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25 September 2022

तृतीय भाव का महत्व - Astrology

 तृतीय भाव का महत्व
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तृतीय भाव हमारे पराक्रम,छोटे भाई बहन, छोटी यात्रा,स्थान परिवर्तन, अपने अधीनस्थ कर्मचारी,नौकर चाकर, पड़ोस, कंधा और बाहु आदि का भाव होता है और सबसे महत्वपूर्ण हमारे अवचेतन मन का भी भाव होता है। हमारे मन में क्या चल रहा और हम पूरे दिन क्या सोचते है यह तीसरा भाव ही बतलाता है। कालपुरुष कुंडली में तीसरे भाव के स्वामी बुध है जोकि कम्युनिकेशन के कारक भी है। यदि यह भाव पीड़ित है तो इन सब बतलाई गई चीज़ों में कुछ समस्या रहेगी। वैसे इन भावो में पापग्रहो को अच्छा और सौम्य ग्रहों को अच्छा नही मानते क्युकी पराक्रम के लिए मंगल,सूर्य,राहु और शनि जैसे ग्रहों की जरूरत होती है न की गुरु और शुक्र जैसे ग्रहों की तभी गुरु और शुक्र जैसे ग्रह इन भावो में कमजोर हो जाते है।
आपका अवचेतन मन भी प्रभावित होता है। अब इसके लिए सबसे अच्छा उपाय यह है की आप अपने अवचेतन में उन घटनाओं को बिल्कुल बाहर कर दे जिसका रिजल्ट जीरो है। उन घटनाओं पर बहस करना बंद कर दे ,अच्छे विचारों के लिए अच्छी किताबो को पढ़ना शुरू करे और तीसरे भाव का सप्तम अर्थात सप्तम का भोग नवम भाव होता है तो धार्मिक क्रियाओं, धार्मिक पुस्तकों में मन लगाए और नए अच्छे विचारों को अपने अवचेतन मन में आने दे। इससे तीसरे भाव के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

चंद्र - Astrology

 चंद्र =माता, पानी,ममता, वात्सल्य, दूध, चावल इसके विपरीत चंद्र कर्ज यानी कर्जात्मक, खर्च यानी खर्चात्मक ग्रह है कोसी भाई चीज़ के लॉस चंद्र ही तो है क्यों की चंद्र पूर्ण होकर भी घट जाता है यानि चंद्र के परिणाम कभी स्थिर नही रह पाते क्यूं की वह घटता बढ़ता रहता है
इसी चंद्र के एक कारक को लेकर कृष्ण सुदामा की कथा का वह प्रसंग याद आता है जब रुक्मणि भगवान को बोलती है की आपका दोस्त आपकी ही भक्ति करता है आप त्रिलोकी नाथ होकर भी उसकी आर्थिक और दयनीय हालत को क्यों अच्छा नही कर रहे
तभी भगवान बोलते है वह मुझसे मेरी भक्ति के अलावा कभी कुछ मांगता ही नही है उसे केवल मेरी भक्ति ही चाहिए
दूसरा प्रसंग =उधर सुदामा की पत्नी अपने पति को कहती है की तुम्हारा दोस्त तीनों लोको का स्वामी है उनके पास क्यों नही जाते तब जाते  हुए सुदामा को भेजते हुए उनकी पत्नी ने चावल की एक पोटली सुदामा के वस्त्रों के साथ बांध दी
और सुदामा के वहां पहुंचने पर भी सुदामा , कृष्ण जी से कुछ भी कह नही पाते और ना ही अपने और अपने परिवार के लिए कुछ मांग पाते है
तब वहां भगवान ने उन्हे देने का क्या तरीका खोजा वह इस प्रकार है
भगवान ने पूछा क्या भाभी ने मेरे लिए कुछ नही भेजा अब सुदामा कैसे कहे। वह कुछ नही बोल पाते और उस चावल की पोटली को छुपाने की कोशिश करते है
लेकिन भगवान उनसे वह पोटली छीन लेते है और चावल की एक मुट्ठी खा लेते है फिर चावल की दूसरी मुट्ठी खाते है तीसरी मुट्ठी में रुक्मणि उन्हे रोक लेती है की प्रभु दो मुठ्ठी में आपने सुदामा को दो लोक दे दिए और तीसरी मुट्ठी में तीसरा लोक दे दोगे तो आप और हम कहां रहेंगे तब भगवान बोले ऐसे दोस्त और भक्त के लिए मैं तीनों लोक इसे दे सकता हूं
इतना लंबी कथा में जो रहस्य मेरी तुच्छ बुद्धि में सामने आता है वह इस प्रकार है
कृष्ण जी ने चावल खाए ,चावल चंद्र का कारक है
वही चावल चंद्र के कारक होने के नाते कर्ज के कारक भी हुए यानी भगवान ने वह चावल खाकर सुदामा का कर्ज अपने ऊपर ले लिया उसके लॉस आदि को अपना बना लिया
चंद्र के कारक दूध और माता, ममता वात्सल्य , निस्वार्थ प्रेम है  यानी भगवान ने सुदामा को यह सब वात्सल्य निस्वार्थ प्रेम के वशीभूत होकर प्रदान किया
यह कथा केवल चंद्र ग्रह के कारकों को समझने के लिए रखी गई है
श्री कृष्ण चंद्र वंशी होने के कारण निस्वार्थ प्रेम के लिए भी जाने जाते है चंद्र वंशी होना भी चंद्र से ही संबंधित है क्यों कि वह बचपन से ही दूध,दही,मक्खन,  प्रेम के इर्द गिर्द ही रहे। यहां सब जगह चंद्र का ही प्रभाव नजर आता है