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25 September 2022

तृतीय भाव का महत्व - Astrology

 तृतीय भाव का महत्व
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तृतीय भाव हमारे पराक्रम,छोटे भाई बहन, छोटी यात्रा,स्थान परिवर्तन, अपने अधीनस्थ कर्मचारी,नौकर चाकर, पड़ोस, कंधा और बाहु आदि का भाव होता है और सबसे महत्वपूर्ण हमारे अवचेतन मन का भी भाव होता है। हमारे मन में क्या चल रहा और हम पूरे दिन क्या सोचते है यह तीसरा भाव ही बतलाता है। कालपुरुष कुंडली में तीसरे भाव के स्वामी बुध है जोकि कम्युनिकेशन के कारक भी है। यदि यह भाव पीड़ित है तो इन सब बतलाई गई चीज़ों में कुछ समस्या रहेगी। वैसे इन भावो में पापग्रहो को अच्छा और सौम्य ग्रहों को अच्छा नही मानते क्युकी पराक्रम के लिए मंगल,सूर्य,राहु और शनि जैसे ग्रहों की जरूरत होती है न की गुरु और शुक्र जैसे ग्रहों की तभी गुरु और शुक्र जैसे ग्रह इन भावो में कमजोर हो जाते है।
आपका अवचेतन मन भी प्रभावित होता है। अब इसके लिए सबसे अच्छा उपाय यह है की आप अपने अवचेतन में उन घटनाओं को बिल्कुल बाहर कर दे जिसका रिजल्ट जीरो है। उन घटनाओं पर बहस करना बंद कर दे ,अच्छे विचारों के लिए अच्छी किताबो को पढ़ना शुरू करे और तीसरे भाव का सप्तम अर्थात सप्तम का भोग नवम भाव होता है तो धार्मिक क्रियाओं, धार्मिक पुस्तकों में मन लगाए और नए अच्छे विचारों को अपने अवचेतन मन में आने दे। इससे तीसरे भाव के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

चंद्र - Astrology

 चंद्र =माता, पानी,ममता, वात्सल्य, दूध, चावल इसके विपरीत चंद्र कर्ज यानी कर्जात्मक, खर्च यानी खर्चात्मक ग्रह है कोसी भाई चीज़ के लॉस चंद्र ही तो है क्यों की चंद्र पूर्ण होकर भी घट जाता है यानि चंद्र के परिणाम कभी स्थिर नही रह पाते क्यूं की वह घटता बढ़ता रहता है
इसी चंद्र के एक कारक को लेकर कृष्ण सुदामा की कथा का वह प्रसंग याद आता है जब रुक्मणि भगवान को बोलती है की आपका दोस्त आपकी ही भक्ति करता है आप त्रिलोकी नाथ होकर भी उसकी आर्थिक और दयनीय हालत को क्यों अच्छा नही कर रहे
तभी भगवान बोलते है वह मुझसे मेरी भक्ति के अलावा कभी कुछ मांगता ही नही है उसे केवल मेरी भक्ति ही चाहिए
दूसरा प्रसंग =उधर सुदामा की पत्नी अपने पति को कहती है की तुम्हारा दोस्त तीनों लोको का स्वामी है उनके पास क्यों नही जाते तब जाते  हुए सुदामा को भेजते हुए उनकी पत्नी ने चावल की एक पोटली सुदामा के वस्त्रों के साथ बांध दी
और सुदामा के वहां पहुंचने पर भी सुदामा , कृष्ण जी से कुछ भी कह नही पाते और ना ही अपने और अपने परिवार के लिए कुछ मांग पाते है
तब वहां भगवान ने उन्हे देने का क्या तरीका खोजा वह इस प्रकार है
भगवान ने पूछा क्या भाभी ने मेरे लिए कुछ नही भेजा अब सुदामा कैसे कहे। वह कुछ नही बोल पाते और उस चावल की पोटली को छुपाने की कोशिश करते है
लेकिन भगवान उनसे वह पोटली छीन लेते है और चावल की एक मुट्ठी खा लेते है फिर चावल की दूसरी मुट्ठी खाते है तीसरी मुट्ठी में रुक्मणि उन्हे रोक लेती है की प्रभु दो मुठ्ठी में आपने सुदामा को दो लोक दे दिए और तीसरी मुट्ठी में तीसरा लोक दे दोगे तो आप और हम कहां रहेंगे तब भगवान बोले ऐसे दोस्त और भक्त के लिए मैं तीनों लोक इसे दे सकता हूं
इतना लंबी कथा में जो रहस्य मेरी तुच्छ बुद्धि में सामने आता है वह इस प्रकार है
कृष्ण जी ने चावल खाए ,चावल चंद्र का कारक है
वही चावल चंद्र के कारक होने के नाते कर्ज के कारक भी हुए यानी भगवान ने वह चावल खाकर सुदामा का कर्ज अपने ऊपर ले लिया उसके लॉस आदि को अपना बना लिया
चंद्र के कारक दूध और माता, ममता वात्सल्य , निस्वार्थ प्रेम है  यानी भगवान ने सुदामा को यह सब वात्सल्य निस्वार्थ प्रेम के वशीभूत होकर प्रदान किया
यह कथा केवल चंद्र ग्रह के कारकों को समझने के लिए रखी गई है
श्री कृष्ण चंद्र वंशी होने के कारण निस्वार्थ प्रेम के लिए भी जाने जाते है चंद्र वंशी होना भी चंद्र से ही संबंधित है क्यों कि वह बचपन से ही दूध,दही,मक्खन,  प्रेम के इर्द गिर्द ही रहे। यहां सब जगह चंद्र का ही प्रभाव नजर आता है

04 February 2022

पुनर्जन्म - Pastlife

 पुनर्जन्म से सम्बंधित चालीस प्रश्नों को उत्तर सहित पढ़े?????

(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?

उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।

(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?

उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं।

(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?

उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं।

(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।

(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?

उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।

शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।

(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?

उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ। ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।

(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?

उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।

(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?

उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।

(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?

उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।

(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?

उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।

(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?

उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।

(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?

उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।

(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?

उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।

(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?

उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो। तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।

(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?

उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था ।

महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।

(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?

उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।

(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?

उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।

(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।

(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?

उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।

(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?

उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।

(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?

उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।

(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?

उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।

(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है। जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।

(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?

उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।

(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।

(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?

उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??

(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।

(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?

उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।

(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।

(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।

(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।

(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।

और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।

(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?

उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।

(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?

उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।

(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंगे ?

उत्तर :- नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।

(33) प्रश्न :- तो फिर यह किसको पता चल सकता है ?

उत्तर :- केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।

(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?

उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें...

(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?

उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है...!

(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं...?

उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा...!

(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?

उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं..!

(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?

उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं

इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था ।

लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !!

और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया ।

जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "

तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो...!

(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?

उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं...!

(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?

उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, कितने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है...

 परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी..?

यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मछली हो, चाहे वो एक चींटी हो।

19 January 2022

Master Numbers - Numerology

 Master Number 11
This energy is fiery and wilful. It helps to purify the heart and the mind, and to cleanse out dross from old experiences. It’s like being in love, with the whole of the universe channeling through at the speed of light. The head is spinning, the heart is racing, the temperature is soaring, and consciousness is rising. We can use Master Number 11 to raise hopes and expectations, and even when there are disappointments we still hold in mind the positive ideal. Co-dependency, fear and intense emotions are brought into balance, enhancing intuition, clarity and wisdom.


Master Number 22

This energy is solid and strategic and carries deep soul sensitivity. It helps us to return to the womb of life and connect with the original blueprint. It impresses upon humanity a need for thoughtful and careful planning. It encourages co-operation, bridge-building, sharing, receptivity and love in order to build a new world together.


Master Number 33
This creative and compassionate energy is totally available to be used for the greater good. Life is service, and pure sacrifice is the way humanity learns to let go of self-gratification and self-importance. Master Number 33 provides us with intense experiences to open the heart. Although it also carries the qualities of resentment, emotional martyrdom, obsession and bitterness, soul allows these energies to melt away in the light of compassion, generosity and acceptance of the divine.


Master Number 44

 This energy is like lightning; it destroys, reconstructs and energizes all at once. It helps humanity to wake up to its responsibilities. It teaches us to accept direction from others while being true to ourselves. It asks us to endure life and carry on with the work. This master energy is often present during times of great hardship or the darkest nights of the soul. We’re re-evaluating, cutting ties with the past and gaining strength from within.


Master Number 55
This energy is like being in the eye of a hurricane. We experience stillness within our soul because we’re connected with the pure light of spirit and we remain largely unaffected by the torrent of change going on around us. Master energy 55 appears when it’s time to rip away old patterns, to bring soul back to life, and to break through if there has been a breakdown (in communication). It brings freedom and its restless energy keeps us on our toes. The risk of obsessive control, mental fragility and addictions teach us to turn inward to cleanse emotional misconceptions and to apply common sense. Courageous leadership moves us forward together.


Master Number 66
This energy feels complete, yet it is open and welcoming. The world is full of many colorful cultures and our common thread is love. Giving love and service is not a duty – it’s an intrinsic part of humanity’s energetic make-up. We may harbor guilt or shame (personally or collectively on behalf of our family or community) or blame others for our misfortunes. We are nature so we are imperfect. This master energy can teach us to reflect, recognize and let go of the past. If we interfere in the process of life, it will take us longer to reach new levels of wholeness and harmony.

 Master Number 77
This energy is stirring and all-pervasive. It can tumble down walls and barriers to create a fast network connection between mind, soul and nature. It teaches us to question everything about life and the universe and then to distribute the information to others. This master energy strips away identity and renders everything back to pure energy to provide continuity of life.


Master Number 88
This energy is fluid yet holds us upright, allowing our inner spiritual spine to act as a transmitter for the light. In quiet inner reflection we can see a mirror of society within ourselves and we cut ties with the past because great lessons have been learned. This master energy is waking us up to our deepest soul potential and aligning us to the higher spiritual will. It tests and mocks us (in case we are too serious). We are often hard on ourselves, stubborn, and can sabotage life, but this teaches us to be flexible.


Master Number 99
This energy is all-encompassing. If we feel overwhelmed it is the energy of soul overshadowing our daily existence. This energy feels vague and at other times it’s so tangible it’s as if we can reach out and touch it. Master Number 99 represents pure soul and wisdom. It contains all the other Master Numbers within it, so it is a very potent guide for humanity. It provides us with tough love, hope, forgiveness and selfless service. This energy is impossible to pin down because it’s always adapting like a chameleon to its environment. It no longer needs to be attached to an identity, no longer focuses on personal desires or needs, so fits in with everything and everyone; soul is within us and all is well.

08 January 2022

Remedies for solving health problems

General Heart Disease Indications as per Kundli:

    Planet Moon is weak and the planet Sun is placed in a malefic house.
    The presence of malefic planets is affecting the fourth house.
    When there is a combination of Saturn and Sun in the 6th, 8th, and 12th house.
    When the planet Moon is sitting with Rahu in the seventh house.
    When there is a combination of sun and moon in the seventh house.
    The planet Sun gets the malefic perspective of Saturn.
    When the 5th lord is placed in the 8th house.
    The Sun falling in the star-constellation (Nakshatra) of Ketu.
    When the planets Sun and Saturn exchange their signs.
    There is a combination of Mars and Venus in the horoscope of the people belonging to Leo Zodiac Sign

 

 These heart diseases not only affect the functioning of a heart and the person who is suffering from the disease but it also affects loved ones of the person who is suffering from these ailments. It is recommended that in case you have any heart- related ailments you must consult your doctor first. These suggested remedies can be followed as precautionary measures or in addition to routine medical care. These remedies will probably help you in curing your heart problems but for faster results.
Remedies for solving health problems, according to Kundli prediction:

    During sunrise, chanting of the Gayatri Mantra should be done for 108 times on Sunday, which will give protection from heart diseases.

    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुवरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
    On a Monday night, while sitting in a comfortable position chant the mantra of the moon (ऊं सोम सोमाय नम…) for 108 times. It is beneficial for heart diseases and keeps you absolutely fit. That is why most astrologers recommend going for a personalized health report in the early days of your life. This would shield you from most diseases and keep heart-related ailments at bay.
    On Tuesday, the mantra should be chanted one hundred and eight times at the time of worship. ऊं अं अंगारकार नमः ।।
    Emerald, White Pearl, and Yellow Topaz should be worn by a person suffering from any heart problems.
    It is very necessary for the planet, sun to be in its favorable position in your horoscope. If the sun's position is not favorable in your horoscope, then you should render water filled in a copper vessel to the planet, Sun, every day.
    Chanting Sun’s Seed Mantra is also very beneficial to avoid all sorts of heart- related ailments. ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
    Plant a succulent plant for eradicating heart problems from your life and water it every day. It will definitely benefit you as this plant removes heart diseases.
    Sit in a very comfortable position and Chant Moon mantras at least 108 times, “Om som Somaaya Namah”.
    Chant Mars Mantras regularly at least 108 times while sitting in a comfortable position. “Om Angangar Kaaya Namah”.

Medical astrology

 The following list denotes planets and the corresponding medical astrology predictions of the organ/ body part/ health issues they represent:

Sun: Stomach, heart, head, back, the right eye of a man, left eye of a woman, vitality, joint, sinus, migraine, high fever, etc.

 
Moon: Lungs, blood, body fluids, brain, left eye of a man, right eye of a woman, insomnia, and asthma. When aligned with Saturn it causes dry cough, diabetes, vomiting, etc.

 
Mars: Blood, thalassemia, chest, nose, gall bladder, bile, bone marrow, red blood cells, etc. It causes brain disorder, itching, blood clotting, female genital diseases, knee problems, etc.

 
Mercury: Nervous system, skin, face, thyroid. It has a direct influence over mental disorders, ear problems, etc.

 
Jupiter: Liver, kidneys, pancreas. Excessive fat gain, fatty liver, heart tumor, memory loss are few effects of a weak Jupiter.

 
Venus: It has a direct impact on the throat, throat glands, face, cheeks, urine problems, ovarian cysts, etc. A weak Venus can also cause impotency.

 
Saturn: Legs, bones, muscle, teeth, hair, physical weakness, joint pain, arthritis, gastric problems, etc.

 
Rahu: Rahu may cause cancer, breathing problems, ulcers, cataracts, stammering problems, etc.

 
Ketu: This is the ‘karaka’ planet of the abdomen. It is also responsible for wounds and flesh rotting due to insect bite. Ketu brings in mysterious diseases, which may gradually weaken our immunity. It can also cause physical weakness, stomach pain, etc.


The Seven Chakras and their related human characteristics & organs.



1. Muladhara or Root Chakra:

Mental Characteristic: Fear, indiscipline, facing tough situations, being greedy & insecure, sleeplessness, work longevity.

Physical/mental health problems related to Flesh, muscles, teeth, bone, knee, feet, joints, rheumatism, endocrine gland - adrenal cortex.

2. Svadhishthana or Sacral Chakra:

Mental Characteristic: Self Assurance, financial wealth, luck, material and spiritual life, justice, education, dishonesty, opposing religion and philosophy, expansion, passion.
Physical/mental health problems related to the Liver, hips, glands, hormones, pancreas, diabetes, blood vessels, buttocks, obesity, sexual urges, and sexual endocrine gland issues, ovaries, or testicle issues.

3. Manipura or Solar Plexus Chakra:

Mental Characteristic: Independence, courage, will power, generosity, protection, clarity, energy drive.

Physical/mental health problems related to Sexual energy, head, blood, digestive system, bile, accidents, metabolism, burns, fractures, fever, piles, skin rashes, electronic shock, suicidal tendencies, pancreas, Endocrine gland: Adrenals.

4. Anahata or Heart Chakra:

Mental Characteristic: failure in love, extreme attachment to materialistic things, importance to luxuries, and unhealthy relationships

Physical/mental health problems related to Throat, neck, sexual organs, pelvis, menstrual irregularity, semen, urinary bladder, kidneys, and Endocrine gland: Thymus.

5. Vishuddha or Throat Chakra:

Mental Characteristics: Lack of intelligence and communication, bad decision-making.
Physical/mental health problems related to Abdomen, skin, nervous system, neck, mouth, bronchial tube, tongue, lungs, hands arms, insomnia, deafness, dyspepsia, Endocrine gland: Thyroid and Parathyroid gland.

6. Ajna or Third Eye Chakra:

Mental Characteristic: Being over-confident, lack of awareness, dominating, and wrong judgment.

Physical/mental health problems related to Eyesight, gall bladder, spine, belly, headaches, constipation, blood pleasure, immune system, breast, face, psychic problems, sleep disorder, tuberculosis, cough, cold, hyper-sensitivity, over-reaction, lack of appetite.

7. Meditation Sahasrara or the Crown Chakra:

Physical/mental health problems related to Memory problems, productivity, femininity, motherhood, depression, emotional disorder, nightmares, nervous system, neurological diseases like Parkinson’s, Alzheimer’s, paralysis, epilepsy. Head, pineal gland, skeletal and muscular systems Endocrine gland: Pineal gland.

Kitchen Spices Jyotish In Hindi

 मसाले और ग्रह

  1. नमक (पिसा हुआ) – सूर्य
  2. लाल मिर्च (पिसी हुई) – मंगल
  3. हल्दी (पिसी हुई ) – गुरु
  4. जीरा (साबुत या पिसा हुआ) – राहु केतु
  5. धनियां (पिसा हुआ) – बुध
  6. काली मिर्च (साबुत या पाउडर) – शनि
  7. अमचूर (पिसा हुआ) – केतु
  8. गर्म मसाला (पिसा हुआ) – राहु
  9. मेंथी- मंगल
  10. सौंफ – शुक्र और चंद्र
  11. दालचीनी – मंगल और शुक्र
  12. जौं – सूर्य और गुरु
  13. हरी इलायची – बुध
  14. हींग – बुध


मसाले के सेवन से अपने स्वास्थ्य और ग्रहों को ठीक करें। भारतीय रसोई में मिलने वाले मसाले सेहत के लिए तो अच्छे होते ही हैं पर साथ में उन के सेवन से हमारे ग्रह भी अच्छे होते हैं।


नमक – सूर्य
नमक सूर्य ग्रह को दर्शाता है| रात में 12 बजे के बाद लकड़ी का टुकड़ा लेकर आएं| ये ध्यान रहे की लकड़ी लाते वक्त आपको कोई देख ना पाए| फिर सुबह तांबे का लोटे जल से भरें|

सूर्य गृह को तांबे के लोटे वाला जल चढ़ाए उसमे से थोड़ा सा जल लोटे में बचा लें| अब बचे हुए जल में थोड़ा नमक मिलाकर उस लकड़ी के टुकड़े को भिगाएं| सूर्य को जल चढ़ाते वक्त जो जगह गीली हुई है इस भीगी लकड़ी को वहां रख दें| लकड़ी के साथ एक लाल फूल भी रखना है| इससे आपका सूर्य ग्रह मजबूत होता है|

घर में धन को बनाए रखने के लिए :

कांच का गिलास ले अब इसमें पानी और नमक मिलाकर घर के नैऋत्य कोने में रखें और उसके पीछे लाल रंग का ब्लब लगा दें, जब गिलास का पानी सूखे जाए तो उस गिलास को साफ कर ले| पैसे की कमी होना रुक जाएगी|



मेथी और चंद्र
मेथी चंद्र को दर्शाती है| 100 ग्राम मेथी ले | अब इसके बराबर तीन हिस्से करें| पहला हिस्सा किसी मंदिर में चढ़ा दें| दूसरा हिस्सा घर की छत पर रखें और मेथी का तीसरा हिस्सा अपने किचन में रखें| जब भी मेथी बनाने के लिए घर लाएं तो उसमें किचन मे रखें तीसरे हिस्से की मेथी से थोड़ी निकालकर मिलाए|मेथी दाने हमारे बालों की जड़ों को मजबूत करते हैं और Damage Hair को फिर से अच्छा बना देते हैं| इस में प्रोटीन होता है, इसलिए इन्हे अपनी डाइट में भी शामिल करने से बाल हेल्दी और खूबसूरत बनते है और Hair Fall भी रुक जाता है|

इनको रात भर के लिए भीगा दीजिये | अब सुबह इसका पेस्ट बना लीजिये और पेस्ट में एक चम्मच नारियल तेल या जैतून तेल मिलाकर बालों में लगा लीजिये फिर सूखने के बाद इसे पानी से धो लें|

लाल मिर्च और मंगल
लाल मिर्च मंगल ग्रह को दर्शाती है| आज ही सवा किलो (1 किलो 250 ग्राम ) लाल मिर्च घर लेकर आएं| फिर सभी मिर्चों को किचन को छोड़कर किसी साफ जगह रखें| उसमे से 1 मिर्च आग में डाल दें उसके बाद एक मिर्च रोज सब्जी या दाल में डालें|

अगर किसी को नजर लग गई है, तो लाल मिर्च का उपयोग कीजिए| नमक, रोई, प्याज के छिलके, लाल मिर्च व लहसून लेकर जिसे नज़र लगी है उस पर 7 या 21बार घुमाने ले फिर अंगारे पर डाल दें | फिर उस अंगारे को रोगी के सिर से उलटा 21 बार घुमाने से खतनाक से खतरनाक नजर उतर जाती है.


धनिया और बुध
धनिया बुध ग्रह को रिप्रजेंट करता है| आज करीब 100 ग्राम पिसा धनिया बाजार से ले आएं| इस धनिया के 3 बराबर हिस्से करें| दो हिस्से को अलग अलग लाल कागज में और बाकि धनिये के एक हिस्से किसी डिब्बे में बंद कर लें| एक हिस्सा लाल कागज का किसी मंदिर वगैराह में जाकर अग्नि में चढ़ा दें| दूसरा हिस्सा घर आने से पहले किसी सुनसान जगह पर मिट्टी में दबा दें| अब जब भी धनिया लाएं इसमें डिब्बे में बंद ये वाला धनिया पाउडर थोड़ा मिला लें|

अगर आपको आपके घर में बरकत लानी है तो नमक, धनिया, हल्दी, कमलगट्टे घर लाए | नमक साबुत,धनिया पावडर , हल्दी की कम से कम 5 पांच गाँठ ओर कमलगट्टे कम से कम 11 नग होने चाहिये| इन सब चीजों को अच्छी तरह से साफ़ कर के छोटी-छोटी पोलिथिन में अलग-अलग डाल कर पैक कर ले | उसके बाद सभी को किसी बड़ी पोलिथिन में एक साथ डाल कर आपके घर के ईशानकोण में रख दे. आपके घर मे बरकत का रास्ता खुलेगा|

सौंफ – शुक्र और चंद्र
सौंफ खाने से शुक्र ग्रह और चंद्र ग्रह दोनों ही अच्छे होते है। सौंफ को मिश्री के साथ या उसके बिना भी खा सकते है। इसको नियमित खाने के बाद खाने से एसिडिटि और जी मिचलाने जैसी समस्या कम होने लगती है। जब आप घर से किसी काम के लिए निकल रहें हों, तब सौंफ को गुड के साथ खाकर जाए। इससे आप का मंगल ग्रह आप का काम पूरा करने में साथ देता है।

दालचीनी – मंगल और शुक्र
दालचीनी मंगल और शुक्र ग्रह दोनों को दर्शाती है। दालचीनी को शहद में मिलाकर पानी के साथ लेने से आपका मंगल और शुक्र शांत रहते है| इसको खाने से आप के शरीर में शक्ति भी बढ़ती है और सर्दियों में कफ की समस्या कम होती है।


काली मिर्च – शनि
काली मिर्च शुक्र और चंद्रमा को दर्शाती है। इसके सेवन से कफ की समस्या कम होती है और हमारी स्मरण शक्ति बढ़ती है। तांबे के किसी बर्तन में काली मिर्च डालकर खाने की टेबल (Dining Table) पर रखने से घर को नज़र भी नहीं लगती है।

जौं – सूर्य और गुरु
जौं सूर्य ग्रह और गुरु ग्रह को दर्शाता है। जौं के आटे की रोटी खाने से पथरी कभी नहीं होती।

हरी इलायची – बुध
हरी इलायची बुध ग्रह को दर्शाती है। अगर किसी को दूध पचाने में परेशानी होती है, तो हरी इलायची उस में पका कर फिर दूध का सेवन करना चाहिए |

हल्दी – गुरु
हल्दी के गुण हम सबसे छुपे नहीं हैं, हल्दी बृहस्पति ग्रह को दर्शाती है। हल्दी की गांठ को पीले धागे में बांध ले फिर गुरुवार के दिन इसको अपने गले में धारण करने ले, इससे बृहस्पति केअच्छे फल मिलते हैं | हल्दी वाला दूध पीने से Arthritis, Bones और Infections में भी फायदा मिलता है।

जीरा – राहु केतु
जीरा राहू और केतू दोनो ग्रहों को दर्शाता है। जीरे का सेवन खाने में करने से हमारे दैनिक जीवन में सौहार्द व शांति बानी रहती हैं।

हींग – बुध
हींग बुध ग्रह को दर्शाती है। हींग का प्रतिदिन सेवन करने से वात व पित्त के रोग काम होते हैं। हींग से पाचन शक्ति भी बढ़ती है और क्रोध को काम करने मे सहायक होती है |

ज्योतिष में मसालों के फायदे - Remedies

यह मसाले हमारे ग्रह-नक्षत्रों को भी प्रभावित करते हैं। कौन सा मसाला, आपके जीवन में कहां प्रभाव डालता है और किस ग्रह को एक्टिव करके आपको लाभ या नुकसान पहुंचाता है |


खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए नमक बहुत महत्वपूर्ण है। नमक का संबंध सूर्य से माना जाता है। नमक आप जल में मिलाकर सूर्य को देते हैं तो यह आपको कर्ज से मुक्ति का रास्ता निकालता है तो वहीं इसका सेवन कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत करता है और उसके अशुभ प्रभाव को दूर करने का काम करता है।

लाल मिर्च नवग्रहों के सेनापित मंगल ग्रह से संबंधित है। जिनकी कुंडली में मंगल की स्थिति सही नहीं है तो उनको लाल मिर्च का दान करना चाहिए। मंगल जातक को साहसी बनाता है और इसके शुभ प्रभाव से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसका प्रभाव पारिवारिक जीवन पर भी पड़ता है। वहीं कुंडली में अगर मंगल सही नहीं है तो त्वचा संबंधित कई रोग हो सकते हैं। लाल मिर्च कुंडली में मंगल की स्थिति को मजबूत करता है।

हल्दी कई मायनों में गुणकारी होती है। हल्दी बृहस्पति ग्रह से संबंधित होती है और इसके सेवन से कुंडली में बृहस्पति की स्थिति मजबूत होती है। हल्दी का संबंध बृहस्पति ग्रह से है इसलिए इसके सेवन से व्यक्ति भाग्यशाली होता है और कई क्षेत्रों में लाभ प्राप्त करता है। हल्दी के उपाय करने से बृहस्पति ग्रह कुंडली में मजबूत होते हैं। वहीं कुंडली में बृहस्पति ग्रह की स्थिति सही नहीं है तो जीवन में कई असफलताओं का सामना करना पड़ता है।

जीरा राहु-केतु का प्रतिनिधित्व करते हैं। जीरा का निरंतर सेवन सेवन करना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। राहु-के शुभ फल की प्राप्ति के लिए मंगलवार के दिन दही में जीरा डालकर प्रयोग करें तो जीवन में सुख-शांति के साथ समृद्धि भी प्राप्त होती है। साथ ही भाग्य भी साथ देता है।

धनिया ग्रहों के राजकुमार बुध से संबंधित होता है। धनिया के उपाय करने से कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है और घर मे बरकत का रास्ता खुलता है। बुध की मजबूत स्थिति से व्यक्ति बौद्धिक रूप से धनी और कुशल वक्ता बनाता है। साथ ही धन के मामले में भी बुध का साथ मिलता है। वहीं इसके अशुभ प्रभाव से जीवन में दरिद्रता आती है और कारोबार में हानि का सामना करना
पड़ता है। साथ ही मानसिक रूप से परेशानी आती है।

काली मिर्च शनि ग्रह से संबंधित होती हैं और इसके सेवन से कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत होती है। अगर शनि अशुभ प्रभाव दे रहा है तो काली मिर्च के उपाय करने चाहिए। शनि ग्रह व्यक्ति को धैर्यवान और साहसी बनाता है। साथ ही जीवन में स्थिरता बनी रहती है और कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। वहीं शनि जब अशुभ प्रभाव देता है तो जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है और व्यक्ति की जिंदगी कारावास जैसी हो जाती है।

पिसा हुआ आमचूर का संबंध केतु ग्रह से है। केतु केवल अशुभ नहीं देता बल्कि शुभ प्रभावों के लिए केतु को जाना जाता है। कुंडली में अगर केतु शुभ स्थान पर हो तो वह रंक को राजा बना देता है और हर क्षेत्र में सफलता देता है और समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। वहीं अशुभ केतु का प्रभाव जीवन में कईसमस्याएं लाता है। हर कार्य में बाधा आती है और कालसर्प दोष निर्माण करता है। केतु के अशुभ प्रभाव से मुक्ति के लिए आमचूर का प्रयोग काफी लाभदायक सिद्ध होता है।

 पिसा हुआ गर्म मसाला राहु का प्रतिनिधित्व करता है। गर्म मसाला जिस तरह खाने का स्वाद बढ़ाता है, उसी तरह कुंडली में राहु का शुभ प्रभाव जीवन में हर खुशी देता है। वह साहस प्रदान करता है। जिस तरह ज्यादा गर्म मसाला खाने को खराब कर देता है, उसी तरह अशुभ राहु के प्रभाव से कोई न कोई बाधा आती रहती है। साथ ही असफलताओं का सामना करना पड़ता है। राहु के शुभ प्रभाव के  गर्म मसाला का उपाय जीवन में समृद्धि लाता है।

मेथी मंगल ग्रह से संबंधित होती है। मंगल के शुभ प्रभाव से व्यक्ति किसी के आगे नहीं झुकता और अपनी बात को सही सिद्ध करता है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और सभी सदस्यों के साथ संबंध मुधर रहते हैं। साथ ही जिस क्षेत्र में अपना योगदान करता है, वहां सफलता मिलती है। कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति से जमीन, परिवार, कर्ज जैसी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही स्वास्थ्य के मामले में कोई न कोई परेशानी बनी रहती है।