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07 May 2021

ज्योतिष और रोग


मेष लग्न में रोगों के संभावित योग
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मेष लग्न और रोग
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(1) मेष लग्न में षष्टेश बुध लग्न में पापग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक जलस्राव से
अंधा होता है।

(2)मेष लग्न के चौथे भाव में पापग्रह हो तथा चतुर्थेश चंद्रमा पापग्रहों के मध्य हो
तो जातक को हृदय रोग होता है।

(3) मेष लग्न में चंद्रमा यदि मंगल के साथ अष्टम स्थान में हो तो जातक को हृदय
रोग होता है ।

(4) मेष लग्न में चतुर्थश चंद्रमा मिथुन, कन्या या वृश्चिक का हो एवं निर्बल हो तो
जातक को हृदय रोग होता है।

(5) मेष लग्न में शनि कर्क का, षष्टेश बुध एवं सूर्य अन्य पापग्रहों के साथ या,
पापमध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

(6) जातक पारिजात के अनुसार मेष लग्न में चौथे और पांचवें भाव में पापग्रह हो तो
व्यक्ति को हदय रोग होता है।

(7) मेष लग्न में कर्क का शनि एवं कुंभ का सूर्य हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता
है।

(8) मेष लग्न में चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पापग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्नेश मंगल
निर्बल हो तो जातक को असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है ।

(9) मेष लग्न में वृश्चिक का सूर्य पापग्रहों के मध्य हो, पापदृष्ट हो तो जातक को
असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है ।

(10) मेष लग्न में मंगल+ चंद्रमा + शनि एक साथ दुःस्थान में हों तो वाहन दुर्घटना
से मृत्यु होती है।

(11) मेष लग्न में मंगल + शनि लग्नस्थ हो, चंद्रमा चौथे, सूर्य + शुक्र बारहवें हो तो
जातक को 24 वर्ष की आयु में भयंकर पीलिया, रक्त-पित्त दोष होता है।

(12) मेष लग्न में लग्नस्थ पापग्रह हो, लग्न का स्वामी मंगल बलहीन हो तो सदैव रोगी होता है।

(13) मेष लग्न में क्षीण चंद्रमा बलहीन हो, किसी पापग्रह की लग्न पर दृष्टि हो तो
व्यक्ति सदैव रोगी रहता है।

(14) मेष लग्न में मंगल चौथे या द्वादश भाव में शनि+ बुध के साथ हो तो जातक
कुष्ठ रोग से पीड़ित रहता है।

(15) मेष लग्न में शनि + चंद्रमा से युत होकर लग्नस्थ हो, बृहस्पति छठे भाव में हो तो जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित रहता है।

(16) मेष लग्न में उच्च का बृहस्पति केंद्र में हो, बुध त्रिकोण में हो तथा मंगल बलवान
हो तो जातक 80 वर्ष की स्वस्थ आयु प्राप्त करता है।

(17) मेष लग्न में लग्नेश मंगल लग्न को देखता हो, सभी शुभग्रह केंद्र में हों तो
जातक 75 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है ।

(18) मेष लग्न में मंगल हो, अथवा मंगल पांचवें सिंह का तथा सूर्य सातवें तुला का
हो तो जातक 70 वर्ष की निरोग आयु को प्राप्त करता है ।

(19) मेष लग्न में शनि+मंगल+ सूर्य हो, चंद्रमा द्वादश में तथा गुरु बलहीन हो तो
ऐसा जातक 70 वर्ष तक जीता है।

(20) मेष लग्न में चंद्रमा+ सूर्य दसम भाव में, शनि नीच का लग्न में, बृहस्पति कर्क
का चतुर्थ भाव में हो तो एक प्रकार के उच्च राजयोग की सृष्टि होती है पर ऐसा
जातक मात्र 68 वर्ष तक ही जी पाता है।

(21) यदि शनि लग्न में, कर्क का चंद्रमा चौथे, मंगल सातवें और सूर्य दसवें किसी भी अन्य शुभ ग्रह के साथ हो तो ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ
60 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(22) मेष लग्न में अष्टमेश मंगल सातवें हो तथा चंद्रमा छठे या आठवें स्थान में
पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(23) शनि लग्न में किसी भी अन्य ग्रह के साथ हो, चंद्रमा आठवें या द्वादश स्थान में
हो तो ऐसा जातक सैद्धांतिक तथा विद्वान् होता हुआ 52 वर्ष की आयु में ही गुजर जाता है।

(24) मेष लग्न में बलवान चंद्रमा लग्न में हो पर सूर्य से 120 अंश दूर हो तो जातक
राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ 48 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

(25) मेष लग्न में लग्नेश मंगल अष्टम भाव में पापग्रहों के साथ हो, और छठे स्थान
में बुध पापग्रहों के साथ हो तथा शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जीता है।

(26) मेष (चर) लग्न में चंद्रमा कन्या या वृश्चिक का शुभग्रहों से दृष्ट न हो, कोई भी
शुभ ग्रह केंद्र में न हो तो जातक मात्र 33 वर्ष तक जीता है।

(27) मेष लग्न में शनि+ मंगल लग्नस्थ हो, चंद्रमा आठवें एवं बृहस्पति छठे हो तो
जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त होता है।

(28) मेष लग्न के द्वितीय व द्वादश भाव में पापग्रह हो, लग्नेश निर्बल हो, लग्न, द्वितीय
व द्वादश भाव शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त
होता है।

(29) मेष का बृहस्पति एवं मीन का मंगल परस्पर एक-दूसरे के घर में बैठने से
'बालारिष्ट योग' बनता है ऐसे जातक की मृत्यु 12 वर्ष के भीतर होती है।

(30) मेष लग्न में चौथे राहु तथा चंद्रमा आठवें शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो बालारिष्ट
योग बनता है। ऐसा जातक आठ वर्ष के पूर्व मृत्यु को प्राप्त होता है।

(31) मेष लग्न में अष्टमेश मंगल छठे स्थान में षष्टेश बुध के साथ हो, शनि सप्तम में
अन्य पापग्रहों के साथ हो, अष्टम स्थान में भी पापग्रह हो तो जातक 31 वर्ष की
आयु में ही शल्य चिकित्सा या गुप्तरोग के कारण मृत्यु को प्राप्त करता है।

(32) मेष लग्न में मंगल हो, बृहस्पति बारहवें हो, शुक्र छठे स्थान में नीच का हो, शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि न हो तो उपाय न करने पर ऐसे जातक की एक माह में
मृत्यु हो जाती है।

(33) मेष लग्न में सूर्य+चंद्रमा यदि कन्या राशि में, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो
'बालारिष्ट योग' बनता है तथा बालक की नौ वर्ष की आयु में मृत्यु होती है।

(34) मेष लग्न में बृहस्पति लग्नस्थ हो, चंद्रमा छठे या आठवें, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो 'बालारिष्ट योग' बनता है । ऐसे जातक की आयु आठ वर्ष की होती है ।

(35) मेष लग्न में सूर्य द्वादश में, चंद्रमा छठे या आठवें, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो
जातक की 'तत्काल मृत्यु' हो जाती है।

(36) मेष लग्न के लग्न या पंचम भाव में सूर्य+राहु+शनि+मंगल+ गुरु इन पांच
ग्रहों की युति हो, चंद्रमा निर्बल हो तो जातक शीघ्र मर जाता है।

(37) मेष लग्न के सप्तम भाव में सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक
'मातृघातक' होता है।

(38) मेष लग्न के चतुर्थ भाव में मंगल के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक
'मातृघातक' होता है।

(39) मेष लग्न में लग्नस्थ शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक 'मातृघातक'
होता है।

(40) लग्न एवं लग्नेश दोनों पापग्रहों के मध्य हों, सप्तम में पापग्रह हो तथा
आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो ऐसा जातक जीवन से निराश होकर आत्महत्या
करता है।

(41) मेष (चर) लग्न में चंद्रमा पापग्रह के साथ हो, सप्तम में शनि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।

नोट👉 जन्म कुंडली मे उपरोक्त योग किसी भी एक या दो ग्रह के उच्च अथवा शुभ होने पर परिवर्तित भी हो सकते है लेकिन इन योगों का फल कम या अधिक मिलता अवश्य है। ऐसा बहुत कम ही देखा गया है कि उपरोक्त योग वाले जातकों पर ये नियम मान्य ना हो।

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