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16 July 2012

विशवास की कच्ची डोर

कुछ शब्द पड़ रहे कम , कहू तो मै  कहू कैसे ?
ये आँख हो रही नम , कहू तो मै  कहू कैसे ?
जो सच दिख रहा आज , उसे मै देख न पाऊ ।
विशवास  की कच्ची डोर, जिसे मै थाम न पाऊ ।

     क्या कमी मेरी थी जो, डोर ये टूटी ऐसे ?
हर गिठ पर एक गिठांक , मै लगाऊ कैसे ?
इन आँसुओ पर बाँध आज , मै लगाऊ कैसे ?
इस चोट का दर्द , आज मै छुपाऊ कैसे ?
 
   दिया है दर्द तूने , इसमें तेरी खता क्या है ?
जरूर मेरी परवरिश में कुछ कमी  रही होगी  ।
 यही सोच सोच कर आज, कलेजा जला रहा हूँ ।
शब्दों को बाँध , आज कवीता बना रहा हूँ ।

"ललित शर्मा"

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