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30 September 2025

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं?

 


एक दिन पाठ के बीच में एक शिष्य ने अपने गुरु से प्रश्न किया –

👉 “यदि भगवान भोग खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती?
और यदि नहीं खाते, तो फिर भोग लगाने का क्या लाभ?”

गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया और पहले की तरह पाठ पढ़ाते रहे।

उस दिन पाठ के अंत में उन्होंने यह श्लोक पढ़ाया –

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

📖 फिर गुरु ने सभी शिष्यों से कहा कि इसे याद कर लो।
एक घंटे बाद उन्होंने उसी शिष्य से पूछा – “क्या श्लोक याद हुआ?”

शिष्य ने पूरा श्लोक सुना दिया।
फिर भी गुरु ने सिर हिलाकर कहा – “नहीं।”

शिष्य ने कहा – “गुरुजी, आप चाहें तो पुस्तक देख लें, मैंने बिल्कुल सही सुनाया है।”

गुरु मुस्कुराए और बोले –
“यह श्लोक तो पुस्तक में ही लिखा है, तो फिर तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया?

➡️ पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है।
➡️ जब तुमने उसे पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे मन और मस्तिष्क में प्रवेश कर गया।
➡️ अब वह तुम्हारे भीतर भी है, और पुस्तक में भी वैसा ही है।

ठीक उसी प्रकार –
भगवान भी भोग को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं।
भोग का स्थूल रूप जस का तस रहता है, जिसे हम बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

यही कारण है कि प्रसाद को दिव्य और पवित्र माना जाता है।

🙏 जय श्रीराम 🙏

29 September 2025

🌺 दुर्गा अष्टमी का महत्व 🌺

 


नवरात्रि के आठवें दिन को दुर्गा अष्टमी कहते हैं। यह दिन माँ दुर्गा की आराधना का अत्यंत पवित्र और शक्तिप्रद दिन है। इस दिन की पूजा और व्रत से साधक को आध्यात्मिक बल, सुख-समृद्धि और पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।


1. माँ महागौरी की पूजा

इस दिन माँ दुर्गा के अष्टम स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है।

  • वे शांति, करुणा और सौम्यता की देवी हैं।

  • पूजा से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं, पाप नष्ट होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।


2. शक्ति साधना का चरम दिन

नवरात्रि के आठवें दिन साधक का मन पूरी तरह माँ की भक्ति और साधना में तल्लीन हो जाता है।

  • यह दिन साधना, भक्ति और शक्ति की प्राप्ति के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।


3. कन्या पूजन का विशेष महत्व

अष्टमी के दिन कन्या पूजन (कुमारी पूजन) का विशेष स्थान है।

  • नौ कन्याओं को नौ रूपों की शक्ति मानकर पूजा जाता है।

  • मान्यता है कि कन्या पूजन करने से भक्त को नौ देवियों का आशीर्वाद मिलता है।


4. असुरों पर विजय का प्रतीक

पौराणिक मान्यता के अनुसार, अष्टमी के दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी।

  • यह दिन सत्य की असत्य पर, और धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है।


5. पुण्य फल की प्राप्ति

इस दिन व्रत, पूजा, हवन और दान करने से अनेक गुना पुण्य मिलता है।

  • यह पुण्य जीवन में शांति, समृद्धि और उन्नति लाता है।


6. नकारात्मक ऊर्जा का नाश

दुर्गा अष्टमी का दिन घर और जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर करने का श्रेष्ठ समय है।

  • साधना और पूजा से मन में नई सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास जागृत होता है।


✨ इस प्रकार, दुर्गा अष्टमी केवल पूजा का दिन ही नहीं, बल्कि जीवन में शक्ति, शांति और समृद्धि लाने का पर्व है।

🌺 देवी माँ के 9 वाहनों का आध्यात्मिक अर्थ 🌺

 


1️⃣ सिंह – शक्ति और साहस का प्रतीक।
माँ दुर्गा का वाहन सिंह है। यह बल, निडरता और शत्रुओं पर विजय का प्रतीक है। दुर्गा के उपासक दृढ़ और अडिग रहते हैं।

2️⃣ हंस – ज्ञान और विवेक का प्रतीक।
माँ सरस्वती का वाहन हंस है। यह मोती चुनने जैसी क्षमता यानी सार और असार को अलग करने की बुद्धि प्रदान करता है। इस गुण को अपनाकर आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

3️⃣ व्याघ्र (बाघ) – स्फूर्ति और निरंतर कर्म का प्रतीक।
देवी अपने कुछ रूपों में बाघ की सवारी करती हैं। यह अनवरत कर्मशीलता और ऊर्जा का द्योतक है।

4️⃣ वृषभ (बैल) – संयम और ब्रह्मचर्य का प्रतीक।
यह बल और सकारात्मक ऊर्जा देता है। माँ शैलपुत्री का वाहन भी वृषभ है, और भगवान शिव नंदी (बैल) पर ही विराजमान होते हैं।

5️⃣ गरुड़ – त्याग और वैराग्य का प्रतीक।
जब माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ विचरण करती हैं, तो गरुड़ पर विराजमान होती हैं। गरुड़ पक्षियों के राजा और अध्यात्मिक ऊँचाई के प्रतीक हैं।

6️⃣ मयूर (मोर) – सौंदर्य और योगशक्ति का प्रतीक।
भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है। यह लावण्य, स्नेह, और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। देवी के कुछ रूप भी मयूर पर आरूढ़ होते हैं।

7️⃣ उल्लू – अंधता और लोभ का प्रतीक।
माँ लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। यह संकेत करता है कि जो केवल धन के पीछे भागता है, वह आत्मज्ञान रूपी सूर्य को नहीं देख पाता। यह हमें सावधान करता है कि लक्ष्मी का सही उपयोग विवेक से ही करना चाहिए।

8️⃣ गर्दभ (गधा) – तमोगुण का प्रतीक।
माँ कालरात्रि का वाहन गधा है। यह विनाशकारी शक्तियों और तमोगुण को नियंत्रित करने का द्योतक है। माँ शीतला का वाहन भी गधा है।

9️⃣ हाथी – समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक।
देवी के अनेक रूप हाथी पर विराजमान होते हैं। तंत्रशास्त्र में देवी का एक नाम गजलक्ष्मी भी है। यह ऐश्वर्य, शक्ति और वैभव का प्रतीक है।


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इन वाहनों के प्रतीकात्मक अर्थ हमें बताते हैं कि जीवन में साहस, ज्ञान, संयम, त्याग, सौंदर्य, विवेक और समृद्धि—सभी गुण संतुलित रूप से आवश्यक हैं।

🕉️ निरृति मंत्र एवं साधना

 

निरृति देवी

हिंदू परंपरा में निरृति मृत्यु, विपत्ति और विनाश की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं। वे दक्षिण-पश्चिम दिशा की दिक्पाल भी मानी जाती हैं।
हालाँकि उनका स्वरूप भयावह माना गया है, लेकिन वे केवल विनाश की नहीं बल्कि नकारात्मक शक्तियों के नियंत्रण और आध्यात्मिक शुद्धि की देवी भी हैं।
उनकी उपासना से जीवन में आने वाली अनिष्ट घटनाएँ टलती हैं और साधक में आंतरिक शक्ति, स्थिरता और शांति आती है।

मुख्य मंत्र

ॐ निरिति-ये नमः

संक्षिप्त अर्थ

  • – सृष्टि का आदिम बीज, ब्रह्म का प्रतीक।

  • निरिति-ये – निरृति देवी को समर्पण, जो मृत्यु, विपत्ति और विनाशकारी शक्तियों पर नियंत्रण रखती हैं।

  • नमः – नमन, समर्पण और श्रद्धा।


आध्यात्मिक फल

इस मंत्र के जप से:

  • अप्रत्याशित हानि, रोग, दुर्घटना और शत्रु बाधाएँ कम होती हैं।

  • व्यक्ति को भय और असुरक्षा से रक्षा मिलती है।

  • पुराने या नकारात्मक चक्रों को छोड़कर नए मार्ग पर आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

  • इच्छाओं की पूर्ति, शांति और ध्यान में स्थिरता मिलती है।


साधना-विधि

  1. स्थान चयन – शांत और पवित्र स्थान चुनें। ध्यान कक्ष या घर का दक्षिण-पश्चिम कोना श्रेष्ठ रहेगा।

  2. आसन – सुखासन या पद्मासन में बैठें। रीढ़ सीधी रखें।

  3. एकाग्रता – नेत्र बंद कर ॐ की आकृति का ध्यान करें।

  4. मंत्र जप

    • “ॐ निरिति-ये नमः” का 108 बार जप करें।

    • रुद्राक्ष या चंद्रमणी माला का उपयोग कर सकते हैं।

  5. समय – सूर्योदय और सूर्यास्त का समय विशेष शुभ है।

  6. आसन एवं दीपक – पीले या लाल आसन पर बैठें और सामने दीपक जलाएँ।

  7. भावना – पूर्ण श्रद्धा और नमन के साथ जप करें।

  8. समापन – अंत में देवी निरृति को प्रणाम कर कृतज्ञता व्यक्त करें।


निरृति गायत्री मंत्र

ॐ निरृत्यै च विद्महे
मृत्युरूपिण्यै धीमहि
तन्नो निरृति प्रचोदयात्॥

अर्थ

  • हम निरृति देवी का ध्यान करें, जो मृत्यु और विपत्ति का स्वरूप हैं।

  • वे हमें सत्कर्म और आध्यात्मिक मार्ग पर प्रेरित करें।

👉 यह गायत्री मंत्र विशेष रूप से आध्यात्मिक उन्नति, शांति और इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रभावी माना गया है।

✨ इस प्रकार “ॐ निरिति-ये नमः” मंत्र और निरृति गायत्री मंत्र दोनों का जप साधक के जीवन से भय, बाधाएँ और नकारात्मक शक्तियाँ हटाकर उसे आंतरिक स्थिरता, शक्ति और शांति प्रदान करते हैं।

- 🌟🙏🏻 अनक्सत्व अकादमी 🙏🏻🌟

टैरो एंजल किम और न्यूमेरो मास्टर ललित शर्मा

नवरात्रि का वास्तविक महत्व

 

नवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है।
यह घर या कार्यालय में सकारात्मक ऊर्जा, शक्ति और समृद्धि लाने का अवसर है, जिससे जीवन में संतुलन और सफलता आती है।
इस पावन समय में देवी शक्ति की सक्रियता बढ़ जाती है, और सात्विक साधना, मंत्र-जाप तथा घर की शुद्धता से धन, करियर और जीवन में उन्नति प्राप्त की जा सकती है।






✨ सकारात्मक ऊर्जा, शक्ति और समृद्धि स्थापित करने के उपाय:

🔹 साफ-सफाई और सजावट
घर के मंदिर को स्वच्छ करें और ताज़े फूल, दीपक व धूप से सजाएँ।
मुख्य द्वार पर स्वास्तिक, ऊँ और शुभ-लाभ के चिह्न बनाएँ।
आम के पत्तों की तोरण लगाना नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

🔹 नकारात्मक ऊर्जा दूर करना
मुख्य द्वार पर हल्दी या केसर का टीका लगाएँ।
अखंड दीपक जलाएँ और शंख बजाएँ, इससे वातावरण शुद्ध होता है और ऊर्जा प्रवाह बढ़ता है।

🔹 वास्तु का पालन
देवी की चौकी उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) दिशा में स्थापित करें।
यह मानसिक स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुभ है।

🔹 आध्यात्मिक साधना
नवरात्रि में उपवास, मंत्र-जाप और देवी के नौ स्वरूपों की आराधना करने से शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।

🔹 सद्भाव और शुद्धता
घर में तुलसी का पौधा लाएँ।
यह शुद्धता, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

🌸 संक्षेप में:
नवरात्रि, पूजा और देवी आराधना के साथ-साथ घर और वातावरण को शुद्ध व सकारात्मक बनाने का भी पर्व है।
यह हमें शक्ति, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

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