा न करें अन्यथा अनिष्ट होगा। इस समय सिर्फ भगवान का चिन्तन ही करें। इस समय ध्यान करें तो ध्यान जल्दी लगेगा।
दक्षिणायन शुरू होने के दिन प्रातःकाल जगते ही यदि चन्द्र स्वर हो तो पूरे छह माह अच्छे गुजरते हैं। इसी प्रकार उत्तरायण शुरू होने के दिन प्रातः जगते ही सूर्य स्वर हो तो पूरे छह माह बढ़िया गुजरते हैं। कहा गया है - कर्के चन्द्रा, मकरे भानु।
रोजाना स्नान के बाद जब भी कपड़े पहनें, पहले स्वर देखें और जिस तरफ स्वर चल रहा हो उस तरफ से कपड़े पहनना शुरू करें और साथ में यह मंत्र बोलते जाएं - ॐ जीवं रक्ष। इससे दुर्घटनाओं का खतरा हमेशा के लिए टल जाता है।
आप घर में हो या आफिस में, कोई आपसे मिलने आए और आप चाहते हैं कि वह ज्यादा समय आपके पास नहीं बैठा रहे। ऎसे में जब भी सामने वाला व्यक्ति आपके कक्ष में प्रवेश करे उसी समय आप अपनी पूरी साँस को बाहर निकाल फेंकियें, इसके बाद वह व्यक्ति जब आपके करीब आकर हाथ मिलाये, तब हाथ मिलाते समय भी यही क्रिया गोपनीय रूप से दोहरा दें।
आप देखेंगे कि वह व्यक्ति आपके पास ज्यादा बैठ नहीं पाएगा, कोई न कोई ऎसा कारण उपस्थित हो जाएगा कि उसे लौटना ही पड़ेगा। इसके विपरीत आप किसी को अपने पास ज्यादा देर बिठाना चाहें तो कक्ष प्रवेश तथा हाथ मिलाने की क्रियाओं के वक्त सांस को अन्दर खींच लें। आपकी इच्छा होगी तभी वह व्यक्ति लौट पाएगा।
कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है, लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है। ऐसे समय में स्वर की प्रतीक्षा करने पर उत्तम अवसर हाथों से निकल सकता है, अत: स्वर परिवर्तन के द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए प्रस्थान करना चाहिए या कार्य प्रारंभ करना चाहिए। स्वर विज्ञान का सम्यक ज्ञान आपको सदैव अनुकूल परिणाम प्रदान करवा सकता है।

कब करें कौन सा काम
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ग्रहों को देखे बिना स्वर विज्ञान के ज्ञान से अनेक समस्याओं, बाधाओं एवं शुभ परिणामों का बोध इन नाड़ियों से होने लगता है, जिससे अशुभ का निराकरण भी आसानी से किया जा सकता है।चंद्रमा एवं सूर्य की रश्मियों का प्रभाव स्वरों पर पड़ता है। चंद्रमा का गुण शीतल एवं सूर्य का उष्ण है।
शीतलता से स्थिरता, गंभीरता, विवेक आदि गुण उत्पन्न होते हैं और उष्णता से तेज, शौर्य, चंचलता, उत्साह, क्रियाशीलता, बल आदि गुण पैदा होते हैं। किसी भी काम का अंतिम परिणाम उसके आरंभ पर निर्भर करता है। शरीर व मन की स्थिति, चंद्र व सूर्य या अन्य ग्रहों एवं नाड़ियों को भलीभांति पहचान कर यदि काम शुरु करें तो परिणाम अनुकूल निकलते हैं।
स्वर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि विवेकपूर्ण और स्थायी कार्य चंद्र स्वर में किए जाने चाहिए, जैसे विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि ऐसे कार्य हैं कि जिनमें अधिक गंभीरता और बुद्धिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता होती है।
इसीलिए चंद्र स्वर के चलते इन कार्यो का आरंभ शुभ परिणामदायक होता है। उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर उत्तम कहा जाता है। दाहिने नथुने से श्वास ठीक आ रही हो अर्थात सूर्य स्वर चल रहा हो तो परिणाम अनुकूल मिलने वाला होता है।

दबाए मानसिक विकार
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कुछ समय के लिए दोनों नाड़ियां चलती हैं अत: प्राय: शरीर संधि अवस्था में होता है। इस समय पारलौकिक भावनाएं जागृत होती हैं। संसार की ओर से विरक्ति, उदासीनता और अरुचि होने लगती है। इस समय में परमार्थ चिंतन, ईश्वर आराधना आदि की जाए, तो सफलता प्राप्त हो सकती है। यह काल सुषुम्ना नाड़ी का होता है, इसमें मानसिक विकार दब जाते हैं और आत्मिक भाव का उदय होता है।

अन्य उपाय
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यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो जो स्वर नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए। ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को आपका अविचलित स्वर का शांत भाग शांत बना देगा और मनोरथ की सिद्धि होगी।
गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर से ही वार्ता करनी चाहिए। कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है।ऐसे समय स्वर बदलने के प्रयास करने चाहिए।
स्वर को परिवर्तित कर अपने अनुकूल करने के लिए कुछ उपाय कर लेने चाहिए। जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें। इस तरह कुछ ही देर में स्वर परिवर्तित हो जाएगा। घी खाने से वाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना प्रारंभ हो जाता है।

Numerology

 आज हम भाग्यांक 1 से 9 तक के बारे में बात करते हैं। हर अंक को कम से कम शब्दों में प्रस्तुत करूंगा, आपके लिए समझना आसान हो जाएगा। 

भाग्यांक :-
1- जिम्मेदार व परिवार के कर्ता- धर्ता
2- कंजूस, शांत व संवेदनशील
3- सात्विक, धार्मिक, शांत, जिम्मेदार व निर्णायक
4- कामयाब व परिवर्तन शील विचार वाले
5- बुद्धिमान, रहस्यमई स्वभाव व मानसिक शक्तियों वाला
6- सुंदरता प्रेमी, आकर्षण शक्ति वाला व कलात्मक
7- रहस्यमई, स्पष्टवादी व बातूनी
8- संघर्षमयजीवन, साहसी व मेहनती
9- बहादुर, नेतृत्व क्षमता वाले, साहसी व संकटों में लडने वाले।


अब आप स्वयं देख सकते हैं अपना भाग्यांक और उसका प्रभाव अपने जीवन में।


दोस्तों, मूलांक और भाग्यांक कुछ मित्र होते हैं और कुछ एक दूसरे के शत्रु। शत्रु से मेरा तात्पर्य है कि दोनों आपस में समन्वय नहीं बना पाते और जीवन में परेशानियां पैदा करते हैं।
कल मैं आपको मूलांक 1 के साथ सभी 9 भाग्य अंकों का संबंध बताऊंगा। कौनसा भाग्यांक, मूलांक 1 का सहयोग करता है और कौनसा भाग्य अंक परेशानी पैदा करता है।
मैं समझता हूं, शायद मैं आपको ठीक से समझ पा रहा हूं, आप विश्वास कीजिए, आप स्वयं ही अपनी राहों को आसान कर लेंगे।

 

 मूलांक :- 

हम मूलांक 1 से 9 तक के बारे में बात करते हैं। हर अंक को केवल दो शब्दों में प्रस्तुत करूंगा, आपके लिए समझना आसान हो जाएगा। मूलांक :-
1- महत्वाकांक्षी व पैदाइशी नेता
2- विश्वासपात्र व ईमानदार
3- भाग्यशाली व बुद्धिमान
4- व्यावहारिक व वास्तविक
5- अतिउत्साहित व यात्रा प्रेमी
6- संतुलित व गर्मजोशी
7- विद्वान व तर्कसंगत
8- सफल व सहज ज्ञान युक्त
9- आदर्शवादी, प्रभावशाली व चुंबकीय व्यक्तित्व।
अब आप स्वयं देख सकते हैं अपना मूलांक और उसका प्रभाव अपने व्यवहार में।

 

 

Astro knowledge

 मनुष्य के शरीर में ग्रहों का स्थान

·सूर्य को शरीर कहा गया हें.

·चन्द्रमा को मन कहा गया हें.

·मंगल को  पराक्रम

·बुध को वाणी-विवेक

·गुरु को ज्ञान और सुख

·शुक्र को काम और वीर्य,

·शनि को दुःख,कष्ट और परिवर्तन तथा

·राहू और केतु को रोग एवं चिंता का करक/अधिष्ठाता माना जाता हें.

उच्च से शुभ / नीच से अशुभ फल

·सूर्य ग्रह मेष राशी में उच्चका होकर शुभ फल देता हें और तुला राशी में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·चन्द्रमा ग्रह वृषभ राशी मेंउच्चका होकर शुभ फल देता हें और वृश्चिक में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·मंगल ग्रह मकर में उच्चका होकर शुभ फल देता हें औरकर्क में नीच का फल होकर अशुभ फल देता हें

·बुध ग्रह कन्या मेंउच्चका होकर शुभ फल देता हें का और मीन में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·गुरु ग्रह कर्क मेंउच्चका होकर शुभ फल देता हें और मकर में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·शुक्र ग्रह मीन मेंउच्चका होकर शुभ फल देता हें और कन्या में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·शनि ग्रह तुला में उच्चका होकर शुभ फल देता हेंऔर मेष में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·राहू ग्रहमिथुन में उच्चका होकर शुभ फल देता हेंऔर धनु में नीच का होकर अशुभ फल देता हें

·केतु ग्रह धनु मेंउच्चका होकर शुभ फल देता हें और मिथुन में नीच का होकर अशुभ फल देता हें .

ध्यान रखें..सिंह एवं कुंभ राशी में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नहीं होता हें..

ज्योतिषसिद्धांत के अनुसार संक्षिप्त में जानिए ग्रह दोष से उत्पन्न रोग और उसकेनिवारण तथा किस ग्रह के क्या नकारात्मक प्रभाव है और साथ ही उक्त ग्रहदोषसे मुक्ति हेतु अचूक उपाय –

उपाय करने का नियम

उपाय किसी योग व्यक्ति की सलाह में ही करें

कभीभी किसी भी उपाय को 43 दिन करना चहिये तब ही फल प्राप्ति संभव होती है।मंत्रो के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सबसे उचित मानी गई है | इन उपायोंका गोचरवश प्रयोग करके कुण्डली में अशुभ प्रभाव में स्थित ग्रहों को शुभप्रभाव में लाया जा सकता है। सम्बंधित ग्रह के देवता की आराधना और उनकेजाप, दान उनकी होरा, उनके नक्षत्र में अत्यधिक लाभप्रद होते है |  

सूर्य ग्रह

सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान,यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का कारक होता है | इसकी राशि है सिंह |

सूर्य के अशुभ होने का कारण

किसी का दिल दुखाने (कष्ट देने), किसी भी प्रकार का टैक्स चोरी करने एवंकिसी भी जीव की आत्मा को ठेस पहुँचाने पर सूर्य अशुभ फल देता है।

कुंडली मेंसूर्य के अशुभ होने पर

पेट, आँख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारीकार्य में बाधा उत्पन्न होती है।

इसके लक्षण यह है कि मुँह में बार-बारबलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मनं का दुखी या असंतुस्टहोना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य के पीड़ित होने के सूचक है | –

ये करें उपाय-

·ऐसे में भगवान राम की आराधना करे |

·आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करे,सूर्यको आर्घ्य दे, गायत्री मंत्र का जाप करे |

·ताँबा, गेहूँ एवं गुड का दानकरें।

·प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें।

·ताबें के एक टुकड़े कोकाटकर उसके दो भाग करें। एक को पानी में बहा दें तथा दूसरे को जीवन भर साथरखें।

·ॐ रं रवये नमः या ॐ घृणी सूर्याय नमः १०८ बार (१ माला) जाप करे|

सूर्य पारिवारिक उपाय :

यदि कुन्डली मे सूर्य अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे सुर्य अर्थातपिता या पिता तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनी चहियेउन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे पिता या पिता तुल्य लोग आपसेसंन्तुष्ट रहेंगे तो सुर्य के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

सूर्यदान (दिन – रविवार)

सूर्य ग्रह कि शांति हेतु गेहूँ, ताँबा, घी, गुड़,माणिक्य, लाल कपड़ा, मसूरकी दाल,कनेर या कमल के फूल, गौ दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फलउत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·सूर्य सेसम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में ४० से ५० वर्ष केव्यक्ति को देना चाहिए.

सूर्य की शांति के लिए टोटके

·सूर्य कोबली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रात:काल सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्पवाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।

·गाय का दान अगर बछड़े समेतगुड़,सोना, तांबा और गेहूंसूर्य सेसम्बन्धित रत्न का दान|

·रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रात:काल उसे पीना चाहिए।

·ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।

·लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।

·किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।

·हाथ में मोली (कलावा) छ: बार लपेटकर बाँधना चाहिए।

·लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना

 चाहिए।

·सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रतकरना चाहिए.

·गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए.

·किसी ब्राह्मण अथवागरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभावमें कमी आती है.

·अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिताएवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं.प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहतमिल सकती है.

·सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय केसमय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।

·हाथमें मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।

·लाल चन्दन को घिसकर स्नानके जल में डालना चाहिए।

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

सूर्य के दुष्प्रभावनिवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिकशुभ होते हैं।

क्या न करें—

आपका सूर्य कमज़ोर अथवा नीच का होकर आपको परेशान कर रहा है अथवाकिसी कारण सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको

·गेहूं और गुड़ का सेवननहीं करना चाहिए.

·इसके अलावा आपको इस समय तांबा धारण नहीं करना चाहिएअन्यथा इससे सम्बन्धित क्षेत्र में आपको और भी परेशानी महसूस हो सकती है

चंद्र ग्रह

चन्द्रमा माँ का सूचक है और मनं का करक है |

शास्त्र कहता है की “चंद्रमा मनसो जात:”|  इसकीकर्क राशि है |

चंद्र के अशुभ होने का कारण

सम्मानजनक स्त्रियों को कष्ट देने जैसे,माता, नानी, दादी, सास एवं इनकेपद के समान वाली स्त्रियों को कष्ट देने एवं किसी से द्वेषपूर्वक ली वस्तुके कारण चंद्रमा अशुभ फल देता है।

कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर

माता को किसी भी प्रकार काकष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जातीहै। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घरमें पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिकतनाव,मन में घबराहट,तरह तरह की शंका मनं में आती है औरमनं में अनिश्चित भय वशंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने केविचार बार-बार आते रहते हैं।

ये करें उपाय-

·सोमवारका व्रत करना,

·माता की सेवा करना,

·शिव की आराधना करना,

·मोती धारण करना,

·दो मोती या दो चाँदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा दें तथा दूसरे कोअपने पास रखें।

·सोमवार को सफ़ेद वास्तु जैसे दही,चीनी, चावल,सफ़ेद वस्त्र, १ जोड़ाजनेऊ,दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जापकरना श्रेयस्कर होता है |

चन्द्रमा पारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे चन्द्रमा अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे चन्द्रमाअर्थात माता या माता तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनीचहिये उन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे माता या माता तुल्य लोगआपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो चन्द्रमा के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

चंद्र दान (दिन – सोमवार)

चंद्र ग्रह कि शांति हेतु मोती, चाँदी, चावल,चीनी, जल से भरा हुवा कलश, सफेद कपड़ा, दही, शंख, सफेद फूल, साँड आदि का दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैंग्रह:-

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फलउत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·चन्दमा से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो और संध्या काल हो.

·ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से सम्बन्धित वस्तुओं के दान के लिए महिलाओं को सुपात्र बताया गया है अत: दान किसी महिला को दें.

चन्द्रमा की शांति के लिए टोटके

·रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।

·वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।

·वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।

·सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।

·चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दानकरना उत्तम होता है. इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी,चावल, भात एवं दूध कादान भी पीड़ित चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है.

·जल दानअर्थात प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना से भी चन्द्रमा की विपरीत दशा मेंसुधार होता है पर बारवें भाव में चंद्रमा वाला ये न करें |

·अगर आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा से सम्बन्धितरत्न दान करना चाहिए.

·आपका चन्द्रमा कमज़ोर है तो आपको सोमवार के दिन व्रतकरना चाहिए.

·गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए को भात और चीनीमिलाकर देना चाहिए.

·किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआखीर खिलाना चाहिए. सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है.

·सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना चाहते है तो इसके लिए आपकोमाता और माता समान महिला एवं वृद्ध महिलाओ की सेवा करनी चाहिए.

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

चन्द्रमा के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु सोमवार कादिन,चन्द्रमा के नक्षत्र (रोहिणी, हस्त तथा श्रवण) तथा चन्द्रमा की होरामें अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें—

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमाकमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।

·चन्द्रमा व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।

·सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पीना चाहिए।

·प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए.

·स्वेत वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए.

·सुगंध नहीं लगाना चाहिए

·चन्द्रमा सेसम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.

·कुंडलीके छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है।

·यदि चंद्रबारहवाँ हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएँ और ना ही दूध पिलाएँ।

मंगल ग्रह

मंगल सेना पति होता है,भाई का भी द्योतक और रक्त का भी करक माना गया है |
इसकीमेष और वृश्चिक राशि है |

मंगल के अशुभ होने का कारण

भाई से झगड़ा करने, भाई के साथ धोखा करने से मंगल के अशुभ फल शुरू होजाते हैं। इसी के साथ अपनी पत्नी के भाई (साले) का अपमान करने पर भी मंगलअशुभ फल देता है।

कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर

भाई, पटीदारो सेविवाद, रक्त सम्बन्धी समस्या, नेत्र रोग, उच्च रक्तचाप, क्रोधित होना, उत्तेजित होना, वात रोग और गठिया हो जाता है।
रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जाता। व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का हो जाता है। मान्यता यह भी है कि बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं।

ये करें उपाय-

·ताँबा, गेहूँ एवं गुड,लाल कपडा,माचिस का दान करें।

·तंदूर की मीठी रोटी दानकरें।

·बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहाएँ,

·मसूर की दाल दान में दें।

·हनुमद आराधना करना,

·हनुमान जी को चोला अर्पित करना,

·हनुमान मंदिर में ध्वजादान करना,

·बंदरो को चने खिलाना,

·हनुमान चालीसा,बजरंगबाण,हनुमानाष्टक,सुंदरकांड का पाठ और ॐ अं अंगारकाय नमः का १०८ बार नित्यजाप करना श्रेयस्कर होता है |  

मंगल पारिवारिक उपाय :

यदि कुन्डली मे मंगल अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे मंगल अर्थातभाई या भाईयों के तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनीचहिये उन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे भाई या भाई तुल्य लोगआपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो मंगल के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

मंगल दान (दिन – मंगलवार)

मंगल ग्रह कि शांति हेतु मूंगा, मसूर, घी,गुड़, लाल कपड़ा, रक्त चंदन, गेहूँ, केसर,ताँबा, लाल फूल का दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·दान मंगलवार के दोपहर को करें

·अगर कोई लाल वर्ण का क्षत्रीय या ब्रह्मण मिले तो उत्तम

मंगल की शांति के लिए टोटके

·लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।

·ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।

·बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।

·लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।

·मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।

·बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।

·अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।

·पीड़ित व्यक्ति को लाल रंग का बैल दान करना चाहिए.

·लाल रंग कावस्त्र, सोना, तांबा, मसूर दाल, बताशा, मीठी रोटी का दान देना चाहिए.

·मंगलसे सम्बन्धित रत्न दान देने से भी पीड़ित मंगल के दुष्प्रभाव में कमी आतीहै.

·मंगल ग्रह की दशा में सुधार हेतु दान देने के लिए मंगलवार का दिन औरदोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है.

·जिनका मंगल पीड़ित है उन्हें मंगलवारके दिन व्रत करना चाहिए और ब्राह्मण अथवा किसी गरीब व्यक्ति को भर पेट भोजनकराना चाहिए.

·मंगल पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन10 से 15 मिनट ध्यानकरना उत्तम रहता है.

·मंगल पीड़ित व्यक्ति में धैर्य की कमी होती है अत:धैर्य बनाये रखने का अभ्यास करना चाहिए एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखनाचाहिए.

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन,मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभहोते हैं।

क्या न करें –

आपका मंगल अगर पीड़ित है तो

·आपको अपने क्रोध नहीं करना चाहिए.

·अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए.

·किसी भी चीज़ में जल्दबाजी नहींदिखानी चाहिए

·भौतिकता में लिप्त नहीं होना चाहिए

बुध ग्रह

बुध व्यापार व स्वास्थ्य का करक माना गया है | यह मिथुन और कन्या राशि कास्वामी

है| बुध वाक् कला का भी द्योतक है | विद्या और बुद्धि का सूचक है |

बुध के अशुभ होने का कारण

अपनी बहन अथवा बेटी को कष्ट देने एवं बुआ को कष्ट देने, साली एवंमौसी को कष्ट देने से बुध अशुभ फल देता है। इसी के साथ हिजड़े को कष्ट देनेपर भी बुध अशुभ फल देता है।

कुंडली में बुध की अशुभता पर

दाँत कमजोर हो जाते हैं। सूँघने की शक्ति कमहो जाती है। गुप्त रोग हो सकता है। व्यक्ति वाक् क्षमता भी जाती रहती है।नौकरी और व्यवसाय में धोखा और नुक्सान हो सकता है।

ये करें उपाय-

·भगवानगणेश व माँ दुर्गा की आराधना करे |

·गौ सेवा करे |

·काले कुत्ते को इमरतीदेना लाभकारी होता है |

·नाक छिदवाएँ।

·ताबें के प्लेट में छेद करके बहतेपानी में बहाएँ।

·अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्तों कोऔर एक हिस्सा कौवे को दें, या अपने हाथ से गाय को हरा चारा, हरा सागखिलाये।

·उड़दकी दाल का सेवन करे व दान करे |

·बालिकाओं को भोजन कराएँ।

·किन्नेरो को हरी साडी, सुहाग सामग्री दान देना भी बहुत चमत्कारी है |

·ॐ बुंबुद्धाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है आथवागणेशअथर्वशीर्ष का पाठ करे|

·पन्ना धारण करे या हरे वस्त्र धारण करे यदि संभव न हो तो हरा रुमाल साथ रक्खे |

बुध पारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे बुध अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे बुध अर्थातबहनें या बहनों के तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनीचहिये उन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे बहनें या बहनों के तुल्यलोग आपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो बुध के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

बुध दान (दिन – बुधवार)

बुध ग्रह कि शांति हेतु हरे पन्ना, मूँग, घी,हरा कपड़ा, चाँदी, फूल, काँसे का बर्तन,कपूर का दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है.

·किसी छोटी कन्यां बुध की वास्तु दान दें|

बुध की शांति के लिए टोटके

·अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।

·बुधवार के दिन हरे रंग की चूडिय़ाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।

·हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।

·बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।

·घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।

·अपने घर में कंटीले पौधे, झाडिय़ाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

·तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

·बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए.

·हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है.

·हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा मेंश्रेष्ठ होता है.

·बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ामें कमी ला सकती है.

·बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवारके दिन व्रत रखना चाहिए.

·गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए.

·ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए.

·बुध की दशा में सुधार केलिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है.

·रविवार को छोड़करअन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है.

·अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियोंको लाभ मिलता है.

·मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह कीदशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है.

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

बुध के दुष्प्रभावनिवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें-

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार बुध कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·प्रतिदिन हरे पदार्थ नहीं खाना चाहिए.

·हरे वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए.

गुरु ग्रह

वृहस्पति की भी दो राशि है धनु और मीन |

गुरु के अशुभ होने का कारण

अपने पिता, दादा, नाना को कष्ट देने अथवा इनके समान सम्मानित व्यक्ति कोकष्ट देने एवं साधु संतों को कष्ट देने से गुरु अशुभ फल देता है।

कुंडली में गुरु के अशुभ प्रभाव में आने पर

सिर के बाल झड़ने लगते हैं। परिवार में बिना बात तनाव, कलह – क्लेश कामाहोल होता है | सोना खो जाता या चोरी हो जाता है। आर्थिक नुक्सान या धन काअचानक व्यय,खर्च सम्हलता नहीं,शिक्षा में बाधा आती है। अपयश झेलना पड़ताहै। वाणी पर सयम नहीं रहता | –

ये करें उपाय-

·ब्रह्मणका यथोचित सामान करे |

·माथे या नाभी पर केसर का तिलक लगाएँ।

·कलाई में पीलारेशमी धागा बांधे |

·संभव हो तो पुखराज धारण करे अन्यथा पीले वस्त्र याहल्दी की कड़ी गांड साथ रक्खे |

·कोई भी अच्छा कार्य करने के पूर्व अपना नाकसाफ करें।

·दान में हल्दी, दाल, पीतल का पत्र,कोई धार्मिक पुस्तक, १ जोड़ाजनेऊ,पीले वस्त्र, केला, केसर,पीले मिस्ठान,दक्षिणा आदि देवें।

·विष्णुआराधना करे |

·ॐ व्री वृहस्पतये नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्करहोता है |

गुरू पारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे गुरू अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे गुरू अर्थातअध्यापक,धर्म आचार्य आदि या उनके तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहियेउनकी सेवा करनी चहिये उन्हें प्रसन्न रखना चहिये, यदि अध्यापक, धर्म आचार्यआदि या उनके तुल्य लोग आपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो गुरू के अशुभ प्रभाव सेआप बचे रहेंगे !

बृहस्पतिदान (दिन – गुरुवार)

बृहस्पति ग्रह कि शांति हेतु पुखराज, चने की दाल, हल्दी, पीला कपड़ा, गुड़, केसर,पीला फूल, घी और सोने की वस्तुओं का दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो|

·दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है

गुरु की शांति के लिए टोटके

·ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता,गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों केप्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श करआशिर्वाद लेना चाहिए।

·सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।

·ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।

·किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।

·गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।

·गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकरगाय को खिलानी चाहिए।

·बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमेंचीनी,केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक,मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजनउत्तम कहा गया है.

·इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न कादान करना भी श्रेष्ठ होता है.

·बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए.

·कमज़ोरबृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए.

·ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावलखिलाना चाहिए.

·रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़को जल से सिंचना चाहिए.

·गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवासहोता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है.

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकोंहेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद)तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें –

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार गुरु कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन चना नहीं खाना चाहिए.

·पीले वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए.

·केलाका सेवन और सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ितव्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।

·ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।

शुक्र ग्रह

शुक्र भी दो राशिओं का स्वामी है, वृषभ और तुला | शुक्र तरुण है, किशोरावस्था का सूचक है, मौज मस्ती,घूमना फिरना,दोस्त मित्र इसके प्रमुखलक्षण है |

शुक्रके अशुभ होने का कारण

अपने जीवनसाथी को कष्ट देने, किसी भी प्रकार के गंदे वस्त्र पहनने, घरमें गंदे एवं फटे पुराने वस्त्र रखने से शुभ-अशुभ फल देता है।

कुंडली में शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर

मनं में चंचलतारहती है, एकाग्रता नहीं हो पाती | खान पान में अरुचि, भोग विलास में रूचिऔर धन का नाश होता है | अँगूठे का रोग हो जाता है। अँगूठे में दर्द बनारहता है। चलते समय अगूँठे को चोट पहुँच सकती है। चर्म रोग हो जाता है।स्वप्न दोष की श‍िकायत रहती है।

ये करें उपाय

·माँ लक्ष्मी की सेवा आराधना करे |

·श्री सूक्त का पाठ करे |

·खोये केमिस्ठान व मिश्री का भोग लगाये |

·ब्रह्मण ब्रह्मणि की सेवा करे |

·स्वयं केभोजन में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य दें।

·कन्या भोजन कराये |

·ज्वार दान करें।

·गरीब बच्चो व विद्यार्थिओं में अध्यन सामग्री का वितरण करे |

·नि:सहाय, निराश्रय के पालन-पोषण का जिम्मा ले सकते हैं।

·अन्न का दान करे |

·ॐ सुं शुक्राय नमः का 108 बार नित्य जाप करना भी लाभकारी सिद्ध होता है |

शुक्रपारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे शुक्र अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो

 परिवार मे शुक्र अर्थातपत्नी या सम्पर्की लोगों से मधुर सम्बन्ध रखने चहिये, उनकी भावनाओं कासम्मान करना चहिये और उनको संन्तुष्ट और प्रसन्न रखना चहिये, यदि पत्नी यासम्पर्की लोग आपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो शुक्र के अशुभ प्रभाव से आप बचेरहेंगे !

शुक्रदान (दिन -शुक्रवार)

शुक्र ग्रह किशांति हेतु श्वेत रत्न, चाँदी,चावल, दूध, सफेद कपड़ा, घी, सफेद फूल, धूप, अगरबत्ती, इत्र, सफेद चंदन दान करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्याकाल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है.

शुक्र की शांति के लिए टोटके

·काली चींटियों को चीनीखिलानी चाहिए।

·शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।

·किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।

·किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय 10 वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।

·अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।

·किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।

·शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।

·शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. इसग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देनाचाहिए.

·रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध,चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूरका दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है.

·शुक्र से सम्बन्धितरत्न का दान भी लाभप्रद होता है.

·शुक्र ग्रह से सम्बन्धितक्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रतरखें.

·मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें.

·ब्राह्मणों एवं गरीबों कोघी भात खिलाएं.

·अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं.

·वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें.काली चींटियों कोचीनी खिलानी चाहिए।

·शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।

·किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।

·किसीमहत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरणस्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।

·अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।

·किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।

·शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

शुक्र के दुष्प्रभावनिवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी,पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होतेहैं।

क्या न करें—-
ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार शुक्र कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·प्रतिदिन सुगंध नहीं लगाना चाहिए .

·स्वेत और चमकीले  वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए.

·शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

शनि ग्रह

शनि की गति धीमी है | इसके दूषित होने पर अच्छे से अच्छे काम में गतिहीनताआ जाती है |

शनिके अशुभ होने का कारण

ताऊ एवं चाचा से झगड़ा करने एवं किसी भी मेहनतम करने वाले व्यक्ति कोकष्ट देने, अपशब्द कहने एवं इसी के साथ शराब, माँस खाने पीने से शनि देवअशुभ फल देते हैं। कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद खाली नहींकरते अथवा उसके बदले पैसा माँगते हैं तो शनि अशुभ फल देने लगता है।

कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान काहिस्सा गिर जाता या क्षतिग्रस्त हो जाता है। अंगों के बाल झड़ जाते हैं।शनिदेव की भी दो राशिया है,मकर और कुम्भ | शारीर में विशेषकर निचले हिस्सेमें ( कमर से नीचे ) हड्डी या स्नायुतंत्र से सम्बंधित रोग लग जाते है |वाहन से हानि या क्षति होती है | काले धन या संपत्ति का नाश हो जाता है। अचानक आग लग सकती है या दुर्घटना हो सकती है।

ये करें उपाय –

·हनुमानआराधना करना,

·हनुमान जी को चोला अर्पित करना,

·हनुमान मंदिर में ध्वजा दानकरना,

·बंदरो को चने खिलाना,

·हनुमान चालीसा, बजरंग बाण,हनुमानाष्टक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ हन हनुमते नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्करहोता है |

·नाव की कील या काले घोड़े की नाल धारण करे |

·यदिकुंडली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को ताँबे का सिक्का या बर्तन कभी नदें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा।

·कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएँ।

·तेल में अपना मुख देखवह तेल दान कर दें (छाया दान करे ) ।

·लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल,जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें।

शनिपारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे शनि अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे शनि अर्थातपरिवार य समाज के सेवक अर्थात घर के नौकर आदि से प्रेम भाव से व्यवहार करनाचहिये उनकी सेवा का पूर्

ण मूल्य देना चहिये उन्हें प्रसन्न रखना चहिये यदिपरिवार के सेवक अर्थात घर के नौकर आदि आपसे संन्तुष्ट रहेंगे तो शनि केअशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

शनिदान (दिन -शनिवार)

शनि ग्रह कि शांति हेतु निलम, काला कपड़ा, साबुत उड़द, लोहा, यथासंभव दक्षिणा, तेल, काला पुष्प, काले तिल,चमड़ा, काले कंबल का दान करने सेशुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

शनि की शांति के लिए टोटके

·शनिवारके दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।

·भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।

·भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।

·किसी दु:खी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।

·घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।

·उन्हें कालीगाय का दान करना चाहिए.

·काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल,चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल,लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का दान करना चाहिए.

·शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है.

·शनि ग्रह की शांति के लिएदान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दानप्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.

·शनि के कोप से बचने हेतुव्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए.

·लोहे केबर्तन में दही चावल और नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए.

·रोटीपर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए.

·तिल और चावल पकाकर ब्राह्मणको खिलाना चाहिए.

·अपने भोजन में से कौए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें.

·शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ,

·महामृत्युंजयमंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है.

·शनि ग्रह केदुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के प्रति अच्छाव्यवहार रखें.

·मोर पंख धारण करने से भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है.

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जारहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें—

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।

·यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तोधर्मशाला आदि न बनवाएँ।

·शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।

राहु –

मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान,स्वयं को ले कर ग़लतफहमी,आपसी तालमेल मेंकमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आप्शब्द बोलना,

राहुके अशुभ होने का कारण

राहु सर्प का ही रूप है अत: सपेरे का दिल दुखाने से, बड़े भाई को कष्टदेने से अथवा बड़े भाई का अपमान करने से, ननिहाल पक्ष वालों का अपमान करनेसे राहु अशुभ फल देता है।


कुंडलीमें राहु के अशुभ होने पर

हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं। राजक्ष्यमारोग के लक्षण प्रगट होते हैं। वाहन दुर्घटना,उदर कस्ट, मस्तिस्क में पीड़ाआथवा दर्द रहना, भोजन में बाल दिखना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राबहोना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने कीसंभावना रहती है। जल स्थान में कोई न कोई समस्या आना आदि |

राहू पारिवारिक उपाय :

यदि कुन्डली मे राहू अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे राहू अर्थातदादा या दादा तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनी चहियेउन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे दादा या दादा तुल्य लोग आपसेसंन्तुष्ट रहेंगे तो राहू के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

राहुदान (दिन -शनिवार)

राहु ग्रह कि शांति हेतु काला एवं गोमेद,नीला कपड़ा, कंबल, साबूतसरसों (राई),ऊनी कपड़ा, काले तिल व तेल का दान करने से शुभ फल किप्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।

·राहू का दान किसी भंगी को शनिवार को राहुकाल में देना उत्तम होगा

ये करें उपाय

·गोमेदधारण करे |

·दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे |

·तिल, जौ किसी हनुमानमंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे |

·जौ या अनाज को दूध में धोकरबहते पानी में बहाएँ,

·कोयले को पानी में बहाएँ,

·मूली दान में देवें, भंगीको शराब, माँस दान में दें।

·सिर में चोटी बाँधकर रखें।

·सोते समय सर के पासकिसी पत्र में जल भर कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे,यह प्रयोग 43 दिन करे|

·इसकेसाथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक,सुंदरकांड कापाठ और ॐ रं राहवे नमः का 108  बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है |

राहु की शांति के लिए टोटके

·ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।

·हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।

·अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है

·जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।

·यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रात:काल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।

·झुठी कसम नही खानी चाहिए।

·बन्दरों को बैंगन या फल खिलाये|

·गरीबो को कम्बल , साबुन , या नमक का दान करें|

·मंगलवार , शनिवार श्री हनुमान जी को छुवारे ( खारक ) का प्रसाद अर्पण करें और बच्चो में बाटें|

·श्री हनुमान जी को यथा संभव गुड़ ,चनें का भोग रविवार , मंगलवार , व शनिवार को लगावें|

·प्रत्येक रविवार को श्री हनुमान जी को 11 या 21 लोगं की माला पहनाए और बजरंग बाण का पाठ करे ।

·भगवान शिव को पिण्ड खजूर का प्रसाद अर्पण करें और बांटें ।

·बहतें पानी में कोयले बहायें ।

·ताम्र पात्र का ही जल पीयें । और संभव हो तो ताम्र गिलास में ही जल पिवें ।

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें


राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहेटोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथाशनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें—

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।

·किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहे|

केतु – केतु

      यह राहू की तरह ही छाया ग्रह है

केतु के अशुभ होने का कारण

भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनकाहक छीनने पर केतु अशुभ फल देना है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारामरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोड़ने अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठीगवाही देने पर भी राहु-केतु अशुभ फल देते हैं। अत: मनुष्य को अपना जीवनव्यवस्‍िथत जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहींचलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहोंके अशुभ कष्ट सहना पड़े।

कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर

चर्म रोग, मानसिकतनाव, आर्थिक नुक्सान,स्वयं को ले कर ग़लतफहमी,आपसी तालमेल में कमी, बातबात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आप्शब्द बोलना, जोड़ों का रोग यामूत्र एवं किडनी संबंधी रोग हो जाता है।
 संतानको पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना,उदर कस्ट, मस्तिस्क में पीड़ा आथवा दर्दरहना, अपयश की प्राप्ति,सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहताहै, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है।

केतुदान (दिन -मंगलवार)

केतु कि शांति हेतु सातप्रकार के वैदूर्य,अनाज, काजल, झंडा, ऊनी कपड़ा, तिल आदि का दान करने सेशुभ फल कि प्राप्ति होती हैं

दान किसे और कब दें

दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ   समय में सुपात्र को दिया जाए।

·दान मंगलवार करें|

ये करें उपाय–

·दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे |

·तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे |

·कान छिदवाएँ।

·सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ मेंदाल दे,यह प्रयोग 43 दिन करे |

·इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक,सुंदरकांड का पाठ और ॐ कें केतवे नमः का १०८बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है |

·अपने खाने में से कुत्ते,कौव्वे को हिस्सा दें।

·तिल व कपिला गाय दान में दें। पक्षिओं को बाजरा दे |

·चिटिओं के लिए भोजन की व्यस्था करना अति महत्व्यपूर्ण है |

केतूपारिवारिक उपाय:

यदि कुन्डली मे केतू अशुभ प्रभाब दे रहा हो तो परिवार मे केतू अर्थात नाना या नाना तुल्य लोगों का आदर सत्कार करना चहिये उनकी सेवा करनी चहियेउन्हें प्रसन्न रखना चहिये , यदि परिवार मे नाना या नाना तुल्य लोग आपसेसंन्तुष्ट रहेंगे तो केतू के अशुभ प्रभाव से आप बचे रहेंगे !

केतु की शांति के लिए टोटके

·भिखारी को दो रंग का कम्बलदान देना चाहिए।

·नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।

·बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।

·ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।

·घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।

·चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर रखना चाहिए।

·किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल अपने घर में लाकर रखना चाहिए।

विशेष प्रभाव के लिए नीचे ध्यान दें

केतु केदुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, केतु केनक्षत्र (अश्विनी, मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं

क्या न करें—

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को

·किसी कुत्ते को चोट न पहुचाये|

उपाय करने का नियम

उपरोक्त उपाय किसी योग व्यक्ति की सलाह में ही करें

कभी भी किसी भी उपाय को 43 दिन करना चहिये तब ही फल प्राप्ति संभव होती है। मंत्रो के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सबसे उचित मानी गई है | इन उपायोंका गोचरवश प्रयोग करके कुण्डली में अशुभ प्रभाव में स्थित ग्रहों को शुभप्रभाव में लाया जा सकता है। सम्बंधित ग्रह के देवता की आराधना और उनकेजाप, दान उनकी होरा, उनके नक्षत्र में अत्यधिक लाभप्रद होते है।

जन्म कुंण्डली के सात योग,जो बर्बाद कर सकते हैं आपके और हमारे जीवन ....



जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारणपरिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी,सुखी और पराक्रमी बनता है,

लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है।

कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है.आइये आज हम कुंडली के सात अशुभ योग-दोष के बारे में जानें और उनका प्रभाव कम करने के उपाय जानें

केमदु्रम योग-इस योग का निर्माण चंद्र के कारण होता है। कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।

जिस कुंडली में यह योग होता है वह जीवनभर धन की कमी से जूझता रहता है।उसके जीवन में पल-प्रतिपल संकट आते रहते हैं,लेकिन व्यक्ति हौसले से उनका सामना करता रहता है।

इस योग का प्रभाव कम करने के लिए गणेश और महालक्ष्मी की साधना करें। शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं। चंद्र से संबंधित वस्तुएं दूध-दही का दान करें।

ग्रहण योग-कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र के साथ राहु या केतु बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है। यदि इन ग्रह स्थिति में सूर्य भी जुड़ जाए तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है।

उसका मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता। कार्य में बार-बार बदलाव होता है। बार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता है

कई बार देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति को पागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं। ग्रहण योग का प्रभाव कम करने के लिए सूर्य और चंद्र की आराधना लाभ देती है।

आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के नियमित दर्शन करें।

चांडाल योग-कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है। इसे गुरु चांडाल योग भी कहते हैं। इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है।

 जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है।

चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है। चांडाल योग की निवृत्ति के लिए गुरुवार को पीली दालों का दान किसी जरूरतमंद को करें। पीली मिठाई का भोग गणेशजी को लगाएं।

 स्वयं संभव हो तो गुरुवार का व्रत करें। एक समय भोजन करें और भोजन में पहली वस्तु बेसन की उपयोग करें।

कुज योग-मंगल जबलग्न,चतुर्थ,सप्तम,अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है। इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है।

यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए। मंगलदोष की समाप्ति के लिए पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। लाल तिकोना मूंगा तांबे में धारण करें। मंगल के जाप करवाएं या मंगलदोष निवारण पूजन करवाएं।

षड्यंत्र योग-यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है।

जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। धोखे से उसका धन-संपत्ति छीनी जा सकती है।

विपरीत लिंगी व्यक्ति इन्हें किसी मुसीबत में फंसा सकते हैं।इस दोष की निवृत्ति के लिए शिव परिवार का पूजन करें.सोमवार को शिवलिंग पर सफेद आंकड़े का पुष्प और सात बिल्व पत्र चढ़ाएं। शिवजी को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

भाव नाश योग-जन्मकुंडली जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे,आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे,आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।

जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है उससे संबंधित वार को हनुमानजी की पूजा करें।उस ग्रह से संबधित रत्न धारण करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।

अल्पायु योग-कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है।उसकी आयु कम होती है।

कुंडली में बने अल्पायु योग की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज जपें। बुरे कार्यों से दूर रहें। दान-पुण्य करते रहें।

Remedies

 Foreign trip remedy

 

 If native desiring to travel abroad can plan to help the poor. One can distribute a full coconut or Urad daal on Saturday’s to the poor and needy. This will please lord Saturn, Rahu and Ketu to uplift ones deeds and help them to fulfill their desires.

Saturn remedies

1 Donate footwear to the needy.
2. Never drink milk at nights.
3. Never drink buffalo milk
4. Keep small objects of silver with you.
5. Help the blind in the ways you can.
6. Fill an earthen pot with honey, cover it and bury it under running water.


Job success remedy

Combine seven types of grains together. Mixed grains can include wheat, jowar, maize, millet, rice and pulses. Now feed this mixed grain every day to the birds.


Cash flow remedy

Place the cash locker or your cash cupboard in the south or south-west wall of the house and ensure that it opens in the North direction. North is the direction for Lord Kuber and opening the locker in this direction ensures that He can fill it again and again.

Ketu cat eye

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