जानिए आपके शरीर का कौन सा चक्र बिगडा हुआ है एवं उस को ठीक कैसे करें ?
(1) मूलाधार चक्र Sky Element Lam Beej Sound . Listening & Speaking Ears Linguistics लं ङं ञं णं नं मं क्षं अं अः ऌं ॡं
- गुदा और लिंग के बीच 11 पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। इसके बिगड़ने से वीरता, धन ,समृधि ,आत्मबल ,शारीरिक बल ,रोजगार, कर्मशीलता, घाटा, असफलता रक्त एवं हड्डी के रोग, कमर व पीठ में दर्द, आत्महत्या के बिचार ,डिप्रेशन ,केंसर अदि होता है।
(2) विशुद्धख्य चक्र - Air Element , Ham beej , Throat , Language , Exression , Touch & feel हं कं चं टं पं तं शं अं आं
कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह 9 पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है, इसके बिगड़ने पर वाणी दोष, अभिब्यक्ति में कमी ,गले ,नाक,कान,दात, थाई रायेड, आत्मजागरण में बाधा आती है।
(3) अनाहत चक्र Fire Element Yam Beej , Blood , Heart , Pancreas , Liver
यं खं छं ठं थं फं षं इं ईं एं ऐं
- हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह 11 पंखरियों वाला है । इसके बिगड़ने पर लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता,नफरत ,प्रेम में असफलता ,प्यार में धोखा ,अकेलापन ,अपमान, मोह, दम्भ, अपनेपन में कमी ,मन में उदासी , जीवन में बिरानगी ,सबकुछ होते हुए भी बेचनी, छाती में दर्द ,साँस लेने में दिक्कत ,सुख का अभाव, ह्रदय व फेफड़े के रोग, केलोस्ट्राल में बढ़ोतरी अदि ।
(4) स्वाधिष्ठान चक्र Water Element Ram Beej , Emotions , Taste , tongue ,
रं ळं घं झं ढं धं भं ऋं ॠं
- इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी 9 पंखुरियाँ हैं । इसके बिगड़ने पर क्रूरता,गर्व,आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, नपुंसकता ,बाँझपन ,मंद्बुधिता ,मूत्राशय और गर्भाशय के रोग ,अध्यात्मिक सिद्धी में बाधा बैभव के आनंद में कमी अदि होता है।
(5) मणिपूर चक्र Earth Element Vam Beej ,Praan ( Sharir Sanchalan ki Visheshta) , Nabhi , Smell , Nose
वं सं गं जं डं दं बं उं ऊं ओं औं
- नाभि में 11 दल वाला मणिचूर चक्र है । इसके इसके बिगड़ने पर तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, अधूरी सफलता ,गुस्सा ,चिंडचिडापन, नशाखोरी, तनाव ,शंकलुप्रबिती,कई तरह की बिमारिया ,दवावो का काम न करना ,अज्ञात भय ,चहरे का तेज गायब ,धोखाधड़ी, डिप्रेशन,उग्रता ,हिंशा,दुश्मनी ,अपयश ,अपमान ,आलोचना ,बदले की भावना,एसिडिटी, ब्लडप्रेशर,शुगर,थाईरायेड, सिरएवं शारीर के दर्द,किडनी ,लीवर ,केलोस्ट्राल,खून का रोग आदि इसके बिगड़ने का मतलब जिंदगी का बिगड़ जाना ।
(6) आज्ञाचक्र - Direction ( + - षं षः)
भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इसके बिगड़ने पर एकाग्रता ,जीने की चाह,निर्णय की सक्ति, मानसिक सक्ति, सफलता की राह आदि इसके बिगड़ने मतलब सबकुछ बिगड़ जाने का खतरा।
(1) मूलाधार चक्र Sky Element Lam Beej Sound . Listening & Speaking Ears Linguistics लं ङं ञं णं नं मं क्षं अं अः ऌं ॡं
- गुदा और लिंग के बीच 11 पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। इसके बिगड़ने से वीरता, धन ,समृधि ,आत्मबल ,शारीरिक बल ,रोजगार, कर्मशीलता, घाटा, असफलता रक्त एवं हड्डी के रोग, कमर व पीठ में दर्द, आत्महत्या के बिचार ,डिप्रेशन ,केंसर अदि होता है।
(2) विशुद्धख्य चक्र - Air Element , Ham beej , Throat , Language , Exression , Touch & feel हं कं चं टं पं तं शं अं आं
कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह 9 पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है, इसके बिगड़ने पर वाणी दोष, अभिब्यक्ति में कमी ,गले ,नाक,कान,दात, थाई रायेड, आत्मजागरण में बाधा आती है।
(3) अनाहत चक्र Fire Element Yam Beej , Blood , Heart , Pancreas , Liver
यं खं छं ठं थं फं षं इं ईं एं ऐं
- हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह 11 पंखरियों वाला है । इसके बिगड़ने पर लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता,नफरत ,प्रेम में असफलता ,प्यार में धोखा ,अकेलापन ,अपमान, मोह, दम्भ, अपनेपन में कमी ,मन में उदासी , जीवन में बिरानगी ,सबकुछ होते हुए भी बेचनी, छाती में दर्द ,साँस लेने में दिक्कत ,सुख का अभाव, ह्रदय व फेफड़े के रोग, केलोस्ट्राल में बढ़ोतरी अदि ।
(4) स्वाधिष्ठान चक्र Water Element Ram Beej , Emotions , Taste , tongue ,
रं ळं घं झं ढं धं भं ऋं ॠं
- इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी 9 पंखुरियाँ हैं । इसके बिगड़ने पर क्रूरता,गर्व,आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, नपुंसकता ,बाँझपन ,मंद्बुधिता ,मूत्राशय और गर्भाशय के रोग ,अध्यात्मिक सिद्धी में बाधा बैभव के आनंद में कमी अदि होता है।
(5) मणिपूर चक्र Earth Element Vam Beej ,Praan ( Sharir Sanchalan ki Visheshta) , Nabhi , Smell , Nose
वं सं गं जं डं दं बं उं ऊं ओं औं
- नाभि में 11 दल वाला मणिचूर चक्र है । इसके इसके बिगड़ने पर तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, अधूरी सफलता ,गुस्सा ,चिंडचिडापन, नशाखोरी, तनाव ,शंकलुप्रबिती,कई तरह की बिमारिया ,दवावो का काम न करना ,अज्ञात भय ,चहरे का तेज गायब ,धोखाधड़ी, डिप्रेशन,उग्रता ,हिंशा,दुश्मनी ,अपयश ,अपमान ,आलोचना ,बदले की भावना,एसिडिटी, ब्लडप्रेशर,शुगर,थाईरायेड, सिरएवं शारीर के दर्द,किडनी ,लीवर ,केलोस्ट्राल,खून का रोग आदि इसके बिगड़ने का मतलब जिंदगी का बिगड़ जाना ।
(6) आज्ञाचक्र - Direction ( + - षं षः)
भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इसके बिगड़ने पर एकाग्रता ,जीने की चाह,निर्णय की सक्ति, मानसिक सक्ति, सफलता की राह आदि इसके बिगड़ने मतलब सबकुछ बिगड़ जाने का खतरा।
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