Pages

16 July 2020

सभी 12 चंद्र राशियों की खास बातें |


मेष- चू, चे, चो, ला,ली, लू,ले, लो, आ
 राशि स्वरूप: मेंढा जैसा,राशि स्वामी- मंगल।
1. राशि चक्र की सबसे पहली राशि मेष है। यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। राशि का चिह्न मेढ़ा संघर्ष का प्रतीक है।
2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते हैं। यह लोग किसी के दबाव में काम करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ-सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
3. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते हैं तथा जिस काम को हाथ में लिया है, उसे पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
5. इनके स्वभाव में कभी-कभी लापरवाही भी आ जाती है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना इन्हें अच्छा लगता है।
6. इनकी कल्पना शक्ति की अच्छी रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।
7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से भी करते हैं। इस कारण कई बार धोखा भी खाते हैं।
8. इन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता है। किसी भी चुनौती को स्वीकार करने की आदत होती है।
9. अपना अपमान जल्दी नहीं भूलते हैं, मन में दबा के रखते हैं। मौका मिलने पर बदला लेने से नहीं चूकते।
10. अपनी जिद पर अड़े रहना भी मेष राशि का स्वभाव है। इनके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
11. ये लोग हर काम करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं।
12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों से काम करवाना चाहते हैं। इस कारण इनके कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।
13. एक ही काम को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होता।
14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता है। नेतृत्व क्षमता अच्छी होती है।
15. कम बोलना, जिद करना इनका स्वभाव है। कभी-कभी प्रेम संबंध में दुखी भी रहते हैं।

वृषभ- ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू,वे, वो
 राशि स्वरूप- बैल जैसा
 राशि स्वामी- शुक्र।
 राशि परिचय
1. इस राशि का चिह्न बैल है। बैल अधिक पारिश्रमी और ताकतवर होता है, साधारणत: ये जीव शांत भी रहता है, लेकिन गुस्सा आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार का स्वभाव वृष राशि का भी होता है।
2. वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है। इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
3. सरकारी ठेकेदारी का काम करवाने की योग्यता इस राशि के लोगों में रहती है।
4. इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, व्यक्ति का मन सरकारी कामों की ओर रहता है।
5. पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा धन कमाने का साधन होता है। इन लोगों को मसालेदार भोजन अधिक पसंद होता है।
6. इन लोगों के पास ज्ञान अधिक होता है, जिससे अहम का भाव इनके स्वभाव में आ जाता है। ये लोग जब भी कोई बात करते हैं तो स्वाभिमान की बात करते हैं।
7. सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और सरकारी काम इनको आकर्षित करते हैं।
8. यदि कुंडली में केतु का बल मिल जाता है तो व्यक्ति शासन में मुख्य अधिकारी बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर मानसिक गर्मी बढ़ती है।
9. कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का काम ये लोग कर सकते हैं। इनकी माता के जीवन में परेशानियां ज्यादा होती हैं।
10. ये लोग सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। कला के क्षेत्र में नाम कमाते हैं।
11. माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण में तालमेल लाता है। ये लोग अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करते हैं।
12. चन्द्र-बुध के कारण इन लोगों को संतान के रूप में कन्या मिल सकती है। माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है।
13. इनके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाते हैं।
14. हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार खुद के षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।
15. रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है, इस कारण इनके मन में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है।
 
मिथुन- का, की, कू, घ, ङ,छ, के, को, ह
राशि स्वरूप- स्त्री-पुरुष आलिंगनबद्ध, राशि स्वामी- बुध।
1. यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है।
2. मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के स्वामी मंगल-शुक्र हैं। मंगल शक्ति और शुक्र माया का प्रतीक है।
3. शुक्र के कारण ये लोग जीवनसाथी के लिए हमेशा शक्ति बन रहते हैं, कभी-कभी घरेलू कारणों से आपस में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
4. यदि इनकी कुंडली में मंगल और शुक्र की युति है तो इन लोगों में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है।
5. ये लोग वाहनों की अच्छी जानकारी रखते हैं। नए-नए वाहनों और सुख के साधनों के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है।
6. मंगल के कारण व्यक्ति वचनों का पक्का बन जाता है।
7. गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का शिष्य है। कुंडली में इन ग्रहों की स्थिति से इस राशि के लोगों में ईश्वर की भक्ति को बढ़ाते हैं।
8. इस राशि के लोगों में ब्रह्माण्ड को समझने की योग्यता होती है। ये लोग वायुयान और सैटेलाइट के बारे में ज्ञान बढ़ाते हैं।
9. यदि कुंडली में राहु-शनि एक साथ हैं तो व्यक्ति की शिक्षा और शक्ति बढ़ती रहती है। व्यक्ति का कार्य शिक्षा स्थानों में या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।
10. व्यक्ति एक दायरे में रह कर ही काम कर पाते हैं और पूरा जीवन लाभ प्राप्त करते हैं। व्यक्ति के अंदर एक मर्यादा होती है जो उसे धर्म में बांधे रखती है। व्यक्ति सामाजिक और धार्मिक कार्यों में लगा रहता है।
11. यदि कुंडली में गुरु और मंगल एक साथ हों तो व्यक्ति अपने क्षेत्र में उच्च शिखर तक पहुंच सकता है।
12. व्यक्ति अपने ही विचारों में उलझता है। मिथुन राशि पश्चिम दिशा की प्रतीक है। इसका स्वामी बुध है।
13. बुध की धातु पारा है और इसका स्वभाव जरा-सी गर्मी-सर्दी में ऊपर नीचे होने वाला है। यही स्वभाव इन लोगों का भी होता है। दूसरे की मन की बातें पढ़ने, दूरदृष्टि, बहुमुखी प्रतिभा, अधिक चतुराई से कार्य करने की क्षमता होती है।
14. व्यक्ति को बुद्धि वाले कामों में सफलता मिलती है। वाणी की चतुरता से इस राशि के लोग कुशल कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी बन जाते हैं।
15. हर काम में जिज्ञासा और खोजी दिमाग होने के कारण इस राशि के लोग जांच-पड़ताल में भी सफल होते हैं। ये लोग पत्रकार, लेखक, भाषाओं की जानकारी रखने वाले, योजनाकार भी बन सकते हैं।

 कर्क- ही, हू, हे, हो, डा,डी, डू, डे, डो
राशि स्वरूप- केकड़ा, राशि स्वामी- चंद्रमा।
1. ये राशि चक्र की चौथी राशि है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है।
2. राशि स्वामी चन्द्रमा है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अंतिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
3. कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते हैं। कुंडली में शनि-सूर्य एक साथ हों तो व्यक्ति को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं और व्यक्ति में अहम की भावना बढ़ाते हैं।
4. जिस स्थान पर भी ये लोग काम करने की इच्छा करते हैं, वहां परेशानी ज्यादा मिलती है।
5. कुंडली में शनि-बुध की युति व्यक्ति को होशियार बना देती है। कुंडली में शनि-शुक्र की युति से व्यक्ति को धन प्राप्त होता है।
6. शुक्र व्यक्ति को सजने-संवरने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है।
7. व्यक्ति उपदेशक बन सकता है। कुंडली में बुध की अच्छी स्थिति से गणित की समझ और शनि से लिखने का प्रभाव बढ़ता है। कम्प्यूटर के कामों में व्यक्ति को सफलता मिलती है।
8. व्यक्ति श्रेष्ठ बुद्धि वाला, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाला, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों का का काम करने वाला होता है। वह मातृभक्त होता है।
9. केकड़ा जब किसी चीज या जीव को अपने पंजों में जकड़ लेता है तो उसे आसानी से छोड़ता नहीं है। उसी तरह ये लोग भी अपने लोगों को तथा अपने विचारों को आसानी से छोड़ते नहीं हैं।
10. यह भावना उन्हें ग्रहणशील, एकाग्रता और धैर्य के गुण प्रदान करती है।
11. इनका मूड बदलते देर नहीं लगती है। कल्पनाशक्ति और स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है।
12. उनके लिए अतीत का महत्व होता है। मित्रता को जीवन भर निभाना जानते हैं, अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं।
13. ये सपना देखने वाले होते हैं, परिश्रमी और उद्यमी होते हैं।
14. व्यक्ति बचपन में दुर्बल होते हैं, लेकिन आयु के साथ-साथ उनके शरीर का विकास होता जाता है।
15. इन लोगों को भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
 
  सिंह- मा, मी, मू, मे,मो,टा,टी, टू, टे
राशि स्वरूप- शेर जैसा,
राशि स्वामी- सूर्य।
1. सिंह राशि पूर्व दिशा की प्रतीक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है।
2. इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है।
3. केतु-मंगल की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति दिमागी रूप से तेज होता है। केतु-शुक्र की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है।
4. केतु-बुध के प्रभाव से कल्पना करने और हवाई किले बनाने की इनकी सोच होती है। चंद्र-केतु की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
5. व्यक्ति का सुन्दरता के प्रति मोह होता है। व्यक्ति में अपने प्रति स्वतंत्रता की भावना रहती है और किसी की बात नहीं मानता।
6. ये लोग पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं। कम भोजन करना और खूब घूमना, इनकी आदत होती है।
7. इनमें हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर जोखिमभरे काम करने से भी नहीं चूकते।
8. व्यक्ति जीवन के पहले दौर में सुखी, दूसरे दौर में दुखी और अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है।
9. सिंह राशि वाले लोग हर काम शाही ढंग से करते हैं, जैसे सोचना शाही, करना शाही, खाना शाही और रहना शाही।
10. इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं। ये लोग जो खाते हैं वही खाएंगे, अन्यथा भूखा रहना पसंद करेंगे।
11. व्यक्ति कठोर मेहनत करने वाले, धन के मामलों में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। सोना, पीतल और हीरे-जवाहरात का व्यवसाय इन्हें बहुत फायदा देने वाले होते हैं।
12. यदि ये लोग सरकार और नगर पालिका में कार्यरत हैं तो इन्हें लाभ अधिक मिलता है। व्यक्ति की वाणी और चाल में शालीनता पाई जाती है।
13. इस राशि वाले लोग सुगठित शरीर के मालिक होते हैं। नाचना भी इनकी एक विशेषता होती है। इस राशि वाले या तो बिल्कुल स्वस्थ रहते हैं या फिर अधिकतर बीमार रहते हैं।
14. जिस वातावरण में इनको रहना चाहिए, अगर वह न मिले तो दुखी रहने लगते हैं।
15. रीढ़ की हड्डी की बीमारी या चोटों से परेशानियां हो सकती हैं। इस राशि के लोगों को हृदय रोग, धड़कन का तेज होना, लू लगना और आदि बीमारी होने की संभावनाएं होती हैं।
 
कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष,ण, ठ, पे, पो
राशि स्वरूप- कन्या, राशि स्वामी- बुध।
1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की प्रतीक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अंतर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।
3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।
4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के व्यक्ति कार्य करते हैं।
5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां इन लोगों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहना चाहिए।
6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा इनकी वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होती है।
7. इस राशि वाले पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल हो सकता है। ये लोग नाजुक और कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।
8. ये अपनी योग्यता के बल पर उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डरा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य से आगे बढ़ते रहते हैं।
9. बुध ग्रह का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है।
10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण इनके स्वभाव से शर्म तो कम हो जाती है, लेकिन नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।
11. इनको अकारण क्रोध नहीं आता, लेकिन जब क्रोध आता है तो जल्दी समाप्त नहीं होता। जिस कारण क्रोध आता है, उसके प्रति घृणा की भावना इनके मन में घर कर जाती है।
12. इनमें भाषण देने व बातचीत करने की अच्छी कला होती है। संबंधियों से इन्हें विशेष लाभ नहीं होता है, इनका वैवाहिक जीवन भी सामान्य नहीं होता है।
13. इनके प्रेम संबंध सफल नहीं होते हैं। करीबी लोगों के साथ इनके झगड़े चलते रहते हैं।
14. ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में आस्था रखते हैं, लेकिन ये लोग किसी विशेष मत के नहीं होते हैं। इन्हें बहुत यात्राएं भी करनी पड़ती है तथा विदेश जाने की भी संभावनाएं रहती हैं। जिस काम में हाथ डालते हैं, लगन के साथ पूरा करके ही छोड़ते हैं।
15. इस राशि वाले लोग अपरिचित लोगों में अधिक लोकप्रिय होते हैं। वैसे इन लोगों की मित्रता किसी भी प्रकार के व्यक्ति के साथ हो सकती है।

 तुला- रा, री, रू, रे, रो,ता, ती, तू, ते
राशि स्वरूप- तराजू जैसा,
राशि स्वामी- शुक्र।
1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की प्रतीक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।
2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।
3. ये लोग किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार होते हैं।
4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं और इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।
5. तुला राशि की स्त्रियां आकर्षक होती हैं। इनका स्वभाव खुशमिजाज व मुस्कान बहुत ही सुंदर होती है। बुद्धि वाले काम करने में इनकी अधिक रुचि होती है।
6. घर की साज-सज्जा और खुद को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि घरेलू कामों में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।
7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
8. तुला राशि के लोग दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।
9. इनकी आवाज सभी को अच्छी लगती है। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।
10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। ये अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।
11. अपने व्यवहार में बहुत न्यायवादी व उदार होते हैं। कला और साहित्य से जुड़े रहते हैं। इन्हें गीत, संगीत, यात्रा आदि का शौक रखने वाले व्यक्ति अधिक अच्छे लगते हैं।
12. लड़कियां आत्म विश्वास से भरपूर होती हैं। मनपसंद रंग गहरा नीला व सफेद होते हैं। वैवाहिक जीवन में स्थायित्व पसंद आता है।
13. वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं करती हैं। सामाजिक पार्टियों, उत्सवों में रुचिपूर्वक भाग लेती हैं।
14. इनके बच्चे पढ़ाई या नौकरी आदि कारणों से दूर जा सकते हैं।
15. ये एक कुशल मां साबित होती हैं जो कि अपने बच्चों को उचित शिक्षा व आत्मविश्वास प्रदान करती हैं।

वृश्चिक- तो, ना, नी, नू,ने, नो, या, यी, यू
राशि स्वरूप- बिच्छू जैसा,
राशि स्वामी- मंगल।
1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की प्रतीक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है।
2. कुंडली में मंगल की कमजोर स्थिति से रोग हो सकते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर परेशान रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।
3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक भी होते हैं।
4. इनकी शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।
5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई भी इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं।
6. ये लोग ज्यादातर दूसरों के विचारों का विरोध करते हैं। कभी-कभी ये आदत इनके विरोध का कारण भी बन सकती है।
7. ये अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि के लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।
9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।
10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तब भी इनमें आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का विशेष अंदाज होता है।
11. ये बुद्धिमान और भावुक होती हैं। इनकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ होती है। स्त्रियां जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी होती हैं। थोड़ी स्वार्थी प्रवृत्ति की भी होती हैं।
12. स्वतंत्र निर्णय लेना इनकी आदत में होता है। मायके से अधिक स्नेह रहता है। नौकरीपेशा होने पर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।
13. इन लोगों में काम करने की क्षमता काफी अधिक होती है। वाणी की कटुता होती है, सुख-साधनों की लालसा सदैव बनी ही रहती है।
14. ये व्यक्ति जिद्दी होते हैं, काम के प्रति लगन रखते हैं। ये व्यक्ति उदार व आत्मविश्वासी भी होते है।
15. वृश्चिक राशि के बच्चे परिवार से अधिक स्नेह रखते हैं। कम्प्यूटर-टीवी का बेहद शौक होता है। दिमागी शक्ति तीव्र होती है, खेलों में इनकी रुचि होती है।

धनु- ये, यो, भा, भी, भू, धा,फा, ढा, भे
राशि स्वरूप- धनुष उठाए हुए,
राशि स्वामी- बृहस्पति।
1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की प्रतीक है।
2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।
3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।
4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।
5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।
6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। इसीलिए इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।
7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।
8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।
9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।
10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।
11. ये एक अच्छी श्रोता होती हैं और इन्हें खुले और ईमानदारी पूर्ण व्यवहार के व्यक्ति पसंद आते हैं। इस राशि की स्त्रियां गृहणी बनने की अपेक्षा सफल करियर बनाना चाहती है।
12. इनके जीवन में भौतिक सुखों की महत्ता रहती है। सामान्यत: सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करती हैं।
13. इस राशि के व्यक्ति ज्यादातर अपनी सोच का विस्तार नहीं करते एवं कई बार कन्फयूज रहते हैं। एक निर्णय पर पंहुचने पर इनको समय लगता है एवं यह देरी कई बार नुकसानदायक भी हो जाती है।
14. ज्यादातर यह लोग दूसरों के मामलों में दखल नहीं देते एवं अपने काम से काम रखते हैं।
15. इनका पूरा जीवन लगभग मेहनत करके कमाने में जाता है या यह अपने पुश्तैनी कार्य को ही आगे बढाते हैं।

मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी
राशि स्वरूप- मगर जैसा,
राशि स्वामी- शनि।
1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।
2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।
4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।
5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।
6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।
7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं।
8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।
9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।
11. पारंपरिक मूल्यों पर विश्वास करने वाली होती हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में अपने विचारों को व्यक्त करती हैं।
12. दूसरों के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकती हैं। इनके मित्र बहुत होते हैं और नृत्य की शौकिन होती हैं।
13. इनको मजबूत कद-कठी के व्यक्ति बहुत आकर्षित करते हैं। अविश्वसनीय संबंधों में विश्वास नहीं करती हैं।
14. अगर आप करियर वुमन हैं तो आप कार्य क्षेत्र में अपना अधिकतर समय व्यतीत करती हैं।
15. आप अपने घर या घरेलू कार्यों के विषय में अधिक चिंता नहीं करतीं

 कुंभ- गू, गे, गो, सा, सी, सू,से, सो, दा
राशि स्वरूप- घड़े जैसा, राशि स्वामी- शनि।

1. राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है। कुंभ राशि का चिह्न घड़ा लिए खड़ा हुआ व्यक्ति है। इस राशि का स्वामी भी शनि है। शनि मंद ग्रह है तथा इसका रंग नीला है। इसलिए इस राशि के लोग गंभीरता को पसंद करने वाले होते हैं एवं गंभीरता से ही कार्य करते हैं।

2. कुंभ राशि वाले लोग बुद्धिमान होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल होते हैं। जीवन में स्वतंत्रता के पक्षधर होते हैं। प्रकृति से भी असीम प्रेम करते हैं।

3. शीघ्र ही किसी से भी मित्रता स्थपित कर सकते हैं। आप सामाजिक क्रियाकलापों में रुचि रखने वाले होते हैं। इसमें भी साहित्य, कला, संगीत व दान आपको बेहद पसंद होता हैं।

4. इस राशि के लोगों में साहित्य प्रेम भी उच्च कोटि का होता है।

5. आप केवल बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ बातचीत पसंद करते हैं। कभी भी आप अपने मित्रों से असमानता का व्यवहार नहीं करते हैं।

6. आपका व्यवहार सभी को आपकी ओर आकर्षित कर लेता है।

7. कुंभ राशि के लड़के दुबले होते हैं। आपका व्यवहार स्नेहपूर्ण होता है। इनकी मुस्कान इन्हें आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है।

8. इनकी रुचि स्तरीय खान-पान व पहनावे की ओर रहती है। ये बोलने की अपेक्षा सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। इन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है।

9. अपने व्यवहार में बहुत ईमानदार रहते हैं, इसलिये अनेक लड़कियां आपकी प्रशंसक होती हैं। आपको कलात्मक अभिरुचि व सौम्य व्यक्तित्व वाली लड़कियां आकर्षित करती हैं।

10. अपनी इच्छाओं को दूसरों पर लादना पसंद नहीं करते हैं और अपने घर परिवार से स्नेह रखते हैं।

11. कुंभ राशि की लड़कियां बड़ी-बड़ी आंखों वाली व भूरे बालों वाली होती हैं। यह कम बोलती हैं, इनकी मुस्कान आकर्षक होती है।

12. इनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है, किन्तु आसानी से किसी को अपना नहीं बनाती हैं। ये अति सुंदर और आकर्षक होती हैं।

13. आप किसी कलात्मक रुचि, पेंटिग, काव्य, संगीत, नृत्य या लेखन आदि में अपना समय व्यतीत करती हैं।

14. ये सामान्यत: गंभीर व कम बोलने वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षित होती हैं।

15. इनका जीवन सुखपूर्वक व्यतित होता है, क्योंकि ये ज्यादा इच्छाएं नहीं करती हैं। अपने घर को भी कलात्मक रूप से सजाती हैं।
मीन- दी, दू, थ, झ,ञ, दे, दो, चा, ची

राशि स्वरूप- मछली जैसा, राशि स्वामी- बृहस्पति।

1. मीन राशि का चिह्न मछली होता है। मीन राशि वाले मित्रपूर्ण व्यवहार के कारण अपने कार्यालय व आस पड़ोस में अच्छी तरह से जाने जाते हैं।

2. आप कभी अति मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं। बल्कि आपका व्यवहार बहुत नियंत्रित रहता है। ये आसानी से किसी के विचारों को पढ़ सकते हैं।

3. अपनी ओर से उदारतापूर्ण व संवेदनाशील होते हैं और व्यर्थ का दिखावा व चालाकी को बिल्कुल नापसंद करते हैं।

4. एक बार किसी पर भी भरोसा कर लें तो यह हमेशा के लिए होता है, इसीलिये आप आपने मित्रों से अच्छा भावानात्मक संबंध बना लेते हैं।

5. ये सौंदर्य और रोमांस की दुनिया में रहते हैं। कल्पनाशीलता बहुत प्रखर होती है। अधिकतर व्यक्ति लेखन और पाठन के शौकीन होते हैं। आपको नीला, सफेद और लाल रंग-रूप से आकर्षित करते हैं।

6. आपकी स्तरीय रुचि का प्रभाव आपके घर में देखने को मिलता है। आपका घर आपकी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

7. अपने धन को बहुत देखभाल कर खर्च करते हैं। आपके अभिन्न मित्र मुश्किल से एक या दो ही होते हैं। जिनसे ये अपने दिल की सभी बातें कह सकते हैं। ये विश्वासघात के अलावा कुछ भी बर्दाश्त कर सकते हैं।

8.मीन राशि के लड़के भावुक हृदय व पनीली आंखों वाले होते हैं। अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचते हैं। आप जिंदगी के प्रति काफी लचीला दृटिकोण रखते हैं।

9. अपने कार्य क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिये परिश्रम करते हैं। आपको बुद्धिमान और हंसमुख लोग पसंद हैं।

10. आप बहुत संकोचपूर्वक ही किसी से अपनी बात कह पाते हैं। एक कोमल व भावुक स्वभाव के व्यक्ति हैं। आप पत्नी के रूप में गृहणी को ही पसंद करते हैं।6

11. ये खुद घरेलू कार्यों में दखलंदाजी नहीं करते हैं, न ही आप अपनी व्यावसायिक कार्य में उसका दखल पसंद करते हैं। आपका वैवाहिक जीवन अन्य राशियों की अपेक्षा सर्वाधिक सुखमय रहता है।

12. मीन राशि की लड़कियां भावुक व चमकदार आंखों वाली होती हैं। ये आसानी से किसी से मित्रता नहीं करती हैं, लेकिन एक बार उसकी बातों पर विश्वास हो जाए तो आप अपने दिल की बात भी उससे कह देती हैं।

13. ये स्वभाव से कला प्रेमी होती हैं। एक बुद्धिमान व सभ्य व्यक्ति आपको आकर्षित करता है। आप शांतिपूर्वक उसकी बात सुन सकती हैं और आसानी से अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करती हैं।

14. अपनी मित्रता और वैवाहिक जीवन में सुरक्षा व दृढ़ता रखना पसंद करती हैं। ये अपने पति के प्रति विश्वसनीय होती है और वैसा ही व्यवहार अपने पतिग  सेकि चाहती हैं।

15. आपको ज्योतिष आदि में रुचि हो सकती है। आपको नई-नई चीजें सीखने का शौक होता है।🕉

11 July 2020

Murder or Suicide yogas .

जन्मकुंडली में हत्या एवं आत्महत्या के योग (जातक कब मारा जाता है गोली या शस्त्र से ?)

प्रश्न: किसी कुंडली को देखकर कैसे जानें कि जातक आत्महत्या या हत्या के कारण असामयिक मृत्यु का शिकार होगा। जातक की अल्पायु में रोग, दुर्घटना आदि के कारण मृत्यु के क्या योग होते हैं? जन्म के समय के आकाशीय ग्रह योग मानव के जन्म-मृत्यु का निर्धारण करते हैं।

शरीर के संवेदनशील तंत्र के ऊपर चंद्र का अधिकार होता है। चंद्र अगर शनि, मंगल, राहु-केतु, नेप्च्यून आदि ग्रहों के प्रभाव में हो तो मन व्यग्रता का अनुभव करता है। दूषित ग्रहों के प्रभाव से मन में कृतघ्नता के भाव अंकुरित होते हैं, पाप की प्रवृŸिा पैदा होती है और मनुष्य अपराध, आत्महत्या, हिंसक कर्म आदि की ओर उन्मुख हो जाता है। चंद्र की कलाओं में अस्थिरता के कारण आत्महत्या की घटनाएं अक्सर एकादशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के आस-पास होती हंै। मनुष्य के शरीर में शारीरिक और मानसिक बल कार्य करते हैं। मनोबल की कमी के कारण मनुष्य का विवेक काम करना बंद कर देता है और अवसाद में हार कर वह आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है। आत्महत्या करने वालों में 60 प्रतिशत से अधिक लोग अवसाद या किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होते हैं। ग्रह स्थिति कृत अल्पायु योग: शनि तुला के नवांश में हो और उस पर गुरु की दृष्टि हो, तो बालक 13 वर्ष की आयु तक जीता है। शनि वक्री हो और राहु के साथ 12 वें भाव में हो, तो 13 वर्ष की आयु होती है। बृहस्पति के नवांश में स्थित शनि पर राहु की दृष्टि हो और लग्नेश पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो बालक अल्पायु होता है, पर यदि लग्नेश उच्च का हो तो 19 वर्ष आयु होती है। शनि द्विस्वभाव राशिगत होकर लग्न में हो, द्वादशेश व अष्टमेश केंद्र में हांे और लग्नेश बलहीन हो तो 30 से 32 की वर्ष आयु होती है। लग्नेश व अष्टमेश अष्टमस्थ हांे व उनके साथ पाप ग्रह हो तो जातक की आयु 27 वर्ष की होगी। सूर्य, चंद्र व शनि अष्टम भाव में हो तो 29 वर्ष की आयु होगी। क्रूर ग्रहों से घिरा सूर्य लग्नस्थ हो तो 31 वर्ष की आयु होगी। यदि सूर्य लग्न में पाप ग्रहों से घिरा हो और गुरु मिथुन राशि में अष्टम भाव में हो तो 37 वर्ष की आयु होगी। लग्न द्विस्वभाव राशि में, गुरु केंद्र में और शनि दशम भाव में हो तो 44 वर्ष यदि चर राशि पर लग्नेश और अष्टमेश अथवा लग्न चंद्र व लग्न होरा स्थिर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि लग्नेश और अष्टमेश अथवा लग्नचंद्र या होरा चर व स्थिर राशिगत हो तो मध्यम आयु योग होता है। चर व द्विस्वभाव राशिगत हो तो अल्पायु योग होता है। महर्षि जैमिनी के अनुसार प्रस्तारक चक्र के माध्यम से आयु विचार दीर्घायु मध्यायु अल्पायु लग्न, अष्टमेश चर रशि चर राशि चर राशि लग्न चंद्र, लग्न होरा चर राशि स्थिर राशि द्विस्वभाव लग्नेश, अष्टमेश स्थिर स्थिर राशि स्थिर राशि लग्न चंद्र, लग्न होरा द्विस्वभाव चर स्थिर लग्नेश, अष्टमेश द्विस्वभाव द्विस्वभाव द्विस्वभाव लग्न चंद्र, लग्न होरा द्विस्वभाव द्विस्वभाव चर राशि की आयु होती है। विभिन्न राशियों में लग्नेश के नवांश से मृत्यु का ज्ञान: लग्नेश का नवांश मेष हो तो पिŸादोष, पीलिया, ज्वर, जठराग्नि आदि से संबंधित बीमारी से मृत्यु होती है। लग्नेश का नवांश वृष हो तो एपेंडिसाइटिस, शूल या दमा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश मिथुन नवांश में हो तो मेनिन्जाइटिस, सिर शूल, दमा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश कर्क नवांश में हो तो वात रोग से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश सिंह नवांश में हो तो व्रण, हथियार या अम्ल से अथवा अफीम, मय आदि के सेवन से मृत्यु होती है। कन्या नवांश में लग्नेश के होने से बवासीर, मस्से आदि रोग से मृत्यु होती है। तुला नवांश में लग्नेश के होने से घुटने तथा जोड़ांे के दर्द अथवा किसी जानवर के आक्रमण चतुष्पद (पशु) के कारण मृत्यु होती है। लग्नेश वृश्चिक नवांश में हो तो संग्रहणी, यक्ष्मा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश धनु नवांश में हो तो विष ज्वर, गठिया आदि के कारण मृत्यु हो सकती है। लग्नेश मकर नवांश में हो तो अजीर्ण, अथवा, पेट की किसी अन्य व्याधि से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश कुंभ नवांश में हो तो श्वास संबंधी रोग, क्षय, भीषण ताप, लू आदि से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश मीन नवांश में हो धातु रोग, बवासीर, भगंदर, प्रमेह, गर्भाशय के कैंसर आदि से मृत्यु होती है। अरिष्ट महादशा: जब द्वादशेश में द्वितीयेश की अंतर्दशा आए। अष्टमेश भाव 6, 8 या 12 में हो तो अष्टमेश की दशा-अंतर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह की अंतर्दशा मंे मृत्यु होती है। दशमेश, अष्टमेश, लग्नेश या शनि यदि निर्बल हो, तो उसकी अंतर्दशा अरिष्टकारी होती है। षष्ठेश व अष्टमेश पाप ग्रह हों और शत्रु ग्रह से दृष्ट हों तो उनकी अंतर्दशा में मृत्यु होगी। अश्विनी, मूल और मघा नक्षत्रों में केतु महादशा में मंगल का अंतर अरिष्टकारी होगा। भरणी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों में शुक्र महादशा में बृहस्पति की दशा अरिष्टकारी होती है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों में मंगल व शनि की महादशा अरिष्टकारी होती है। अश्लेषा, रेवती और ज्येष्ठा नक्षत्रों में जन्म महादशा और बुध तथा राहु की दशा अरिष्टकारी होती है। आत्महत्या के कारण मृत्यु योग जन्म कुंडली में निम्न स्थितियां हों तो जातक आत्महत्या की तरफ उन्मुख होता है। लग्न व सप्तम स्थान में नीच ग्रह हो। अष्टमेश पाप ग्रह शनि राहु से पीड़ित हो। अष्टम स्थान के दोनों तरफ अर्थात् सप्तम व नवम् भाव में पापग्रह हों। चंद्र पाप ग्रह से पीड़ित हो, उच्च या नीच राशिस्थ हो अथवा मंगल व केतु की युति में हो। सप्तमेश और सूर्य नीच भाव का हो तथा राहु शनि से दृष्टि संबंध रखता हो। लग्नेश व अष्टमेश का संबंध व्ययेश से हो। मंगल व षष्ठेश की युति हो, तृतीयेश, शनि और मंगल अष्टम में हों। अष्टमेश यदि जल तत्वीय हो तो जातक पानी में डूबकर और यदि अग्नि तत्वीय हो तो जल कर आत्महत्या करता है। कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक पानी में डूबकर आत्महत्या करता है। हत्या या आत्महत्या के कारण होने वाली मृत्यु के अन्य योग: यदि मकर या कुंभ राशिस्थ चंद्र दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक की मृत्यु फांसी, आत्महत्या या अग्नि से होती है। चतुर्थ भाव में सूर्य एवं मंगल तथा दशम भाव में शनि हो तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हों तो जातक की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, बीमारी या दुर्घटना के कारण होती है। यदि अष्टम भाव में बुध और शनि स्थित हों तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि मंगल और सूर्य राशि परिवर्तन योग में हों और अष्टमेश से केंद्र में स्थित हों तो जातक को सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड अर्थात् फांसी मिलती है। शनि लग्न में हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु और क्षीण चंद्र युत हों तो जातक की गोली या छुरे से हत्या होती है। यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, राहु या केतु से युत हो तथा भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेने से होती है। यदि चंद्र से पंचम या नवम राशि पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि या उससे युति हो और अष्टम भाव अर्थात 22वें द्रेष्काण में सर्प, निगड़, पाश या आयुध द्रेष्काण का उदय हो रहा हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करने से मृत्यु को प्राप्त होता है। चैथे और दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करता है। दुर्घटना के कारण मृत्यु योग जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ और दषम भाव में से किसी एक में सूर्य और दूसरे में मंगल हो उसकी मृत्यु पत्थर से चोट लगने के कारण होती है। यदि शनि, चंद्र और मंगल क्रमशः चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में हांे तो जातक की मृत्यु कुएं में गिरने से होती है। सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में हों और पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की उसके घर में बंधुओं के सामने मृत्यु होती है। यदि कोई द्विस्वभाव राशि लग्न में हो और उस में सूर्य तथा चंद्र हों तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है। यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से पंचम और नवम भावों में पाप ग्रह हों और उन दोनों पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो, उसकी मृत्यु बंधन से होती है। जिस जातक के जन्मकाल में किसी पाप ग्रह से युत चंद्र कन्या राशि में स्थित हो, उसकी मृत्यु उसके घर की किसी स्त्री के कारण होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में सूर्य या मंगल और दशम में शनि हो, उसकी मृत्यु चाकू से होती है। कुछ नामी व्यक्तियों के उदाहरण जिनकी हत्या हुई या जिन्होंने या आत्महत्या की- हत्या: राजीव गांधी (पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री) इंदिरा गांधी (पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री) जान. एफ. कैनेडी (भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) आत्महत्या: चंद्र शेखर आजाद (क्रांतिकारी) एडोल्फ हिटलर (तानाशाह) विचार गोष्ठी जिस जातक के जन्मकाल में अष्टम भाव में क्षीण चंद्र, दशम भाव में मंगल, लग्न में शनि और चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित हों, उसकी मृत्यु लाठी के प्रहार आदि से होती है। यदि दशम भाव में क्षीण चंद्र, नवम में मंगल, लग्न में शनि और पंचम में सूर्य हो तो जातक की मृत्यु अग्नि, धुआं, बंधन या काष्ठादि के प्रहार के कारण होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में मंगल, सप्तम में सूर्य और दशम में शनि स्थित हांे उसकी मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो उसकी मृत्यु सवारी से गिरने से या वाहन दुर्घटना में होती है। यदि लग्न से सप्तम भाव में मंगल और लग्न में शनि, सूर्य एवं चंद्र हों उसकी मृत्यु मशीन आदि से होती है। यदि मंगल, शनि और चंद्र क्रम से तुला, मेष और मकर या कुंभ में स्थित हों तो जातक की मृत्यु विष्ठा में गिरने से होती है। मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम में और क्षीण चंद्र में स्थित हो उसकी मृत्यु पक्षी के कारण होती है। यदि लग्न में सूर्य, पंचम में मंगल, अष्टम में शनि और नवम में क्षीण चंद्र हो तो जातक की मृत्यु पर्वत के शिखर या दीवार से गिरने अथवा वज्रपात से होती है। सूर्य, शनि, चंद्र और मंगल लग्न से अष्टमस्थ या त्रिकोणस्थ हों तो वज्र या शूल के कारण अथवा दीवार से टकराकर या मोटर दुर्घटना से जातक की मृत्यु होती है। चंद्र लग्न में, गुरु द्वादश भाव में हो, कोई पाप ग्रह चतुर्थ में और सूर्य अष्टम में निर्बल हो तो जातक की मृत्यु किसी दुर्घटना से होती है। यदि दशम भाव का स्वामी नवांशपति शनि से युत होकर भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु विष भक्षण से होती है। यदि चंद्र या गुरु जल राशि (कर्क, वृश्चिक या मीन) में अष्टम भाव में स्थित हो और साथ में राहु हो तथा उसे पाप ग्रह देखता हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। यदि लग्न में शनि, सप्तम में राहु और क्षीण चंद्र तथा कन्या में शुक्र हो तो जातक की शस्त्राघात से मृत्यु होती है। यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश से सूर्य, मंगल और केतु की युति हो अथवा दोनों पर उक्त तीनों ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु अग्नि दुर्घटना से होती है। यदि शनि और चंद्र भाव 4, 6, 8 या 12 में हांे तथा अष्टमेश अष्टम भाव में दो पाप ग्रहों से घिरा हो तो जातक की मृत्यु नदी या समुद्र में डूबने से होती है। लग्नेश, अष्टमेश और सप्तमेश यदि एक साथ बैठे हों तो जातक की मृत्यु स्त्री के साथ होती है। यदि कर्क या सिंह राशिस्थ चंद सप्तम या अष्टम भाव में हो और राहु से युत हो तो मृत्यु पशु के आक्रमण के कारण होती है। दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो तो वाहन के टकराने से मृत्यु होती है। अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो तथा इन पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है। षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में चंद्र, शनि एवं राहु हों तो जातक की मृत्यु अस्वाभाविक तरीके से होती है। लग्नेश एवं अष्टमेश बलहीन हों तथा मंगल षष्ठेश के साथ हो तो जातक की मृत्यु कष्टदायक होती है। अष्टमस्थ राहु पाप ग्रह से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु सर्पदंश से होती है। चंद्र एवं मंगल अष्टमस्थ हों तो जातक की मृत्यु सर्पदंश से होती है। चंद्र, मंगल एवं शनि अष्टमस्थ हों तो मृत्यु शस्त्र से होती है। षष्ठ भाव में लग्नेश एवं अष्टमेश हों तथा षष्ठेश मंगल से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु शत्रु द्वारा या शस्त्राघात से होती है। लग्नेश और अष्टमेश अष्टम भाव में हों तथा पाप ग्रहों से युत दृष्ट हों तो जातक की मृत्यु प्रायः दुर्घटना के कारण होती है। चतुर्थेश, षष्ठेश एवं अष्टमेश में संबंध हो तो जातक की मृत्यु वाहन दुर्घटना में होती है। अष्टमस्थ केतु 25 वें वर्ष में भयंकर कष्ट अर्थात् मृत्युतुल्य कष्ट देता है। इस स्थिति में भी जातक की अकाल मृत्यु संभव है। अष्टम भाव में चर राशि तथा अष्टमेश चर राशि में हो तो जातक की मृत्यु जन्मस्थान से दूर होती है। क्षीण चंद्र अष्टम भावस्थ हो तो जातक की मृत्यु पानी में डूबने से हो सकती है। अष्टम भाव तथा अष्टमेश, षष्ठ भाव तथा षष्ठेश और मंगल, इन सबका परस्पर संबंध हो तो शत्रु द्वारा मृत्यु होती है। यदि उक्त भावों और भावेशों से एकादशेश का भी संबंध हो तो इस योग में और वृद्धि होती है। यदि क्षीण चंद्र मंगल, शनि या राहु से युत होकर अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक की मृत्यु अग्नि या हथियार से अथवा डूबने से होती है। यदि चंद्र, सूर्य, मंगल एवं शनि भाव 8, 5 या 9 में स्थित हों तो मृत्यु ऊंचाई से गिराने या डूबने से अथवा तूफान या वज्रपात के कारण होती है। यदि चंद्र अष्टम मंे, मंगल नवम में सूर्य लग्न में एवं शनि पंचम में हो तो मृत्यु वज्रपात के कारण या पेड़ से गिरने से होती है। यदि सूर्य अष्टम में, चंद्र लग्न मंे और बृहस्पति द्वादश में हो तो मृत्यु चारपाई से गिरने से होती है। यदि लग्नेश लग्न से 64 वें नवांश में हो या दबा हुआ हो या षष्ठ भाव में हो तो जातक की मृत्यु भोजन की कमी के कारण होती है। यदि सूर्य चतुर्थ भाव में, चंद्र दशम में और शनि अष्टम में हो तो मृत्यु लकड़ी की चोट से होती है। यदि सूर्य, चंद्र और बुध सप्तम भाव में, शनि लग्न में एवं मंगल 12 वें भाव में हो तो जातक की मृत्यु जन्मभूमि से बाहर होती है। यदि सूर्य एवं चंद्र अष्टम या षष्ठ भाव में हों तो मृत्यु खूंखार जानवर द्वारा होती है। यदि चंद्र और बुध षष्ठ या अष्टम भाव में युत हों तो मृत्यु जहर से होती है। यदि अष्टम भाव में चंद्र, मंगल, और शनि हों तो जातक की मृत्यु हथियार से होती है। यदि द्वादश भाव में मंगल और अष्टम भाव में शनि हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार द्वारा होती है। यदि षष्ठ भाव में मंगल हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार से होती है। यदि राहु चतुर्थेश के साथ षष्ठ भाव में हो तो मृत्यु डकैती या चोरी के समय उग्र आवेग के कारण होती है। यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में पापकर्तरी योग में हो तो जातक जलने से या हथियार के प्रहार से मृत्यु को प्राप्त होता है। यदि अष्टम भाव में चंद्र, दशम में मंगल, चतुर्थ में शनि और लग्न में सूर्य हो तो मृत्यु कुंद वस्तु से होती है। यदि सप्तम भाव में मंगल और लग्न में चंद्र तथा शनि हों तो मृत्यु संताप के ।वचार गोष्ठी कारण होती है। यदि लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हों और मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में होती है। यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, शनि से युत हो या भाव 6, 8 या 12 में हो तो मृत्यु जहर खाने से होती है। यदि चंद्र और शनि अष्टम भाव में हांे और मंगल चतुर्थ में हो या सूर्य सप्तम में अथवा चंद और बुध षष्ठ भाव में हांे तो जातक की मृत्यु जहर खाने से होती है। यदि शुक्र मेष राशि में, सूर्य लग्न में और चंद्र सप्तम भाव में अशुभ ग्रह से युत हो तो स्त्री के कारण मृत्यु होती है। यदि लग्न स्थित मीन राशि में सूर्य, चंद्र और अशुभ ग्रह हों तथा, अष्टम भाव में भी अशुभ ग्रह हों तो दुष्ट स्त्री के कारण मृत्यु होती है। विभिन्न दुर्घटना योग: लग्नेश और अष्टमेश दोनों अष्टम में हांे। अष्टमेश पर लाभेश की दृष्टि हो (क्योंकि लाभेश षष्ठ से षष्ठम भाव का स्वामी होता है)। द्वितीयेश, चतुर्थेश और षष्ठेश का परस्पर संबंध हो। मंगल, शनि और राहु भाव 2, 4 अथवा 6 में हों। तृतीयेश क्रूर हो तो परिवार के किसी सदस्य से तथा चतुर्थेश क्रूर हो तो जनता से आघात होता है। अष्टमेश पर मंगल का प्रभाव हो, तो जातक गोली का शिकार होता है।


अगर शनि की दृष्टि अष्टमेश पर हो और लग्नेश भी वहीं हो तो गाड़ी, जीप, मोटर या ट्राॅली से दुर्घटना हो सकती है।

taught by my astrologer friend

09 July 2020

Numerology - Master Numbers


Master Number Meanings :


11 - Inspiration, revelation, selfless service to others.

22 - Absolute Truth, projects to benefit all of mankind.

33 - Compassion, a teacher of teachers, leadership, assume responsibilities with
no thought of rewards or payments.

44 - Changing into the highest expression of one’s divinity, useful enterprises,
self‐discipline, use of intuition

55 - Knowledge through seeing beneficial aspects of daily life, ethical and
spiritual ideals, communication that benefits others in some way.

66 - Divine Order, solving social problems, achieving goals and gathering wealth,
truth, fairness, and integrity.

77 - Transcending the physical world and its limitations, wholeness within self,
understanding others, helping the world achieve a higher expression.

88 - Personal and divine consciousness become one, unlimited abilities and
knowing correct way to use them, sensitivity and compassion.

99 - Accelerated evolution on all levels, flexible consciousness, understanding that
all of one’s life’s actions are for the unfoldment of the divine within.

08 July 2020

Janjira of Shri Hanumanji


Janjira are kind of folk mantras. To remove obstacles from life. 
Here is a Janjira of Shri Hanumanji which can be used while offering oil.

https://shuddhvachan.blogspot.com/2009/10/shri-hanumanji-janjira-01.html



06 July 2020

Face Reading


Face Reading- What your Face Says About Your Future?- AstroTalk.com


Ears :

Small Ear: Those whose ear are smaller than normal size they are very powerful. They are also reliable. Additionally, they are also interested in art. If anyone asks them about any objects they do not refuse him.

Big Ear: If a person’s ears are bigger then he is thoughtful, diligent, practical and punctual. They do not like delays in any kind of work. They believe in systematic work.

Wide Ear: According to palmistry, if a person’s ear is wider than normal then they have all type of amenities. They receive every happiness in their life. They are also opportunistic.

Smaller Ear compared to normal: If a person’s ear are smaller than usual then they are very playful by nature. They believe in god. Sometimes they are too greedy and do not hesitate to cheat with anyone. They know how to do take work from someone.
A person whose ear is pressed they are usually culprit.

Neck :

Big Neck: According to palmistry, the person whose neck is thick normal than usual he cannot be reliable. They are angry. They get arrogance when they get money.

Straight Neck: People whose neck is straight they are proud. They are punctual, committed and follow the principle. They are trustworthy.

Long Neck: They are talkative, retard, unstable, frustrated and fawning. They always appreciate themselves.

Short Neck: They speak less, hardworking, stingy, unreliable and arrogant. Others take advantage of such people but they do not even know about it.

Dry Neck: There is less meat in neck and you can easily see the veins. They are dull, less ambitious, sick, lazy, grumpy and less likely to understand. They are normal people who satisfied with their life.

Camel Neck: The neck is thin and tall. They are generally tolerant and hard working. Some of them are even artful. These people are engaged in furthering their interests and they go to any extent when times come.

Good Neck: Their neck would be transparent which is commonly found in women. They are dear, gentle and indulgence. They live a happy life.

Hair

Two faced Hair: According to palmistry, having a single hair in a pore is good. This hair is good but if many branches come out from the hair then person’s health may disturb. They have two ideologies. They do not take decision and so they do not succeed.

Black Hair: People having black hair are healthy from mind, vigorous, high vitality and trustworthy. They live good life. Those whose hair become white at early age they are mentally weak.

Thin Hair: Their nature is very good. They are generous, loving, kind, shy and sensitive.

In contrast,
Coarse and stiff-haired people have good health and high vitality.

Simple, straight hairs are unassuming and pointed straightforward person.

If the hair is soft then person would be humble, decent, art lovers and true friend.

Black, smooth, soft, attractive and simple hair provides fortune, property and health to the women.

While,
Yellow, red, hoarse, harsh, short and disheveled hair women always leave sad lives.

05 July 2020

Face Reading

Your personality based on nose shape


समुद्र शास्त्र:- नाक से भी जान सकते हैं व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में खास बातें;

  सामुद्रिक शास्त्र ज्योतिष से संबंधित प्रमुख ग्रंथ है। इस ग्रंथ से शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में जाना जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र में नाक से किसी व्यक्ति के स्वभाव का पता करने के तरीके बताए गए हैं। इससे हम यह जान सकते हैं कि कौन व्यक्ति खुश मिजाज है, कौन गंभीर स्वभाव का है और कौन व्यक्ति जल्दी सफलता प्राप्त करते हैं-
जैसे:-
१:-सीधी नाक:- सीधी नाक वाले व्यक्ति सीधे-साधे होते हैं। ऐसे लोग जल्दी किसी से अपने दिल की बात नहीं कहते हैं। मुश्किल समय में भी ये लोग शान्ति से काम लेते हैं। ऐसे लोगों के अंदर क्या चल रहा है यह जानना काफी मुश्किल होता है।

२:-चपटी नाक वाले लोग:- चपटी नाक वाले लोग कम उम्र में ही सक्सेस हासिल कर लेते हैं। कला और खेल के क्षेत्र में ऐसे लोगों की काफी रुची होती है। ऐसे लोग ईमानदार होते हैं। ऐसे लोग परिवार का नाम रौशन करते हैं।
३:-तोते जैसी नाक:- तोते जैसी या तीखी नाक वाले लोग स्वभाव से तेज होते हैं। ऐसे लोग दिल के साफ होते हैं और सक्सेस के लिए काफी मेहनत करते हैं। ऐसे लोग समाज की ज्यादा चिंता नहीं करते, उनका जो मन होता है वही करते हैं।

४:-उठी हुई नाक:- उठी हुई नाक वाले ज्यादातर लोग फूर्तीले और जोशीले होते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति पर जल्दी भरोसा नहीं करते हैं। ये लोग दिल के बहुत साफ होते हैं।

५:-छोटी नाक:- छोटी नाक वाले लोग अपनी लाइफमें मस्त रहते हैं। अगर इनको कोई परेशान न करे तो ये हमेशा खुश रहते हैं। लेकिन इनको कोई ज्यादा परेशान करता है तो ये किसी भी सीमा तक चले जाते हैं।

६:-मोटी नाक:- मोटी नाक वाले लोग शब्दों के जाल बिछाने में काफी माहिर होते हैं। ये लोग समाज में काफी सम्मान प्राप्त करते हैं।

Vastu Purush

Vastu Shastras

 वास्तु पुरुष की कथा


वास्तु पुरुष की कल्पना भूखंड में एक ऐसे औंधे मुंह पड़े पुरुष के रूप में की जाती है जिसमें उनका मुंह ईशान कोण व पैर नैऋत्य कोण की ओर होते हैं। उनकी भुजाएं व कंधे वायव्य कोण व अग्निकोण की ओर मुड़ी हुई रहती हैं।

मत्स्य पुराण के अनुसार वास्तु पुरुष की एक कथा है। देवताओं और असुरों का युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में असुरों की ओर से अंधकासुर और देवताओं की ओर से भगवान शिव युद्ध कर रहे थे। युद्ध में दोनों के पसीने की कुछ बूंदें जब भूमि पर गिरीं तो एक अत्यंत बलशाली और विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई। उस विराट पुरुष ने पूरी धरती को ढंक लिया।
उस विराट पुरुष से देवता और असुर दोनों ही भयभीत हो गए। देवताओं को लगा कि यह असुरों की ओर से कोई पुरुष है जबकि असुरों को लगा कि यह देवताओं की तरफ से कोई नया देवता प्रकट हो गया है। इस विस्मय के कारण युद्ध थम गया और उसके बारे में जानने के लिए देवता और असुर दोनों उस विराट पुरुष को पकड़कर ब्रह्मा जी के पास ले गए।

उसे उन लोगों ने इसलिए पकड़ा कि उसे खुद ज्ञान नहीं था कि वह कौन है, क्योंकि वह अचानक उत्पन्न हुआ था। उस विराट पुरुष ने उनके पकड़ने का विरोध भी नहीं किया। फिर ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव के सामने पहुंचने पर उन लोगों नें ब्रह्मदेव से उस विराट पुरुष के बारे में बताने का आग्रह किया।
ब्रह्मा जी ने उस वृहदाकार पुरुष के बारे में कहा कि भगवान शिव और अंधकासुर के युद्ध के दौरान उनके शरीर से गिरे पसीने की बूंदों से इस विराट पुरुष का जन्म हुआ है इसलिए आप लोग इसे धरतीपुत्र भी कह सकते हैं।

ब्रह्मदेव ने उस विराट पुरुष को संबोधित कर उसे अपना मानस पुत्र होने की संज्ञा दी और उसका नामकरण करते हुए कहा कि आज से तुम्हें संसार में 'वास्तु पुरुष' के नाम से जाना जाएगा और तुम्हें संसार के कल्याण के लिए धरती में समाहित होना पड़ेगा अर्थात धरती के अंदर वास करना होगा।
ब्रह्मदेव ने कहा कि मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि जो भी कोई व्यक्ति धरती के किसी भी भू-भाग पर कोई भी मकान, तालाब या मंदिर आदि का निर्माण कार्य करते समय वास्तु पुरुष को ध्यान में रखकर करेगा तो उसको सफलता और हर कार्य में सिद्धि मिलेगी और जो कोई बिना तुम्हारा पूजन करे निर्माण कार्य करेगा, तो उसे तकलीफें और जीवन में अड़चनों का सामना करना पड़ेगा।

ऐसा सुनकर वह वास्तु पुरुष धरती पर आया और ब्रह्मदेव के निर्देशानुसार एक विशेष मुद्रा में धरती पर बैठ गया जिससे उसकी पीठ नैऋत्य कोण व मुख ईशान कोण में था। इसके उपरांत वह अपने दोनों हाथों को जोड़कर पिता ब्रह्मदेव व धरती माता को नमस्कार करते हुए औंधे मुंह धरती में समाने लगा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख होकर स्थित हैं। उनका सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा तथा उनकी भुजाएं पूर्व एवं उत्तर दिशा और टांगें दक्षिण एवं पश्चिम दिशा की ओर हैं।

पौराणिक शास्त्र बताते हैं कि वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होना निश्चित रहता है।

वास्तु पुरुष को हर मकान का संरक्षक माना गया है यानी वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। यही वजह है कि हर मकान अथवा हर निर्माण के आधार में वास्तु पुरुष का वास माना गया है।

चूंकि वास्तु पुरुष की उत्पत्ति शिव जी के पसीने से हुई है। इसीलिए वास्तु पुरुष के साथ-साथ, शिव जी, प्रथम पूज्य श्री गणेश तथा ब्रह्मा जी की पूजा करना भी लाभदायी है। वेदों के अनुसार किसी भी निर्माण कार्य के अवसर पर वास्तु पुरुष का पूजन नहीं होता है तो वह निर्माण शुभ फलदायी नहीं होगा।

02 July 2020

Divorce Yogas according to astrology.



Is Everyone You Know Secretly Planning Their Divorce?



जन्म-कुंडली में तलाक के योग-

जन्म कुंडली में लग्न से सप्तम भाव पीड़ित हो,सप्तमेश पीड़ित हो तो तलाक हो सकता है,तलाक करवाने के लिए सूर्य,शनि,मंगल,राहु जिम्मेदार ग्रह हैं |

षष्ठेश एक अलगाववादी ग्रह हो और वह दूसरे, चतुर्थ, सप्तम व बारहवें भाव में स्थित हो तब भी अलगाव होने की संभावना बनती है |

जन्म-कुंडली में सप्तमेश और शुक्र(स्त्री की कुंडली में गुरु) का अस्त होना भी विवाहिक जीवन में समस्या को अंकित करता है | जन्म कुंडली में शुक्र आर्द्रा, मूल, कृत्तिका या ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित हो तब भी दांपत्य जीवन में अलगाव के योग बनते हैं |

बारहवें भाव के स्वामी की चतुर्थ भाव के स्वामी से युति हो रही हो और चतुर्थेश कुंडली के छठे,आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब पति-पत्नी का अलगाव हो जाता है।

अलगाव देने वाले ग्रह शनि, सूर्य तथा राहु का सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र पर प्रभाव पड़ रहा हो या सातवें व आठवें भावों पर एक साथ प्रभाव पड़ रहा हो |

जन्म कुंडली में सप्तमेश की युति द्वादशेश के साथ सातवें भाव या बारहवें भाव में हो रही हो |

सप्तमेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो और इनमें से किसी की भी राहु के साथ हो रही हो |

सप्तमेश व द्वादशेश जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु/केतु के साथ स्थित हों |

जन्म कुंडली में शनि या शुक्र के साथ राहु लग्न में हो या जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, शनि व द्वादशेश सप्तमेश या चतुर्थ भाव में स्थित हो |

कुंडली के लग्न या सातवें भाव में राहु व शनि स्थित हो और चतुर्थ भाव अत्यधिक पीड़ित हो तब भी अलग होने के योग बनते हैं.

शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पापी ग्रह स्थित हों और कुंडली का चतुर्थ भाव पीड़ित अवस्था में हो तो भी विवाहिक जीवन में कष्ट आते हैं |

यदि कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो या छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तब यह अदालती तलाक दर्शाता है अर्थात पति-पत्नी का तलाक कोर्ट केस के माध्यम से होगा |

यदि जन्म कुंडली में षष्ठेश वक्री अवस्था में स्थित है अथवा यदि जन्म कुंडली में अष्टमेश की छठे भाव पर दृष्टि हो या किसी वक्री ग्रह की (विशेषकर शुक्र की) आठवें भाव पर दृष्टि हो, तब भी कोर्ट केस बहुत लंबे समय चलते हैं |

01 July 2020

Know about your disturbed Chakra and process to Balace these 6 Charkras in Hindi.

जानिए आपके शरीर का कौन सा चक्र बिगडा हुआ है एवं उस को ठीक कैसे करें ?

(1) मूलाधार चक्र Sky Element Lam Beej  Sound . Listening & Speaking Ears Linguistics लं ङं ञं णं नं मं क्षं अं अः ऌं ॡं
 - गुदा और लिंग के बीच  11 पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। इसके बिगड़ने से वीरता, धन ,समृधि ,आत्मबल ,शारीरिक बल ,रोजगार, कर्मशीलता, घाटा, असफलता  रक्त  एवं हड्डी के रोग, कमर व पीठ में दर्द, आत्महत्या के  बिचार ,डिप्रेशन  ,केंसर अदि होता है।

(2) विशुद्धख्य चक्र - Air Element , Ham beej , Throat , Language , Exression , Touch & feel  हं कं चं टं पं तं शं अं आं
कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह 9  पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है, इसके बिगड़ने पर वाणी दोष, अभिब्यक्ति में कमी ,गले ,नाक,कान,दात, थाई रायेड, आत्मजागरण में  बाधा आती है।

(3) अनाहत चक्र Fire Element Yam Beej , Blood , Heart , Pancreas , Liver
यं खं छं ठं थं फं  षं इं ईं एं ऐं
- हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह 11 पंखरियों वाला है । इसके बिगड़ने पर लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता,नफरत ,प्रेम में असफलता ,प्यार में धोखा ,अकेलापन ,अपमान, मोह, दम्भ, अपनेपन में कमी ,मन में उदासी , जीवन में बिरानगी ,सबकुछ होते हुए भी बेचनी, छाती में दर्द ,साँस लेने में दिक्कत ,सुख का अभाव, ह्रदय  व फेफड़े के रोग, केलोस्ट्राल में बढ़ोतरी अदि ।

(4) स्वाधिष्ठान चक्र Water Element Ram Beej , Emotions , Taste , tongue , 
रं ळं घं झं ढं धं भं ऋं ॠं
 - इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी 9  पंखुरियाँ हैं । इसके बिगड़ने पर क्रूरता,गर्व,आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, नपुंसकता ,बाँझपन ,मंद्बुधिता ,मूत्राशय  और गर्भाशय  के रोग ,अध्यात्मिक  सिद्धी में बाधा   बैभव के आनंद में कमी  अदि होता है।

(5) मणिपूर चक्र Earth Element  Vam Beej ,Praan ( Sharir Sanchalan ki Visheshta)  , Nabhi , Smell , Nose 
वं  सं गं जं डं दं बं  उं ऊं ओं औं
- नाभि में 11 दल वाला मणिचूर चक्र है । इसके इसके बिगड़ने पर तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, अधूरी सफलता ,गुस्सा ,चिंडचिडापन, नशाखोरी, तनाव ,शंकलुप्रबिती,कई तरह की बिमारिया ,दवावो का  काम न करना ,अज्ञात भय ,चहरे का तेज गायब ,धोखाधड़ी, डिप्रेशन,उग्रता ,हिंशा,दुश्मनी ,अपयश ,अपमान ,आलोचना ,बदले की भावना,एसिडिटी, ब्लडप्रेशर,शुगर,थाईरायेड, सिरएवं शारीर के दर्द,किडनी ,लीवर ,केलोस्ट्राल,खून का रोग आदि  इसके बिगड़ने का मतलब  जिंदगी  का  बिगड़ जाना । 


(6) आज्ञाचक्र - Direction ( + - षं षः)
 भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इसके बिगड़ने पर एकाग्रता ,जीने की चाह,निर्णय की सक्ति, मानसिक सक्ति, सफलता की राह आदि इसके बिगड़ने  मतलब  सबकुछ  बिगड़ जाने का  खतरा।

Introduction of Seven Chakras in Hindi.


1. मूलाधार चक्र :

यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच
चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9%
लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे
इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग,
संभोग और निद्रा की प्रधानता है
उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : लं
चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक
कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए
भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर
लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होने
लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम
और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर
वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत
हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता,
निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।


2. स्वाधिष्ठान चक्र :

यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है
जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र
पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद,
मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने
की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए
ही आपका जीवन कब व्यतीत
हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ
फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : वं
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, 

लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन
भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है।
फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप
जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने
का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य,
प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है
कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो 

तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

3. मणिपुर चक्र :

नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के
अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस
कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है 

उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं।
 ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : रं
कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम
देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली,
लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो
जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है।
सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना
जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव
करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन
का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।


4. अनाहत चक्र :

हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल
की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से
सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर
आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक
सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने
की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार,
इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
मंत्र : यं
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से
यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर
रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह
अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना
इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा,
कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार
समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से
व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण
होता है।
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत:
ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त,
सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक
रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं।
ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ
के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।


5. विशुद्ध चक्र :

कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और
जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर
यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है
तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : हं
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से
यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और
सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके
जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है
वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।


6. आज्ञाचक्र :

भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में
आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां
ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से
संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है,
लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। 

इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
मंत्र : ऊं
कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए
साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास
करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी
शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन
जाता है।


7. सहस्रार चक्र :

सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है,
अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम
का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह
आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को
संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब
नहीं रहता है।


कैसे जाग्रत करें :
मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। 

लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत
हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर
लेता है।
प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण
विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष
का द्वार है।

The Seven Chakras...



Chakras are centres of spiritual energy. They are located in the astral body, but they have corresponding centres in the physical body also. They can hardly be seen by the naked eyes. Only a clairvoyant can see with his astral eyes. Tentatively they correspond to certain plexuses in the physical body. 


    There are six important Chakras. 

They are:
1. Muladhara (containing 4 petals) at the anus;
2. Svadhisthana (6 petals) at the genital organ;
3. Manipura (10 petals) at the navel;
4. Anahata (12 petals) at the heart;
5. Visuddha (16 petals) at the throat and
6. Ajna (2 petals) at the space between the two eyebrows.


 The seventh Chakra is known as Sahasrara, which contains a thousand petals. It is located at the top of the head.

 Sacral plexus tentatively corresponds to Muladhara Chakra;
Prostatic plexus to Svadhishthana, Solar plexus to Manipura,

 Cardiac plexus to Anahata Chakra,
 Laryngal plexus to Visuddha Chakra and
 Cavernous plexus to Ajna Chakra