कोई भी चीज हमारे विपरीत हो तो हमे आकर्षित करती है। ओर दोनो विपरीत भाव एक दूसरे के पूरक भी है।
लग्न हम है तो सप्तम हमारा विपरीत यानी opposite spouse हमे आकर्षित करेगा।
लग्न हम है तो सप्तम हमारा प्रतिद्वंदी, हमे आकर्षित करेगा।
लग्न हम है तो सप्तम ग्राहक। ग्राहक को देखते ही हमारी बाहें खिल उठती है।
द्वितीय भाव धन है तो अष्टम भाव अकस्मात धन।
द्वितीय विद्या है तो अष्टम गुप्त विद्या।
द्वितीय भोजन है तो अष्टम भोजन के निकलने का द्वार।
नवम भाग्य है तो तृतीय पराक्रम।
मतलब पराक्रम किये बिना भाग्य कहा से बनेगा।
तृतीय काम है तो नवम धर्म।
तृतीय भावनाओं के पनपने का स्थान है तो नवम उच्च कोटि की बूद्धि का स्थान।
चतुर्थ सुख है तो दसम कर्म का स्थान।
मतलब जबतक कर्म नही करोगे बैठे बिठाए सुख नही मिलेगा।
पंचम बूद्धि है तो एकादश इच्छयापुर्ति या लाभ का स्थान।
मतलब बूद्धि लगाए बिना कुछ नही मिलने वाला।
षष्टम प्रतियोगिता है संघर्ष है तो द्वादश मोक्ष।
मतलब मोक्ष चाहिए तो उसके लिए बैराग का संघर्ष करो। भक्ति का संघर्ष करो।
शुक्र स्त्री है तो उसको पानी पूरी आकर्षित करती है यानी मंगल।
शुक्र स्त्री है तो उसको सिंदूर, बिंदी, लाल साड़ी आदि आकर्षित करती है मतलब मंगल।
बुध बूद्धि है तो उसको गुरु आकर्षित करता है क्योंकि बुध का काम तो ग्रहण करने का है आगे उस ग्रहण की हुई चीज को सोचने का, चिंतन करने का काम तो गुरु का ही तो है।
चन्द्रमा क्रिया शील है तो वो हमेशा चाहता है कि वो एक जगह एकाग्रह हो। स्थतिर हो और ये स्थतिर कौन है ?
शनी।
स्थिरता तो शनी ही तो देता है।
सूर्य आत्मा है तो तो आत्मा को बैराग की ओर कौन लेके जाता है शनी।
बैराग शनी ही तो है।
तो इस तरह विपरीत भाव या ग्रह एक दूसरे के पूरक भी है और एक दूसरे को आकर्षित भी करते है।
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